Wednesday, April 14, 2010

दम्भ

जब दम्भ को
आप मन के
द्वार से ही
स्वयं सयत्न
खदेड़ बाहर
निकाले ।
ताक मे जैसे
बैठे हो रिश्ते
तुरंत आकर
वापस यंहा
अपना वो
घर बसाले ।

22 comments:

Jandunia said...

बहुत सुंदर ।

दिलीप said...

bahut khoob
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

Sadhana Vaid said...

बहुत ही सार्थक एवं तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति ! रिश्तों का हनन दंभ ही करता है ! बहुत खूब ! बधाई व आभार !

http://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com

मनोज कुमार said...

वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!

कडुवासच said...

...प्रसंशनीय !!!

Unknown said...

अदभुत रचना....बाकी साधना जी ने कह ही दिया है मन कि बात ..

रश्मि प्रभा... said...

बहुत ही सही कहा

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिलकुल सच..दंभ से ही रिश्ते खत्म हो जाते हैं....सार्थक रचना

मनोज भारती said...

बहुत खूब कहा ...दम्भ ही रिश्ते बिगाड़ता है ।

संगीता पुरी said...

सही है !!

sm said...

very true
nice poem

Dev said...

बेहतरीन रचना .....

रचना दीक्षित said...

बहुत गहरी सोच सुंदर अभिव्यक्ति!!

अंजना said...

सही कहा है आप ने ..

दिगम्बर नासवा said...

सच है रिश्तों में दंभ नही होना चाहिए ... दोनो साथ साथ नही रहते ...

ज्योति सिंह said...

kitna satya hai ,deemak ki tarah khodta hai dheere dheere aur ek din vinash saath liye hota hai ,iska janm hi anarth hai .uttam vichaar .

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत प्रभावपूर्ण रचना . पहली बार आपके ब्लोग पर आया.. कई राच्नाये पढी..,आप बहुत अच्छ लिखति है

dipayan said...

एकदम सच । सुन्दर लेख ।

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! आपकी लेखनी को सलाम! बधाई!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

यही समझ गये तो आधी ज़िन्दगी जी ली और आपने कहा तो हमे समझना ही है.. :)

कभी ऎसा ही कुछ हमने भी यहा कहा था..

Unknown said...

Dambh aur rishtey ek saath nahin chalte.

अरुणेश मिश्र said...

प्रेरक ।