रवि का ताप
और हिम पर्वत का
इसे ना सह पाना
निरंतर तप कर
पिघल कर बहना
जल का रूप ले गया
और मुझे जन्म दे गया ।
बरसात व नहरों ने मुझे
अपना दिया भरपूर साथ
मेरा अस्तित्व नहीं
बना ऐसे ही अकस्मात ।
घनघोर घटाओं से
है मुझे असीम प्यार
ये बरस रखती है
मेरा अस्तित्व बरकरार ।
राह मे कई चट्टानें
वाधा बनकर है आती
पर ये आगे बढने से
मुझे रोक नहीं पाती ।
निरंतर तेज़ बहना अब
बन गया मेरा स्वभाव
हतप्रभ है सभी देख कर
मेरा धारा प्रवाह ।
खेतों का लहलहाना
मुझे बहुत भाता है
प्यासे को तृप्त करना
भी मुझे खूब आता है ।
अफ़सोस है कि
कभी -कभी मेरे
कोप से गाँव हो
जाते है ग्रसित ।
बांध सकते है मुझे
ये ही सोच कर
देती है सबको भ्रमित ।
प्रकृति से ना कभी
करिये कोई खेल
मानव का नहीं इससे
कोसों तक कोई मेल ।
शैल पुत्री से टकराना
यानिं चूर चूर हो जाना ।
या ये कहू कि......... (कहावत है )
अपने मुख की खाना ।
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24 comments:
आप शायद गीत ग़ज़ल के बारे में कह रहीं हैं सो
कुछ अपनी पसंद के लिंक दे रहा हूँ ...शायद आपको पसंद आयें ....
http://amar-randomrumblings.blogspot.com/2009/10/blog-post.html
http://sarwatindia.blogspot.com/2009/04/22.html
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प्रकृति से ना कभी
करिये कोई खेल
मानव का नहीं इससे
कोसों तक कोई मेल ।
शैल पुत्री से टकराना
यानिं चूर चूर हो जाना ।
सही कहा आपने प्रकृति से खेलना अर्थात मानव का अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है, इसके गंभीर परिणाम आज दृष्टिगोचर हो रहे है...
सामयिक रचना के लिए बधाई
मुख्य बात यही है की प्रकृति से कोई खेल ना करें
sundar rachna !
एक सारगर्भित प्रेरक रचना।
बेहतरीन शब्द रचना ।
नदी की ये यात्रा बहुत खूबसूरती से लिखी है...इसके पीछे सटीक सन्देश देती रचना बहुत अच्छी लगी...सारगर्भित रचना....बधाई
सुन्दर और सरल शब्दों में रची गई कविता..."
saargarbhit rachna ,kavita ji ki baaton se main bhi sahmat hoon ,wo bilkul sach kahi .hamesha ki tarah sundar .disha gyan karati hoon .
बेहतरीन प्रस्तुति ......प्रकृति को समर्पित ये सुन्दर रचना
बहती हुई नदी सी बहती हुई कविता ! मेरे जिगर का एक टुकड़ा आपके शहर में है , पिछले साल आज की तारीखों में मै भी आपके शहर में ही थी |
खेतों का लहलहाना
मुझे बहुत भाता है
प्यासे को तृप्त करना
भी मुझे खूब आता है ।
....बहुत सुन्दर!!!
प्रकृति से ना कभी
करिये कोई खेल
मानव का नहीं इससे
कोसों तक कोई मेल ..
सरल शब्दों में आप ने हमेशा प्रकृति के ऊपर लिखा है ... बहुत ही अच्छा लिखा है ...
ये रचना भी अच्छा संदेश देती है ...
सरल शब्दों में रची गई सुन्दर रचना....!!
You write beautiful!!
प्रकृति से ना कभी
करिये कोई खेल
मानव का नहीं इससे
कोसों तक कोई मेल
जिस दिन हमें ये बात समझ आ जाएगी उस दिन तो दुनिया का कायाकल्प ही हो जायेगा
very nice poem
i totally agree with you
its like aaa bail muze mar
वाह,बहुत खूब .सतत प्रवाहिनी सरिता की भांति आगे बढ़ें .
रुकना,झुकना, थकना, चूकना आपके शब्दकोष में नहीं होने चाहिए
"कुंता एक लड़की का नाम है और वो हकीकत में भी है बरघाट में रहती है.............."
wah....
मिट गई है जो अपने हाथों से, वो लकीरे ढूढ़ंते रहे ।
तराश सके हमारे तकदीर को, ऐसा कारीगर ढूढ़ंते रहे ॥
दूर होकर भी भुला ना पाया है, ये दिल उनको,
फ़ासलों के दरमियाँ हम नज़दिकीयाँ ढूढ़ंते रहे ॥
Wah! Kya gazab ki rachana hai..aur waisahi sandesh!
very good.
बहुत अच्छी रचना है। प्रकृति से छेड़छाड़ हमेशा प्रलय की संभावना को बढ़ाती है।
राह मे कई चट्टानें
वाधा बनकर है आती
पर ये आगे बढने से
मुझे रोक नहीं पाती ।
निरंतर तेज़ बहना अब
बन गया मेरा स्वभाव
हतप्रभ है सभी देख कर
मेरा धारा प्रवाह ।
खेतों का लहलहाना
मुझे बहुत भाता है
प्यासे को तृप्त करना
भी मुझे खूब आता है ।
- yeh zindagi ka phalsafa ho jaye to duniya hi baal jayed
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