Thursday, July 16, 2009

तीस साल पहले

तब

मेरे पति और बोस में
लगी थी एक बेट ।
sales के आंकडो को
किया था उन्होंने सेट ।

कहने की कोई बात नही
कि कौन जीता कौन हारा ।
मेहनत से इन्होने कभी
किया नही किनारा ।

समय के पहिले लक्ष्य
पूरा कर दिखाया।
और ऐसे अपने बोस को
शर्त में था हराया ।

बाहर treat की थी बात ।
दौनो ही व्यस्त रहते थे
अतः एक साल बाद
आई वो (जीते) डिनर की रात ।

वो मेरा शायद दूसरा ही
फाइव स्टार डिनर था ।
ताज का था टॉप floor
और तगड़ा बिल था ।

पूरी तौर से हम दोनों है veg
वंहा क्या खाया ?मत पूंछे ।
मेनू कार्ड हाथ में ले
हम इससे काफी जूझे ।

अब

कारपोरेट ऑफिस जब
मुंबई से शिफ्ट हो, बेंगलूर आया ।
बोस के आग्रह पर फिर एक
बाहर डिनर का प्रोग्राम बनाया ।

इस वार जब मुझसे
लिया गया सुझाव ।
restaurant तंदूर का मैंने
बेझिझक किया चुनाव ।

सच मानिये हमे आज भी
दाल रोटी खाने में ही आता है मज़ा ।
वो फाइव स्टार की treat थी
मेरी भूख को एक प्यारी सज़ा ।

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