Thursday, September 30, 2010

पेड़ और पतझड़

( पेड़ के मन से )

हर पतझड़

तेज हवा मेरा

चीर हरण करती है

और सामने वाले

पेड़ की टहनी

हवा मे झूम

खूब आनंद लेती है

पर मै उदास नहीं

ना ही कोई इर्षा

के भाव रखता हूँ

रात के बाद

आता है दिन

ये मै बखूबी

खूब समझता हूँ ।

खुश हूँ मेरे

सूखे पत्तो कों

इकठ्ठा कर

झोपड़ा पट्टी वाले

जला धुँआ पैदा कर

मच्छर भगा

खून चुसने से

अपने कों बचाते है

और सूखी

टहनियों कों जला

गरीब खाना पका

अपने उदर की आग

बुझाते है ।

सुना है कुछ सजग

पर्यावरण प्रेमी भी

मेरे सूखे पत्तो कों गला

कम्पोस्ट खाद बनाते है

और फिर यो पौधे

नवजीवन पा जाते है

दुःख है तो

बस इतना कि

थका पथिक

मेरे आंगन तले

छाव नहीं पाता है

बस निराश हो

आगे बड़ जाता है ।

कुछ प्रतीक्षा के बाद

होता है प्रकृति

का एक करिश्मा

मनभावन

बसंत आता है ।

ताज़े हरे कोमल

पत्तो से मेरी

टहनियों कों

वो सहर्ष स्वयं

पुनः सजाता है ।

Thursday, September 23, 2010

पारंगत

हम कमर कस कर

हो रहे है अब तैयार

सफाई करने १२०० की

फौज करली तैयार

लीपा पोती मे हम

है कितने माहिर

पारंगत इस कला में

होगा अब जग जाहिर ।












Wednesday, September 22, 2010

कोमनवेल्थ गेम्स .............क्या होगा ?
कालमाडी .............. क्या किया ?
कश्मीर ............. क्या हो रहा है ?

क क क

क कहर ढो रहा है ?
क पर कहर हो रहा है ?
क्या हो रहा है ?


Thursday, September 16, 2010

मेरा सपना

ईमानदारी
एक संक्रामक
रोग बन
फ़ैल जाए ।

स्वार्थ
बस दुनियां
से एकदम
लुप्त हो जाए ।

भाई - चारा
सब दिल से
हमेशा एक
दूसरे से निभाए ।

धरती भावी
कर्णधारों के लिये

बस जन्नत ही
हम बना जाए ।

Friday, September 10, 2010

दंग

जब भी जीवन

मे कर्तव्य और

इच्छाओं मे

छिड जाती है ज़ंग ।

कर्तव्य कैसे ?

बाजी मार ले जाता है

देख कर मै

रह जाती हूँ दंग ।