Sunday, July 12, 2009

याददाश्त

आजकल कुछ गज़ब हो रहा है ।
पुराना बहुत कुछ
याद आ रहा और
नया गायब हो रहा है । (कभी -कभी )

कभी कभी ऐसा भी हो रहा है
जब किसी का जिक्र चले
उसका चेहरा याद आ रहा
और नाम गुल हो रहा है ।

सोचिये! सुनने वाला क्या करे ?
जानकारी आती नही किसी काम
मनुष्य की क्या पहचान है ?
जब साथ न जुड़ा हो उसका नाम ।

2 comments:

Swatantra said...

Whenever i read your blog, i feel fresh!! Nice poems!!

Keep writing!! Appne mere bete ke barien mein baut achaa likha!! Keep coming and writing!! Thanks!!

Apanatva said...

thanks.your son is very cute.take care.