कई वार मुद्दे
स्वयं उठते है
कभी ज़बरन
उठाए जाते है ।
फलस्वरूप एक
आम आदमी
भौचक्का सा
दर्शक ही बन
रह जाता है ।
स्वार्थी तत्व
गरमागरमी का
माहौल पैदा कर
इसकी थाप पर
तांडव नृत्य
कर जाते है ।
मुद्दे ना सुलझते है
ना सुलझाए
ही जाते है ।
और असली और वो
ज़बरन उठाए मुद्दे
भविष्य की आस पर
और कोई उपाय ना पा
थक हार सो जाते है ।
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27 comments:
जो मुद्दे जबरी उठाए जाते हैं वे नहीं सुलझते
जो मुद्दे हैं उन्हें तो सुलझाना ही होगा।
--सोंचने के लिए बाध्य करती कविता के लिए बधाई।
ज़बरन उठाए मुद्दे
भविष्य की आस पर
और कोई उपाय ना पा
थक हार सो जाते है
Bilkul sahi kaha aapne. Jabardasti ke mudde uthne ke kisi ka bhala nahi hone wala.. Janmanas ke hit mein uthaye jaane waale muddon ko uthale hue suljhane ki jarurat hai....
Saarthak rachna..
Bahut shubhkamnayne.
विचारणीय पोस्ट....कुछ मुद्दे इस लिए उठाये जाते है जिससे सही मुद्दे सामने ना आ सकें....बहुत अच्छी रचना
आक्रामक सच को कहने का आपका अंदाजे बयां कुछ और है।
बहुत ही सुन्दरता से आपने रचना के माध्यम से सही बात का ज़िक्र किया है! ऐसे कई मुद्दे हैं जो बेवजह उठाये जाते हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता! बहुत ही गहरे सोच के साथ उम्दा रचना!
आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखती हैं।
Babli has left a new comment on your post "मुद्दे":
बहुत ही सुन्दरता से आपने रचना के माध्यम से सही बात का ज़िक्र किया है! ऐसे कई मुद्दे हैं जो बेवजह उठाये जाते हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता! बहुत ही गहरे सोच के साथ उम्दा रचना!
aaj comments blog par post nahee ho pa rahe hai .
ye asalee mudda hai.:)
are...!
aasanee se ye print na hone ka mudda sulajh bhee gaya..........
ashavaan bane rahne me hee sarthakta hai.jeevan kee.
बिल्कुल सत्य कभी मुद्दे स्वय उठ्ते ही है क्यों कि वे है और कभी कभी विना बात की बात का मुद्दा बना लिया जाता है जो वास्तव मे मुद्दा होता ही नही है बनाया क्यो जाता है कि प्रसिद्धि मिले अखबार मे नाम आये चेनल पर शकल दिखे ।आम आदमी समझ ही नही पाता कि ये हो क्या रहा है ,गर वास्तव मे कोई मुद्दा हो तु सुलझे अगर है भी तो उसे सुलझने नही देते ,ट्रम्प कार्ड है आगे काम आयेगा ।आज के माहौल पर सटीक रचना ।मुझे याद आरहा है सर्वोच्च न्यायालय मे जनहित याचिका दायर हुई थी कि राष्ट्र्गान मे से सिन्ध शब्द हटाया जावे ।अब कहिये आप ।
कई वार मुद्दे
स्वयं उठते है
कभी ज़बरन
उठाए जाते है ।
फलस्वरूप एक
आम आदमी
भौचक्का सा
दर्शक ही बन
रह जाता है ...... sahi tathya
asli muddo se dhyaan hatane ke sab prpanch hote hai aur khud ko publicity dilane k funde...bas isi ka naam to raajneeti hai...sahi kataaksh.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 10.04.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
very nice poem
hope our politicians understand this
भविष्य की आस पर
सोच रहे हैं, कि किसे बोला जाये।
असल मुद्दों को जबरन उठाए गए मुद्दे निगल जाते हैं ... उम्दा अभिव्यक्ति !!!
वाह वाह !
विरोध की बेहतरीन अभिव्यक्ति !
सादर
स्वार्थी तत्व
गरमागरमी का
माहौल पैदा कर
इसकी थाप पर
तांडव नृत्य
कर जाते है ।
अच्छी रचना....!!
मुददे वाली बात का यह असर रहा है कि इस पर दिये जाने वाले कमेंट को हमने अपने ब्लॉग पर चार लाईन्स में पोस्ट किया है। आपका आभार।
और ऐसे हो जाती है मुद्दे की मौत .... ये तो राजनीति और मीडीया का खेल है ....
sach likha hai aapne...
:) बेचारा आम आदमी जान भी नही पाता कि उसके मुद्दे क्या है.. सारे मुद्दे उसे अपने ही लगते है..
mudde!! agar sulajh jayen to fir kya baat...........bahut khub!!
kabhi hamare blog pe padhare
www.jindagikeerahen.blogspot.com
स्वार्थी तत्व
गरमागरमी का
माहौल पैदा कर
इसकी थाप पर
तांडव नृत्य
कर जाते है ।
मुद्दे ना सुलझते है
ना सुलझाए
ही जाते है
बहुत गहरे भाव छुपे हैं हर पंक्ति में जितनी आसान और सीधी दिख रही है उतनी है नहीं.इस बेहतरीन प्रस्तुती पर बधाई .
एक-एक शब्द से कवित्व टपकता हुआ.... ! सामजिक पारिस्थितिकी और अंतस के आवेग को बहुत ही सहजता से अभिव्यक्त किया है आपने !! पूरी कविता में सिर्फ एक शब्द अधिक लगा -- "फलस्वरूप" ! कविता में इस तरह के भारी-भरकम संयोजक शब्दों से काव्य-सौंदर्य प्रभित होता है !! आप स्वयं भी पढ़ कर देखें तो लगेगा कि "फलस्वरूप" शब्द के नहीं रहने पर भी उन पंक्तियों के भाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.... ! *मेरा व्यक्ति विचार !!
आपकी कलम को सलाम ! अनुभव को नमन !!
स्वार्थी तत्व
गरमागरमी का
माहौल पैदा कर
इसकी थाप पर
तांडव नृत्य
कर जाते है ।
shat pratishat sach hai ,sundar ,tabiyat thik nahi rahi is karan net par kai din aai nahi aur yahan aane me der ho gayi .
और असली और वो
ज़बरन उठाए मुद्दे
भविष्य की आस पर
और कोई उपाय ना पा
थक हार सो जाते है ।
Behad sashakt rachana!
bahut hi achchi lagi aapki kavita.
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