Friday, August 5, 2011

छुई मुई

नदी जब
पहाड़ी पथरीले
रास्ते से
गुजरती है
चट्टानों से
टकरा टकरा कर
कल कल नाद
करते हुए
बिना कोई
विराम किये
निरंतर बस
आगे बडती है
कितनी अल्हड
तब लगती है ।

पर मैंने
इसका वो
शांत सौम्य
और गंभीर
स्वरुप भी
देखा है
जब इसने
स्वयं के
अस्तित्व को
समतल को
किया है अर्पित
और यों
शांति कर ही
ली अर्जित ।

अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।

ये कविता मैंने दो साल पहिले लिखी थी अब दो वर्ष बाद इसे दो पाठक मिले । सुषमाजी और संगीता जी . इन्होने कमेन्ट भी छोडे है मुझे लगा कि शायद पढने लायक रही होंगी इसीसे फिर से पोस्ट कर रही हूँ....कट पेस्ट नहीं किया है फिर से अपने भावो को शव्द दिए है.....तब इसका शीर्षक अनुभूति था अब मन कह रहा है इसका नाम छुई मुई रखू।

44 comments:

सदा said...

एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ..आभार ।

Anupama Tripathi said...

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुराणी हलचल पर होगी.शनिवार (६-८-११)को.कृपया अवश्य पधारें...!!

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन कविता।


सादर

kayal said...

कंकर का पानी से मिल तरंगे पैदा करना ....
सुंदर विचार हैं...
शांति और संवेदनशीलता का कितना गहरा नाता हैं....

vandana gupta said...

बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सरिता दी!
आपकी कविता की सुंदरता इस बात में होती है कि उनमें व्यर्थ का शब्दजाल नहीं होता, भाव ह्रदय से निकले होते हैं और स्वतः अभिव्यक्त होते हैं.
नदियों के स्वभाव से मानव मन का चित्रांकन अद्भुत है!!
आभार दी!!

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर बधाई

Anonymous said...

कम, सरल और सीधे शब्दों में बड़ी बात

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:):) जब यह रचना पढनी शुरू की तो लगा की अभी तो पढ़ी है :):)

अंत में रहस्य पता चला ..नाम परिवर्तित है .. अच्छी प्रस्तुति

kshama said...

जब इसने
स्वयं को
समतल को
किया है अर्पित
और यों
शांति कर ही
ली अर्जित ।
Kaash! Insaan bhee ye hunar seekh le!

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बढिया है

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय सरिता जी
नमस्कार !
बेहतरीन अभिव्‍यक्ति
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

संजय भास्‍कर said...

ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

सागर said...

behad khubsurat abhivaykti....

रेखा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

प्रवीण पाण्डेय said...

हलचल तो कंकड़ों से हो जाती है, शान्त स्वयं को करनी होती है।

Arvind kumar said...

अच्छी कविता....
सादर

रचना दीक्षित said...

सुंदर बिम्ब प्रयोग खूबसूरत रचना में. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति...
आभार.

डॉ टी एस दराल said...

अल्हड़ नदी नवयौवना सी नटखट ! बहुत बढ़िया तुलना की है ।
सुन्दर अभिव्यक्ति ।

mridula pradhan said...

एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।
.....bahut sahi aur sunder baat.

ranjana said...

Ma'am your poetry is to good and your new profile picture is also very beautiful...apko sirf blog ke through janti hu par aap bahut apni si lagti hain....:)shayad isiliye apke blog ka name apnatv hai yani "apnapan"...:)

मनोज कुमार said...

इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।

मनोज भारती said...

मानवीय मन की नदी से तुलना सुंदर बन पड़ी है। आपका कविता कहने का अंदाज़ अच्छा लगता है...सीधे-सीधे भाव अभिव्यक्ति मन को छू जाती है।

Anonymous said...

एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।
sach bahut hi sundar rachna hai ,thik kiya phir se daalkar .

डॉ. मोनिका शर्मा said...

एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।

Ek behtreen rachna.....

Kunwar Kusumesh said...

बेहतरीन कविता.

Manish said...

सुन्दर कविता!! अनुभूति ही सही था..

Satish Saxena said...

समय के साथ बदलाव आना ही है ! शुभकामनायें आपको !

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत ही खूबसूरत रचना...

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

pahli baar aapke blog pe aana hua..accha laga..main blog jagat per naya hoon..thoda bahut likh leta hoon..aapko sadar amantrit kar rah hoon apne blog pe aane ke liye taki meri tamam kamiyan ujagar ho sakein

Dorothy said...

गहन भाव समेटे बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

SKT said...

अच्छी कविता!

sm said...

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

virendra sharma said...

बिना कोई
विराम किये
निरंतर बस
आगे बडती है
कितनी अल्हड
तब लगती है ।
प्रकृति (नदी )का मानवीकरण करती सुन्दर रचना .कृपया -"बढती है "करलें .जहां मे है उसे में कर ले ..
कृपया यहाँ भी पधारें .Super food :Beetroots are known to enhance physical strength,say cheers to Beet root juice.Experts suggests that consuming this humble juice could help people enjoy a more active life .(Source: Bombay Times ,Variety).

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महेन्‍द्र वर्मा said...

अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है

भावनाओं की खूबसूरत अभिव्यक्ति।

S.N SHUKLA said...

so nice post

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल

Unknown said...

बहुत अच्छा लिखती हैं आप।

Vivek Jain said...

एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।

बेहतरीन कविता, आभार
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

शरद कोकास said...

नदी के बिम्ब के बहाने बहुत कुछ कह गईं हैं आप ।

Anonymous said...

bahut hi achhi soch....


humara bhi hausla badhaaye:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

ज्योति सिंह said...

अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।
bahut hi achchha likha hai ,main tippani kar gayi rahi pata nahi chhapa kyo nahi ,achchha hua dobara padhne aa gayi .

amrendra "amar" said...

अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ..आभार ।

कविता रावत said...

Nadi ke bimb ka madhyam se bahut badiya saarthak rachna...
..Maa ji aap jab bhi aapka BHOPAL se aage ka safar ho to mujhe batayega ji.. main aapse milne kee koshish karungi..Saadar!

SANDEEP PANWAR said...

शुभ दीपावली,