Monday, April 26, 2010

सम्भावना

जब

शांत

सरल
संतुष्ट
चित्त को
कल्पित
सम्भावना
भरमा
जाती है ।

तब

बैचेनी
आतुरता
उत्सुकता
सभी सुप्त
भावनाए
फिर से
गरमा
जाती है ।

Saturday, April 24, 2010

बचाव

जली कटी
बाते सुनना
हर एक के बस
की बात नहीं
वैसे कबीर दास जी
" निंदक नियरे राखिये "
कह गए है
पर इसका
अनुसरण करना
इतना आसान
भी नहीं ।
छींटा कशी गर
बन गया है
आपके अपनों
का स्वभाव ।
चुप्पी और
मुस्कराहट का
कवच पहिन कर
करिये बस आप
अपना बचाव ।
ज्ञानी लोगो
को चाहिए कि
करे निंदा के
पथ का त्याग ।
भला दूसरो का
चाहते है तो
दिखाए उन्हें
सही मार्ग ।

Monday, April 19, 2010

विवेक

जब उत्तेजना
और विवेक मे
आपस मे ठनी
माहौल मे
छा गयी
तना - तनी
सब बिगड़ गया
बात ना बनी ।
उलझने हो गयी
और अधिक घनी ।
जब कोई प्रयास
काम नहीं आया
टकराव से इन्हें
बचा नहीं पाया
अंतर्मन ने एक
उपाय सुझाया
हमने उत्तेजना
को था सुलाया
विवेक को
फिर से जगाया
अब तथ्य को
सत्य के प्रकाश मे
शिष्टाचार
का
जामा पहनाया
तब कंही जाकर
मनचाहा असर
दिख पाया
और बिगड़ा काम
यूं बन पाया
आखिर विवेक
सदा ही
जीवन मे
काम है आया ।

Friday, April 16, 2010

ज्वालामुखी

हजारो उड़ाने
करनी पडी
है रद्द और
यात्री गण है दुखी
प्रकृति ही
कारण है इसका
आईसलैंड मे
जो भड़का है
एक भयंकर
ज्वालामुखी ।
इससे निकली
राख ने हवा
से हाथ मिला
सारे यूरोप मे
आसमां पर छा
अपना झंडा
बेझिझक होकर
है लहराया ।
इंसान कितना
असहाय है
प्रकृति के आगे
एक वार
फिर प्रकृति ने
ये पाठ है पढाया
विज्ञान ने बहुत
प्रगति की है
ये है स्वीकार
पर प्रकृति की
क्षमता को क्या
कोई भी कर
सकता है नकार?

Wednesday, April 14, 2010

दम्भ

जब दम्भ को
आप मन के
द्वार से ही
स्वयं सयत्न
खदेड़ बाहर
निकाले ।
ताक मे जैसे
बैठे हो रिश्ते
तुरंत आकर
वापस यंहा
अपना वो
घर बसाले ।

Sunday, April 11, 2010

दर्पण

मेरी रचित कविताए
मेरी सोच का है दर्पण
जो अनुभवों ने सिखाया
किया है वो ही अर्पण ।

अपना पूरा जीवन जिसने अपनी घर गृहस्थी को दिया वो एक आम नारी हूँ मै । जो संस्कार मुझे मिले उन्ही की छाया मे अपनी बेटियों की परवरिश की । मेरी दो बेटियाँ अब अपनी गृहस्थी मे व्यस्त है ।एक समय ऐसा था दिन हाथ से फिसल जाते थे तब बच्चे छोटे थे । जीवन की सार्थकता इसी मे है कि हर समय को भरपूर जीना चाहिए । बस ये ही मैंने किया ।
बड़ी बेटी के प्रोत्साहन से ही मै आप लोगो के बीच आई । उसे पूरा विश्वास था कि एक वार लिखना शुरू करूंगी तो लिख ही लूंगी । मेरा नाम सरिता है और मेरे घर का नाम असल मे अपनत्व है जो मैंने अपने ब्लॉग को भी दिया है ।
सादगी , सच्चाई , सय्यम और स्वावलम्बन जिन्दगी को संवार देते है ऐसा मेरा अनुभव है ।
पड़ने का शौक बचपन से था और लिखने का अब इस बासठ साल की उम्र मे पाला है ।
आप
लोगो का जो स्नेह मिला उसकी मै बहुत आभारी हूँ । अब तो लगता है परिवार फिर से बड़ गया है ।
आज इस शतक के साथ ..................
सरिता

Friday, April 9, 2010

मुद्दे

कई वार मुद्दे
स्वयं उठते है
कभी ज़बरन
उठाए जाते है ।
फलस्वरूप एक
आम आदमी
भौचक्का सा
दर्शक ही बन
रह जाता है ।
स्वार्थी तत्व
गरमागरमी का
माहौल पैदा कर
इसकी थाप पर
तांडव नृत्य
कर जाते है ।
मुद्दे ना सुलझते है
ना सुलझाए
ही जाते है ।
और असली और वो
ज़बरन उठाए मुद्दे
भविष्य की आस पर
और कोई उपाय ना पा
थक हार सो जाते है

Monday, April 5, 2010

नदी के दिल से (१)

रवि का ताप
और हिम पर्वत का
इसे ना सह पाना
निरंतर तप कर
पिघल कर बहना
जल का रूप ले गया
और मुझे जन्म दे गया ।
बरसात व नहरों ने मुझे
अपना दिया भरपूर साथ
मेरा अस्तित्व नहीं
बना ऐसे ही अकस्मात ।
घनघोर घटाओं से
है मुझे असीम प्यार
ये बरस रखती है
मेरा अस्तित्व बरकरार ।
राह मे कई चट्टानें
वाधा बनकर है आती
पर ये आगे बढने से
मुझे रोक नहीं पाती ।
निरंतर तेज़ बहना अब
बन गया मेरा स्वभाव
हतप्रभ है सभी देख कर
मेरा धारा प्रवाह ।
खेतों का लहलहाना
मुझे बहुत भाता है
प्यासे को तृप्त करना
भी मुझे खूब आता है ।
अफ़सोस है कि
कभी -कभी मेरे
कोप से गाँव हो
जाते है ग्रसित ।
बांध सकते है मुझे
ये ही सोच कर
देती है सबको भ्रमित ।
प्रकृति से ना कभी
करिये कोई खेल
मानव का नहीं इससे
कोसों तक कोई मेल ।
शैल पुत्री से टकराना
यानिं चूर चूर हो जाना ।
या ये कहू कि......... (कहावत है )
अपने मुख की खाना ।

Friday, April 2, 2010

निकाहनामा

दो दिन से हर टी वी चैनेल पर
शोर गया है मच
आयशा का ये निकाहनामा
झूठ है या सच ?

आज ये बात समझ मे
पूरी तरह से है आई ।
बुजुर्गो ने कान पक गए
ये कहावत क्यों बनाई ।

तिल का ताड़ करना
कोई इनसे सीखे ।
ना बाबा ना ये कला
सीख आप क्या कीजे ?

Thursday, April 1, 2010

आशा किरण

तड़पते
तरसते
कुम्हलाते
मुरझाते
घुटते
रिसते
घायल
पीड़ित
अंधकार
मे डूबे
दिल को ।
रोशनी
हौसला
जीवनदान
दे जाती है
एक छोटी
नन्ही सी
आशा किरण ।