Saturday, June 27, 2009

मंझली

मेरी मंझली बिटिया
अपनी शादी के पूरे
एक साल, एक महिने
बाद घर आरही है ।

चार दिन नही
आठ दिन की
चांदनी अपने साथ
ला रही है ।

खाने में क्या पसंद
क्या ना पसंद
सारी यांदे
जुट आई है ।

अब दिल ये चाहे
समय चींटी की गति
से चले ,तो इसमे
क्या बुराई है ?

Friday, June 19, 2009

ननंद

मेरी बड़ी ननंद
उनका सदैव
मुस्काता चेहरा
मुझे है बहुत पसंद ।
पूजा पाठ को ले
बहुत कड़ी है ।
पर स्वास्थ को ले
लापरवाह बड़ी है।
मेरी ननंद
बड़े परिवार की बेटी
स्वयं भी
बड़े परिवार वाली है ।
हर सम्बन्ध को
सहज आत्मियता से
निभाने की कला
उनमे निराली है।
एक खासियत ये है कि
वो हमेशा शांत दीखे ।
बिगड़ी कैसे बनाए
कोई इनसे सीखे।

(एक छोटा सा उदाहरण )

मेरी बड़ी बिटियाँ की
शादी की है ये बात ।
दाल पीसनी थी लेकिन
मिक्सी नही दे रही थी साथ ।
उन्होंने झट अदरख
कूटने वाला खलबत्ता उठाया ।
थोड़ी दाल कुचली
शगुन की बडियां डाली
काम तुंरत आगे बढाया ।
काम करने का
अपना मज़ा है
उनके संग ।
इनकी सूझ -बूझ
को देख कर
मै हूँ अति दंग ।
ननंद के लिए
कुछ लिखना
सूरज को दिया दिखाना है।
चाह है उनसे
बहुत कुछ सीखू ।
जीवन को
सार्थक जो बनाना है।

Wednesday, June 17, 2009

ध्येय

इस जीवन में
ध्येय सभी
का होता
है एक ।

पर लक्ष्य प्राप्ति के
मार्ग होते
है सदैव
ही अनेक ।


सुख - शान्ति
समृद्धि की
सभी करते
मंगल कामना ।


यत्न करे
सही राह पकड़े
सफल रहे
मेरी ये भावना।

Thursday, June 11, 2009

प्रयास

मेरी छोटी बिटिया का है आया मेल

मम्मा कठिन शव्दों से कर रही हो आप खेल ।

लगता है जैसे ले रही हो हिन्दी का टेस्ट

इंगलिश में पोस्ट करोगी तो ही होगा बेस्ट ।


पढ़ने-लिखने का उसको

है बेहद ही चाव ।

कोशिश जरूर करेगी वो जब

फरमाइश को नही मिलेगा कोई भाव ।


हिन्दी ना छूटे मेरे बच्चो से

एक माँ का है ये प्रयास ।

सफल रहूंगी मकसद में

इसकी है मुझे पूरी आस ।

Wednesday, June 10, 2009

बेटी

एक घड़ी आती है जब
छूटता है बाबुल का आँगन ।
नया क्षितिज पाती है बेटियाँ
मिले जब इन्हे मनभावन ।

उनके अब अपने सपने है
और है एक नया उल्हास ।
दूर तो ये है जरुर हमसे
पर पाती हूँ सदा मन के पास ।

( बेटी को पराये धन की संज्ञा तो नही दूंगी मै )

पर होती है ये धरोहर ।
अपने धरोंदे को खूब
संवारने में जुट जाती है
बनाना जो है इसे मनोहर।

( बरसों पहले मेरा आँगन छूटा, अब छूटा इनका )

ये तो है जीवन धारा ।
खुश रहे सदैव बेटियाँ
अपने - अपने अंगना में
ये ही है आशीष हमारा ।

Monday, June 8, 2009

दृष्टिकोण

सकारात्मक दृष्टिकोण

उलझनों के जालों को चीर जाता है ।

फिर आता है आत्मविश्वास जो

प्रतिकूल परिस्थितियों से भिड जाता है।

Sunday, June 7, 2009

अतीत

अतीत की बिखरी यादों को

चुन चुन कर मैंने बीना है

मधुर स्मृतियों का है ये भंडार

इसी के सहारे अब जीना है।

Saturday, June 6, 2009

पनघट

मेरा जन्म राजस्थान के एक गाँव में हुआ था ।
गाँव का नाम है नागौर।
उस समय वहाँ ना तो बिजली थी और ना ही पानी ।
एक तालाब था उसका नाम था गिनानी ।वहीं से पानी लाया जाता था । पीने का पानी कूए से लाते थे।
हमारे घर से करीब बीस मीनिट का रास्ता था ।
गाँव की महिलाए बड़े चाव से सिर पर कोई दो तो कोई तीन घड़े रख
कर पानी भरने चल देती थी। ( हर सुबह )
मै उस समय बहुत छोटी थी पर जानने का कौतुहल था कि ये लोग क्या
करते है ? कैसे पानी मिलता है।
हमारे घर राधाबाई पानी लाती थी हम उन्हें मौसी कहते थे।
वो विधवा थी किसी पर आश्रित रहना उन्हें नही भाता था।
एक दिन उन्हें मना कर उनकी उंगली पकड़ कर मै भी गिनानी गई
मुझे तो एक छोटा सा लोटा दिया गया था।
मैंने देखा कि सब पहले तो अपने अपने घड़े को इमली या तो फिर
नीम्बू के छिलके से मिट्टी लेकर खूब चमकाती
और फिर उसे धो कर कपडे से छान कर पानी भरती।
सब एक दूसरे का इंतजार करते और साथ साथ ही लौटते ।
और हाँ जो नए सुंदर कपडे पहिन कर (घाघरा ओड़नी )
आती थी , सब उसके साथ हंसी ठिठौली करते थे ।
सब को मालुम जो पड़ जाता था कि उसका सांवरिया परदेश से लौट आया है।
उन पीतल के चमचमाते घडों और हंसी ठिठौली ने मेरे जीवन में अमिट छाप छोडी है।

मैंने अनुभव किया है कि उत्साह ,उमंग के साथ किया हर काम एक आनंद
और संतुष्टी का भाव छोड़ जाता है.................

Thursday, June 4, 2009

मानव प्रकृति

जो नहीं है पास

उसकी चाह प्रबल होती है ।

पर है जो पास

उसकी कदर कम होती है ।

Wednesday, June 3, 2009

अनुभूति

नदी
पहाड़ी ,पथरीले रास्ते में
कितनी अल्हड
चंचल लगती है ।
बिना विराम लिए
निरंतर कल-कल
नाद करते
आगे बड़ती है ।
मैंने पर उसका
शांत ,गंभीर
रूप भी देखा है ।
जंहा इसने
अपने अस्तित्व को
किया समतल को अर्पित
और आखिरकर
शान्ति कर ही ली अर्जित ।


अब देखने में आता है ।
कि ......
दूर से फेंका
छोटा सा कंकर भी
अनगिनत तरंगे
पैदा कर जाता है ।

Tuesday, June 2, 2009

धैर्य

जब कभी जीवन में

कुछ अप्रिय घट जाता है ।

न जाने कंहा से झेलने को

धैर्य जुट आता है ।