Tuesday, December 11, 2012

चाँदनी की करतूत

घने  जंगल की
 सूनसान पगडंडी    पर
दो पथिक
 थे  जो  अज़नबी
सहमे सहमे
डरे  डरे  से         
गुमसुम हो
तेज़  तेज़
कदम उठा
आगे बड़ते रहे
अहम् था
या संकोच
मौन किसी ने
 न किंचित तोड़ा
थिरकती चांदनी
विस्मित सी
पेड़ की डालियों 
के बीच से
निरखती रही
उनकी बेरुखी
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
एक साथ
ज़मी  पर  
मिला  कर
  ही  छोड़ा !