Tuesday, July 28, 2009

पूनम

सावन की जो पूनम है
उसकी तो है अनोखी बात ।
रक्षा -बंधन जो आता है
सदैव इसके साथ ।
मुझे वैसे , हर पूनम पसंद है
छिटकती है जो चांदनी
खुल के उस रात ।
काश ! कुछ उजाला
समेट,सहेज रख पाती
वो काम तब आता
होती जब अमावस की रात ।

6 comments:

Anonymous said...

Beautifully written...

-P

Anonymous said...

Hello aunty,

Has been long. Apologize on not being in touch through FB and your blog.
How have you been, aunty?

Rashi

Swatantra said...

Very nice!!

Aparna said...

Beautiful thoughts. I am looking forward to Rakhi Purnima. I have very special memories of celebrating Rakhi with my brother.

shilpa said...

Very beautiful wonder how talented a person can be you just superb

sangeeta said...

मेरे ब्लॉग पर आकर दो शब्द लिखने के लिए धन्यवाद !
मुझे आपकी कवितायेँ बहुत अच्छी लगी खासकर ये पंक्तियाँ...
काश ! कुछ उजाला
समेट,सहेज रख पाती
वो काम तब आता
होती जब अमावस की रात ।

उजाला समेत कर रखना ही तो हमें सीखना है...!