जब उत्तेजना
और विवेक मे
आपस मे ठनी
माहौल मे
छा गयी
तना - तनी
सब बिगड़ गया
बात ना बनी ।
उलझने हो गयी
और अधिक घनी ।
जब कोई प्रयास
काम नहीं आया
टकराव से इन्हें
बचा नहीं पाया
अंतर्मन ने एक
उपाय सुझाया
हमने उत्तेजना
को था सुलाया
विवेक को
फिर से जगाया
अब तथ्य को
सत्य के प्रकाश मे
शिष्टाचार का
जामा पहनाया
तब कंही जाकर
मनचाहा असर
दिख पाया
और बिगड़ा काम
यूं बन पाया
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
28 comments:
विवेक है ही अच्छा बच्चा और उत्तेजना तो नाम ही गलत है :-)
विवेक को आपने शब्दों का जमा बहुत अच्छा पहनाया.
यूं बन पाया
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com
विवेकपूर्ण लिखी विवेक पर रचना बहुत मन को भाई ...उत्तेजना तो सही में कभी काम ना आई ..
सुन्दर रचना के लिए बधाई
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया
विवेक और उत्तेजना की जंग काफी रोचक और तथ्यपूर्ण लगी, विवेक ही जीवन में काम आता है जानते हुए भी उस ही कमी से जूझते रहते हैं हम और दोष किसी और पर थोप देते हैं
आभार
vivek ka paramarsh achhi tarah diya....
कमाल की रचना ! आपकी अब तक की सबसे अच्छी रचना ! वाकई विवेक और उत्तेजना के द्वन्द को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है
bahut achcha likhtin hain aap.
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
Badhiyaa !
विवेक ही सबसे उत्तम है ... उत्तेजना काम खराब करती है ...
बहुत प्रेरणा देती हैं आपकी रचनाएँ ... सीख देती हैं जीवन आचरण की ....
बहुत बड़ी बात आप ने सरल भाषा में कह दी.........बधाई....
विवेक को अच्छा परिभाषित किया। अच्छी रचना....
digambar ji ki baat se sehmat hoon :)
your poems are like Panchtantra poems
jeevan sahi disha me badhe iske liye is vivek ka hona jaroori hai .
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
ati sundar
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
बिल्कुल सही है।
मनोविज्ञान के सिद्धांत को कविता के माध्यम से स्पष्ट किया है आपने...सचमुच उत्तेजना विवेक को दास बनाने की चेष्टा करती है... जिसका विवेक दास बन गया वह उत्तेजना से उन्माद के मार्ग पर चल देता है... विवेक ही विध्वंस को टाल सकता है...
और बिगड़ा काम
यूं बन पाया
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
...nisandeh vivek jiwan mein sadaiv kaam aati hai....prernaprad rachna ke liye dhanyavaad.
बहुत गहरी बात कही है आपने..
WAH WAH WAH...SACH AAJ APKI YE RACHNA PADH KAR CLAP KARNE KO JI CHAAHTA HAI..AISA NAHI KI YE GYAN BHARI BAAT HAM PAHLI BAAR PADH RAHE HAI..LEKIN KIS ANDAAZ ME AAPNE GYAN KO PAROSA US ANDAAZ PAR MAJA AA GAYA. BAHUT KHOOB.
SAADAR
ANAMIKA
बहुत ही सुन्दर और दिलचस्प रचना! आपकी कविता मुझे भी पसंद आई !!
___________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें
har insaan samajh le gar vivek ki mahata...
vishv mein hogi fir shanti aur ekta...
shubkamnae....
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया
Kya baat kahi hai aapne!
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
दर्शन भाव लिए हुए एक खूबसूरत रचना ..यक़ीनन काबिल-ए-दाद
हमने उत्तेजना
को था सुलाया
विवेक को
फिर से जगाया
अब तथ्य को
सत्य के प्रकाश मे
शिष्टाचार का
जामा पहनाया
तब कंही जाकर
मनचाहा असर
दिख पाया
..सही मार्ग पर विरले ही चल पाते हैं
जो चल पाते हैं वही मंजिल पाते हैं।
....बेहतरीन रचना !!!
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।
विवेक जीवन का एक गहेना
हैं
बहुत ही खूबसूरत रचना हैं आप की
Post a Comment