Tuesday, December 11, 2012

चाँदनी की करतूत

घने  जंगल की
 सूनसान पगडंडी    पर
दो पथिक
 थे  जो  अज़नबी
सहमे सहमे
डरे  डरे  से         
गुमसुम हो
तेज़  तेज़
कदम उठा
आगे बड़ते रहे
अहम् था
या संकोच
मौन किसी ने
 न किंचित तोड़ा
थिरकती चांदनी
विस्मित सी
पेड़ की डालियों 
के बीच से
निरखती रही
उनकी बेरुखी
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
एक साथ
ज़मी  पर  
मिला  कर
  ही  छोड़ा !




Thursday, March 22, 2012

नहीं गिला

अपने जब
चिर विदा ले तो
दे जाते है
हमे असीम गम
साल बीतने
को आया पर
याद आते ही
आँखे होती
आज भी नम
तुम्हे खोने
का बोझ
मन पर है
बड़ा ही भारी ।
चल चित्र
की तरह
बीता समय
सामने आने
का क्रम अब
भी है ज़ारी ।
अब तुम नहीं
पर यादें है साथ ।
आज भी मार्गदर्शन
होता है और
बन जाती है
बिगडती बात ।
खुश हूँ कि
सालो तुम्हारा
आत्मिय साथ मिला।
तुम्हारा असहनीय
दर्द देखा समझा
इसीसे जिन्दगी
से नहीं किया
कोई गिला।

Thursday, February 16, 2012

दर्द

बहार को
विदा करना
पतझड़ को
कंहा रास आया ।

सारा दर्द
पीलापन लिये
पत्ते पत्ते पर
उभर आया ।

Wednesday, January 4, 2012

सरगर्मी

चुनाव की गरमा गरमी
होगई है अब शुरू
यंहा चेला तो कोई दिखता नहीं
सब ही है बस गुरु ।

अन्ना ने किया आन्दोलन
और थे कुछ मुद्दे भी उठाए
लोकपाल का मुद्दा पिछड़ गया
वोटपाल जो है सर उठाए ।

एक दूसरे को नीचा दिखाने की
बस लग गयी है आपस मे होड़
कीचड उछालने मे है लगे सभी
अपनी सभ्यता संस्कृति को छोड़ ।

शर्म आज नेताओ को आती नहीं
मोटी होगई है इनकी चमड़ी
जनहित करने आए थे भूल गए
घोटालों की भ्रष्ट राह जो पकड़ी ।