Thursday, October 29, 2009

आलस

आलस है हमारे मन की
एक ऐसी अनचाही उपज
जीवन मे समां जाए तो
दिनचर्या जाती है उलझ ।

जंहा आलस आकर
जीवन मे डाले डेरा ।
वंहा उत्साह उमंग भी
नही करते है बसेरा ।

आलस की चादर
जो कोई भी ओडे
स्वावलंबन तुंरत ही
उनका अंगना छोडे ।

आलस है एक शायद
मानसिक कमजोरी ।
चंगुल से निकलना इसके
सभी के लिये है बहुत जरूरी।

आलस हमारे जीवन मे
एक वाधा बन कर है आता ।
और इसके राज्य मे
जीवन घिसटता चला जाता ।

आलसी को कौन समझाए
सब कुछ पा सकते हो
पर खोया समय कभी
लौट कर हाथ ना आए


अवसर तो फिर भी कभी कभार
आलसी के घर कुंडी खटखटाए ।
घुटने टेक सोया आलसी का आत्मबल
दरवाजा भी समय पर खोल न पाए ।

Saturday, October 24, 2009

विश्वास

अनुशासित हो
अपनी सोंच
तो फिर जीवन
भटकन से रहे दूर ।

अभिलाषाओं को
पूर्ण करने की
क्षमता हममे ही है
विश्वास रखे भरपूर ।

Tuesday, October 6, 2009

संतुलन

भीगी अनुभूति
भीगे एहसास
जब भी माहौल को
पूरे तौर से
भिगा जाते है
और यों दिलो मे
सभी की ठंडक
पैदाकर जाते है ।
आत्मीयता मे
सने , लिपटे
मेरे तपते दबे जज्वात
गर्माहट देने
न जाने किस कौने से
ऊपर उठे चले आते है
और यों माहौल मे
संतुलन बना जाते है ।

Thursday, October 1, 2009

यंहा - वँहा

नौ- दस साल
पहले की है बात ।
मै जब पहुची
थी बोस्टन
हेलोवीन डे
की थी रात ।

निमंत्रण था
हारवर्ड से
मेरे पति का
ग्रेजुएशन डे
अटेंड करने का ।
और साथ ही
अवसर मिला था
सभी प्रोफेसर्स
के साथ
केस स्टडीज
करने का ।

जैसे ही मै कैम्पस
जा ,कमरे मे पहुँची
आकर बेच-मेट्स ने
दिया था धरना ।
मेरा काम था कुछ
सवालों का बस
स्पष्टीकरण करना |

सभी एडवांस
मैनेजमेंट के
ही थे छात्र ।
सभी विदेशी
और मेरे पति
महोदय थे
उनकी
जिज्ञासा
के पात्र ।

सभी अचंभित
थे इनकी दी
जानकारी से ।
कि सदा
दूर रहे ये
यंहा घर
चलाने की
कार्य प्रणाली से ।

लौंड्री तक
नही की थी
कभी जीवन मे ।
बात किसी तरह
भी फिट नही हो
पा रही थी
वंहा ,ये
उनके जेहन मे ।

भारत मे पति
करने लगे घर
का अगर काम ।
खिल्ली तो उडेगी
मुफ्त
मे हो
जाएगी बिचारी
पत्नी भी
उनकी , बदनाम ।

मैंने स्पष्ट किया
कि शिक्षा , सोंच मे
बदलाव जरूर लाई है ।
अतः नई पीडी मे अब
उत्तरदायित्व को ले
काफी जाग्रति आई है ।

बुद्धजीवी वर्ग
चौदह ,सौलह घंटे
आफिस मे खटता है |
ओर फिर करे
घर आकर भी काम ?
इसका तो प्रश्न ही
नहीं उठता है ।

मेरी पीडी , की पत्नी
पलक पावडे बिछा
पति का इंतजार
हर रोज़ करती है |
ओर पति की हर
ज़रुरत का ध्यान
बिन कहे सुने
सहर्ष रखती है |

वैसे भारत मे
मेहनत मजदूरी
घरो मे काम करके
जीवन व्यापन
करने वालो की
रहती कमी नही

भारत मे आपके पास
अगर है कार
तो ड्राईवर भी होगा |
घर , लॉन भी है
तो माली भी होगा |
घर के छोटे मोटे
कामो मे नौकर
हाथ बटाए |
ऐसी सुविधाओ के लिए
अमेरिका मे बसने वाले
धनी होते हुए भी
तरस ही जाए |

नौकर , ड्राईवर रखना
अमेरिका मे
आम बात नही ।
सभी स्वावलंबी होते है
यंहा ये बात है
शत - प्रतिशत सही ।