सावन की जो पूनम है
उसकी तो है अनोखी बात ।
रक्षा -बंधन जो आता है
सदैव इसके साथ ।
मुझे वैसे , हर पूनम पसंद है
छिटकती है जो चांदनी
खुल के उस रात ।
काश ! कुछ उजाला
समेट,सहेज रख पाती
वो काम तब आता
होती जब अमावस की रात ।
Tuesday, July 28, 2009
Monday, July 27, 2009
मन
मेरा मन ,कल्पना के
घोड़े पर हो सवार
सभी अपनों के पास
अक्सर ही हो आता है ।
उसका यूँ भटकना
सबकी खोज -ख़बर
समय -समय पर लेना
बहुत अच्छा लगता है।
उसका ये लगाव ही तो
मुझे सबसे जोड़े रखता है ।
घोड़े पर हो सवार
सभी अपनों के पास
अक्सर ही हो आता है ।
उसका यूँ भटकना
सबकी खोज -ख़बर
समय -समय पर लेना
बहुत अच्छा लगता है।
उसका ये लगाव ही तो
मुझे सबसे जोड़े रखता है ।
Saturday, July 25, 2009
आप -बीती
एक दिन अचानक ही
सब कुछ था बदल गया ।
जो पास था वो दूर -
और दूर का पास आ गया ।
अरे ! हिलने लगी धरा
कभी लगा, धंसने लगी ।
आकाश भी झुकने लगा
कल्पना सी लगने लगी ।
फिर डॉक्टर को जा दिखाया
vertigo है ,ऐसा उन्होंने बताया।
vertin गोली लेने का सुझाव दिया
साथ ही ऊचा देखने व झुकने से मना किया।
vertigo में उठते -बैठते
चक्कर से आ जाते है ।
जानते है कि धरती नही हिलती
पर कदम डगमगा जाते है ।
संतुलन खोने का डर
ऐसे मे हमेशा बना रहता है ।
हाथ पकड़ कर चलना
आगे बड़ने मे सहायक होता है ।
इसी से ,जब भी बाहर जाने
की होती थी बात ।
अवश्य ही कोई न कोई
होता ही था मेरे साथ ।
कभी ख़राब समय आ जाता है
जीवन में, आता है तो आए ।
दिल चाहता है ,पड़ाव न डाले यंहा
हवा के झोंके सा ,उड़ जाए ।
vertin गोली ने कमाल कर दिया
अब तो सब ठीक ही चल रहा है।
स्वास्थ्य को ले, रहना है सदैव सजग
आख़िर vertigo से सीख लिया है।
सब कुछ था बदल गया ।
जो पास था वो दूर -
और दूर का पास आ गया ।
अरे ! हिलने लगी धरा
कभी लगा, धंसने लगी ।
आकाश भी झुकने लगा
कल्पना सी लगने लगी ।
फिर डॉक्टर को जा दिखाया
vertigo है ,ऐसा उन्होंने बताया।
vertin गोली लेने का सुझाव दिया
साथ ही ऊचा देखने व झुकने से मना किया।
vertigo में उठते -बैठते
चक्कर से आ जाते है ।
जानते है कि धरती नही हिलती
पर कदम डगमगा जाते है ।
संतुलन खोने का डर
ऐसे मे हमेशा बना रहता है ।
हाथ पकड़ कर चलना
आगे बड़ने मे सहायक होता है ।
इसी से ,जब भी बाहर जाने
की होती थी बात ।
अवश्य ही कोई न कोई
होता ही था मेरे साथ ।
कभी ख़राब समय आ जाता है
जीवन में, आता है तो आए ।
दिल चाहता है ,पड़ाव न डाले यंहा
हवा के झोंके सा ,उड़ जाए ।
vertin गोली ने कमाल कर दिया
अब तो सब ठीक ही चल रहा है।
स्वास्थ्य को ले, रहना है सदैव सजग
आख़िर vertigo से सीख लिया है।
Tuesday, July 21, 2009
कभी-कभी
कभी -कभी
हम तो स्थिर होते है
पर मन भटके चारों ओर ।
एक जगह न रुके
जैसे मिल न रही कहीं ठौर ।
हम चाहते कुछ है
हो जाता है कुछ और ।
संयम रखना ठीक रहेगा
व्यर्थ है मचाना शोर ।
कभी -कभी
जब गर्दिश में
होते है तारे।
सभी यत्न बेकार
होते हमारे ।
हताश होने की
नही कोई वजह।
याद रहे हर रात की
होती ही है सुबह ।
कभी -कभी
उलझनों से जब हम
घिर जाते है ।
और सही मार्ग स्वयं
खोज नही पाते है ।
उचित रहेगा कि -
स्वजनों से हम ले सलाह
उनके अनुभव हमें
सही राह बता जाते है ।
हम तो स्थिर होते है
पर मन भटके चारों ओर ।
एक जगह न रुके
जैसे मिल न रही कहीं ठौर ।
हम चाहते कुछ है
हो जाता है कुछ और ।
संयम रखना ठीक रहेगा
व्यर्थ है मचाना शोर ।
कभी -कभी
जब गर्दिश में
होते है तारे।
सभी यत्न बेकार
होते हमारे ।
हताश होने की
नही कोई वजह।
याद रहे हर रात की
होती ही है सुबह ।
कभी -कभी
उलझनों से जब हम
घिर जाते है ।
और सही मार्ग स्वयं
खोज नही पाते है ।
उचित रहेगा कि -
स्वजनों से हम ले सलाह
उनके अनुभव हमें
सही राह बता जाते है ।
Sunday, July 19, 2009
अकेलापन
ये किसी को काटता है
तो किसी को कचोटता है ।
कोई इससे बोर होता है
तो किसी को ये उदासीन करता है ।
किसी का समय कटना दुभर करता है
तो किसी को उसकी, अप्रियता का आभास कराता है ।
कई वार यंहा तक होता है कि -
आप सबके साथ होते है तब भी ,ये आपके साथ होता है।
सबसे आपके विचार नही मिलते है
इसीसे, इसका आभास होता है ।
खुश रहिये कि सब का साथ है आपको मिला
विचार नही मिलते, इसका क्या करिये गिला ।
जब आप गए है स्वयं के
विचारों को अच्छी तरह जान ।
ठीक रहेगा अब बनाना
अपनी अलग ही एक पहचान ।
करिये वो ही जो आपको
आपकी आत्मा को अच्छा लगता है ।
व्यस्त रखिये अपने को
फिर देखिये अकेलापन कैसे भगता है ।
तो किसी को कचोटता है ।
कोई इससे बोर होता है
तो किसी को ये उदासीन करता है ।
किसी का समय कटना दुभर करता है
तो किसी को उसकी, अप्रियता का आभास कराता है ।
कई वार यंहा तक होता है कि -
आप सबके साथ होते है तब भी ,ये आपके साथ होता है।
सबसे आपके विचार नही मिलते है
इसीसे, इसका आभास होता है ।
खुश रहिये कि सब का साथ है आपको मिला
विचार नही मिलते, इसका क्या करिये गिला ।
जब आप गए है स्वयं के
विचारों को अच्छी तरह जान ।
ठीक रहेगा अब बनाना
अपनी अलग ही एक पहचान ।
करिये वो ही जो आपको
आपकी आत्मा को अच्छा लगता है ।
व्यस्त रखिये अपने को
फिर देखिये अकेलापन कैसे भगता है ।
Thursday, July 16, 2009
तीस साल पहले
तब
मेरे पति और बोस में
लगी थी एक बेट ।
sales के आंकडो को
किया था उन्होंने सेट ।
कहने की कोई बात नही
कि कौन जीता कौन हारा ।
मेहनत से इन्होने कभी
किया नही किनारा ।
समय के पहिले लक्ष्य
पूरा कर दिखाया।
और ऐसे अपने बोस को
शर्त में था हराया ।
बाहर treat की थी बात ।
दौनो ही व्यस्त रहते थे
अतः एक साल बाद
आई वो (जीते) डिनर की रात ।
वो मेरा शायद दूसरा ही
फाइव स्टार डिनर था ।
ताज का था टॉप floor
और तगड़ा बिल था ।
पूरी तौर से हम दोनों है veg
वंहा क्या खाया ?मत पूंछे ।
मेनू कार्ड हाथ में ले
हम इससे काफी जूझे ।
अब
कारपोरेट ऑफिस जब
मुंबई से शिफ्ट हो, बेंगलूर आया ।
बोस के आग्रह पर फिर एक
बाहर डिनर का प्रोग्राम बनाया ।
इस वार जब मुझसे
लिया गया सुझाव ।
restaurant तंदूर का मैंने
बेझिझक किया चुनाव ।
सच मानिये हमे आज भी
दाल रोटी खाने में ही आता है मज़ा ।
वो फाइव स्टार की treat थी
मेरी भूख को एक प्यारी सज़ा ।
मेरे पति और बोस में
लगी थी एक बेट ।
sales के आंकडो को
किया था उन्होंने सेट ।
कहने की कोई बात नही
कि कौन जीता कौन हारा ।
मेहनत से इन्होने कभी
किया नही किनारा ।
समय के पहिले लक्ष्य
पूरा कर दिखाया।
और ऐसे अपने बोस को
शर्त में था हराया ।
बाहर treat की थी बात ।
दौनो ही व्यस्त रहते थे
अतः एक साल बाद
आई वो (जीते) डिनर की रात ।
वो मेरा शायद दूसरा ही
फाइव स्टार डिनर था ।
ताज का था टॉप floor
और तगड़ा बिल था ।
पूरी तौर से हम दोनों है veg
वंहा क्या खाया ?मत पूंछे ।
मेनू कार्ड हाथ में ले
हम इससे काफी जूझे ।
अब
कारपोरेट ऑफिस जब
मुंबई से शिफ्ट हो, बेंगलूर आया ।
बोस के आग्रह पर फिर एक
बाहर डिनर का प्रोग्राम बनाया ।
इस वार जब मुझसे
लिया गया सुझाव ।
restaurant तंदूर का मैंने
बेझिझक किया चुनाव ।
सच मानिये हमे आज भी
दाल रोटी खाने में ही आता है मज़ा ।
वो फाइव स्टार की treat थी
मेरी भूख को एक प्यारी सज़ा ।
Wednesday, July 15, 2009
सौगात
अमावस की रात भी
जब उजली लगे
हो जैसे कोई
चांदनी रात ।
और संभली हो
कोई बिगड़ती बात ।
अवश्य ही तब
अपनो का मिला है
आपको पूरा साथ ।
जिंदगी की
इससे बड़ी
नही हो सकती
कोई सौगात ।
जब उजली लगे
हो जैसे कोई
चांदनी रात ।
और संभली हो
कोई बिगड़ती बात ।
अवश्य ही तब
अपनो का मिला है
आपको पूरा साथ ।
जिंदगी की
इससे बड़ी
नही हो सकती
कोई सौगात ।
जिंदगी
हमारे कई अपने
जिंदगी की राह में
सदा के लिए
छोड़ गए हमारा साथ ।
नियति के आगे
सभी कमज़ोर है
बस मलते रह
जाते है हम हाथ ।
ये जिंदगी भी
करती है ।
हमारे साथ
नित नये खेल ।
कभी अपनो से
दूर करती है
कभी परायो से
कराती है मेल ।
जिंदगी की राह में
सदा के लिए
छोड़ गए हमारा साथ ।
नियति के आगे
सभी कमज़ोर है
बस मलते रह
जाते है हम हाथ ।
ये जिंदगी भी
करती है ।
हमारे साथ
नित नये खेल ।
कभी अपनो से
दूर करती है
कभी परायो से
कराती है मेल ।
Sunday, July 12, 2009
याददाश्त
आजकल कुछ गज़ब हो रहा है ।
पुराना बहुत कुछ
याद आ रहा और
नया गायब हो रहा है । (कभी -कभी )
कभी कभी ऐसा भी हो रहा है
जब किसी का जिक्र चले
उसका चेहरा याद आ रहा
और नाम गुल हो रहा है ।
सोचिये! सुनने वाला क्या करे ?
जानकारी आती नही किसी काम
मनुष्य की क्या पहचान है ?
जब साथ न जुड़ा हो उसका नाम ।
पुराना बहुत कुछ
याद आ रहा और
नया गायब हो रहा है । (कभी -कभी )
कभी कभी ऐसा भी हो रहा है
जब किसी का जिक्र चले
उसका चेहरा याद आ रहा
और नाम गुल हो रहा है ।
सोचिये! सुनने वाला क्या करे ?
जानकारी आती नही किसी काम
मनुष्य की क्या पहचान है ?
जब साथ न जुड़ा हो उसका नाम ।
यादें
जब भी मै
अकेली होती हूँ
यादें घिर
आती है ।
पर जब
होती हूँ व्यस्त
ये उड़न छू
हो जाती है ।
बिना किसी
आहट के
जब -जब भी
ये आती है ।
मेरे वर्तमान
जीवन में
अतीत की छाप
छोड़ जाती है।
अकेली होती हूँ
यादें घिर
आती है ।
पर जब
होती हूँ व्यस्त
ये उड़न छू
हो जाती है ।
बिना किसी
आहट के
जब -जब भी
ये आती है ।
मेरे वर्तमान
जीवन में
अतीत की छाप
छोड़ जाती है।
Friday, July 10, 2009
एक पाती
प्रिय आभा
तुमने मेरा ब्लॉग पड़ा, अच्छा लगा, जान कर खुशी हुई।
जिन्दगी कैसे निकल गई पता ही नहीं चला ।
पर बड़ी खट्टी - मीठी यादो का खजाना संजो रखा है इस दिल ने ।
बहुत सीखा हँ जीवन में सभी सीखते है कोई नई बात नहीं । हँ ना?
ब्लॉग एक अच्छा माध्यम है भावों की अभिव्यक्ती का ।
तुम्हे पता है मेरे भाईजान भी शौक रखते थे कविता लिखने का ?
जी हाँ ये आपके पापाजी की ही बात हो रही है ।
और ये भी पचास साल पहिले की बात है। हम लोग तब नागौर में ही थे।
उन दिनों हाथ साबुन से नहीं मिट्टी से धोये जाते थे ।
गधे की पीठ पर लाद कर कुम्हार मिट्टी लाते थे ।
इसी से प्रेरित हो कविता लिखी गई थी मै तब बहुत छोटी थी।
पर दो पंक्तिया अभी भी याद है वो ऐसे थी।
(अरे ओ! गर्धव राज महान पतली -पतली टांगे आपकी फ्रांस देश की सुंदरियों सी)
डेचू -डेचू की तुलना किसी गायक से की गई थी । (जंहा तक मुझे याद है )
आगे याद नहीं पर हास्य व्यंग का मिश्रण अवश्य था ।
अगली वार बात करो तो जिक्र जरूर करना शायद पूरी कविता याद आ जाये ।उनकी छुपी, दबी
प्रतिभा को कुरेदना अच्छा लग रहा है .................
आशीष के साथ
आंटी
तुमने मेरा ब्लॉग पड़ा, अच्छा लगा, जान कर खुशी हुई।
जिन्दगी कैसे निकल गई पता ही नहीं चला ।
पर बड़ी खट्टी - मीठी यादो का खजाना संजो रखा है इस दिल ने ।
बहुत सीखा हँ जीवन में सभी सीखते है कोई नई बात नहीं । हँ ना?
ब्लॉग एक अच्छा माध्यम है भावों की अभिव्यक्ती का ।
तुम्हे पता है मेरे भाईजान भी शौक रखते थे कविता लिखने का ?
जी हाँ ये आपके पापाजी की ही बात हो रही है ।
और ये भी पचास साल पहिले की बात है। हम लोग तब नागौर में ही थे।
उन दिनों हाथ साबुन से नहीं मिट्टी से धोये जाते थे ।
गधे की पीठ पर लाद कर कुम्हार मिट्टी लाते थे ।
इसी से प्रेरित हो कविता लिखी गई थी मै तब बहुत छोटी थी।
पर दो पंक्तिया अभी भी याद है वो ऐसे थी।
(अरे ओ! गर्धव राज महान पतली -पतली टांगे आपकी फ्रांस देश की सुंदरियों सी)
डेचू -डेचू की तुलना किसी गायक से की गई थी । (जंहा तक मुझे याद है )
आगे याद नहीं पर हास्य व्यंग का मिश्रण अवश्य था ।
अगली वार बात करो तो जिक्र जरूर करना शायद पूरी कविता याद आ जाये ।उनकी छुपी, दबी
प्रतिभा को कुरेदना अच्छा लग रहा है .................
आशीष के साथ
आंटी
Thursday, July 9, 2009
आश्वासन
आश्वासन
मिलता रहे
तो कदम
बढाने का
साहस एक
नन्हा बालक
भी
कर लेता है।
अगर डगमगाया
या गिरा
तो कोई भी
दो बांहे
आकर थाम
लेंगी
ये नन्हा
भांप लेता है।
जब नन्हा चलना
सीख रहा होता है
कभी -कभी
संतुलन खोता है।
(ऐसे में जरूरी है कि आप कदापि विचलित न हों और आगे बड़ उसे सहारा दे)
आप सदैव
उसके साथ है
अब वो ये
जान लेता है।
नन्हे करते
मम्मी - पापा
के दिल पर
अपना शासन ।
और पाना चाहे
प्रोत्साहन
निरीक्षण
और आश्वासन ।
मिलता रहे
तो कदम
बढाने का
साहस एक
नन्हा बालक
भी
कर लेता है।
अगर डगमगाया
या गिरा
तो कोई भी
दो बांहे
आकर थाम
लेंगी
ये नन्हा
भांप लेता है।
जब नन्हा चलना
सीख रहा होता है
कभी -कभी
संतुलन खोता है।
(ऐसे में जरूरी है कि आप कदापि विचलित न हों और आगे बड़ उसे सहारा दे)
आप सदैव
उसके साथ है
अब वो ये
जान लेता है।
नन्हे करते
मम्मी - पापा
के दिल पर
अपना शासन ।
और पाना चाहे
प्रोत्साहन
निरीक्षण
और आश्वासन ।
Monday, July 6, 2009
वेदना
ज़रूरी नही
कि इसके एहसास
के लिए
आप स्वयं किसी
शारीरिक ,मानसिक
पीड़ा के
मार्मिक दौर
से गुजरे ।
पर किसी
संवेदन शील
प्राणी के लिए
जग- बीती,पर-बीती
आप बीती की
पीड़ा दे जाए
तो इस एहसास
से वो कैसे मुकरे ।
कि इसके एहसास
के लिए
आप स्वयं किसी
शारीरिक ,मानसिक
पीड़ा के
मार्मिक दौर
से गुजरे ।
पर किसी
संवेदन शील
प्राणी के लिए
जग- बीती,पर-बीती
आप बीती की
पीड़ा दे जाए
तो इस एहसास
से वो कैसे मुकरे ।
Saturday, July 4, 2009
असहाय
कभी -कभी हम अपने आपको
बहुत असहाय महसूस करते है।
जब कोई हमारा ही अपना
हमें समझ कर भी नही समझता है ।
सब कुछ जान कर भी
अनजान बनता है ।
लाख सब के समझाने पर भी
अपनी ही बात पर अड़ जाता है।
दूसरों के धैर्य
की हदों को यों, वो
अनजाने ही
पार कर जाता है ।
तब हम अपने आपको
बहुत ही असहाय महसूस करते है ।
अपनी ही सोंच का कैदी
जब कोई बन जाए।
समझ ही नही आए कि
उनके साथ कैसे पेश आए।
बहुत असहाय महसूस करते है।
जब कोई हमारा ही अपना
हमें समझ कर भी नही समझता है ।
सब कुछ जान कर भी
अनजान बनता है ।
लाख सब के समझाने पर भी
अपनी ही बात पर अड़ जाता है।
दूसरों के धैर्य
की हदों को यों, वो
अनजाने ही
पार कर जाता है ।
तब हम अपने आपको
बहुत ही असहाय महसूस करते है ।
अपनी ही सोंच का कैदी
जब कोई बन जाए।
समझ ही नही आए कि
उनके साथ कैसे पेश आए।
Friday, July 3, 2009
खुशी
खुशियाँ बांटने से
घटती नही है ।
गुणित हो (multiplied)
बहुत बड़ जाती है ।
पर मानव है कि आशंकाओ की चादर ओड़ लेता है ।
स्वयंको कभी बुरी नज़र से बचाना
कभी ईर्षा - द्वेष,टोने -टोटकों से बचाना
सारे अपने प्रयास इसी और मोड़ लेता है ।
सबकी अपनी -अपनी सोंच है
मै इस बारे में क्या कंहू ।
खुशी बांटने में जो अनुपम सुख है
मै तो इससे वंचित कभी ना रंहू ।
घटती नही है ।
गुणित हो (multiplied)
बहुत बड़ जाती है ।
पर मानव है कि आशंकाओ की चादर ओड़ लेता है ।
स्वयंको कभी बुरी नज़र से बचाना
कभी ईर्षा - द्वेष,टोने -टोटकों से बचाना
सारे अपने प्रयास इसी और मोड़ लेता है ।
सबकी अपनी -अपनी सोंच है
मै इस बारे में क्या कंहू ।
खुशी बांटने में जो अनुपम सुख है
मै तो इससे वंचित कभी ना रंहू ।
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