Tuesday, July 21, 2009

कभी-कभी

कभी -कभी

हम तो स्थिर होते है
पर मन भटके चारों ओर ।
एक जगह न रुके
जैसे मिल न रही कहीं ठौर ।
हम चाहते कुछ है
हो जाता है कुछ और ।
संयम रखना ठीक रहेगा
व्यर्थ है मचाना शोर ।

कभी -कभी

जब गर्दिश में
होते है तारे।
सभी यत्न बेकार
होते हमारे ।
हताश होने की
नही कोई वजह।
याद रहे हर रात की
होती ही है सुबह ।

कभी -कभी

उलझनों से जब हम
घिर जाते है ।
और सही मार्ग स्वयं
खोज नही पाते है ।
उचित रहेगा कि -
स्वजनों से हम ले सलाह
उनके अनुभव हमें
सही राह बता जाते है ।

1 comment:

Swatantra said...

Kabhi Kabhi!! Beautiful poems..