दलितों का हो उत्थान
उन्हें भी मिले पूरा सम्मान
ये ही थी संविधान की कोशिश
ये ही थी गांधीजी की ख्वाहिश ।
अब समय ने ली है करवट
परिस्थितियाँ भी बदली है
साफ़ सुथरी नीति की जगह अब
दल बदल ने जगह ले ली है ।
अब हर क्षेत्र मे मिलता है
आरक्षण का बोल बाला
और चारों ओर हम देखते है
बस घौटाला ही घौटाला ।
नैतिकता को रख
ताक़ , दलित नेता
दौलत प्रदर्शन से
क्यों कर घबराए ?
लक्ष्मी जी की तो
असीम कृपा है उन पर
असामाजिक तत्व भी
पूरा साथ निभाए ।
दलित भी बुत बने
सब कुछ है देख रहे
उनके दलित नेता के
बुत जो है बन रहे ।
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26 comments:
वाह वाह...क्या व्यंग रुपी शब्दों कि तलवार चलायी है.....बहुत खूब...बढ़िया प्रस्तुति
और बुतों को हार भी तो डल रहे !
कोई हार पर तो तलवार चलाये !!
दलित भी बुत बने....., sirf dalit hi nahi aur log bhi but ban baithe hai haath par haath dhare:(
बहुत अच्छा सामयिक व्यंग्य, शुभकामनायें !
nice
bahut steek vygy .
बहुत ही खूबसूरती से कटाक्ष में सब कुछ कह दिया. वैसे दलित आज दलित नेतायों के लिए भी दलित होते जा रहे हैं
badhiya!
लक्ष्मी जी की तो
असीम कृपा है उन पर
सही कहा आपने ....लक्ष्मी ही लक्ष्मी बरस रही है उनपर ....
कहीं दो जून खाने को नहीं निवाला
कहीं है नोटों की माला ही माला .....
कुछ लोग अपना बुत बनाने मे लगे हैं और बाकी खुद बुत बने खड़े नज़ारा देख रहें है । वाकई मे देश का क्या होगा? अच्छी समाजिक व्यंग ।
अब हर क्षेत्र मे मिलता है
आरक्षण का बोल बाला
और चारों ओर हम देखते है
बस घौटाला ही घौटाला ।
Bada karara vyang !
Ma'am aap jo vishay uthati hain wo vastav me auron se hat kar aur gambheer hote hain.. sundar chintan kahoon ya kavita ek hi baat to hai.
vyangya tarkash achhe sadhe hue hain.....waah
दलित भी अपनी सत्ता और ताकत का प्रदर्शन
करने में पीछे नहीं रहें
अफ़सोस हमारे देश की बागडोर इन के
हाथों में हैं
very well expressed by you
दलितों का हो उत्थान
उन्हें भी मिले पूरा सम्मान
ये ही थी संविधान की कोशिश
ये ही थी गांधीजी की ख्वाहिश
shuruaat hi zabardast lagi ,ek vyang aur samajik tasvir dikhai gayi ,sundar bahut sundar rachna .
"दलितों का हो उत्थान
उन्हें भी मिले पूरा सम्मान
ये ही थी संविधान की कोशिश
ये ही थी गांधीजी की ख्वाहिश।"
कोशिश तो यही होनी चाहिए लेकिन यहां तो सारे नेता (चाहे वो दलित हों या कोई और) मिलकर दलितों को छल रहे हैं.
राजनीति की दलदल में हर दल दल में एक ही दृश्य दिखाई दे रहा है... गेंडे की मोटी खाल वाले नेताओं पर काश आपके व्यंग्य वाणों का असर हो पाता..
http://samvedanakeswar.blogspot.com
you hit the sixer with this poem
great
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! लाजवाब रचना लिखा है आपने!
अब हर क्षेत्र मे मिलता है
आरक्षण का बोल बाला
और चारों ओर हम देखते है
बस घौटाला ही घौटाला ।
सही कहा है घौटाला ही घौटाला ही तो बचा है!!!!
समाज पर कटाक्ष करती रचना को सलाम
:) :) बुत तो पुराने हुए मैम, अभी तो मालाओ की बारी है :D
'दलित' शब्द एक सिम्बल बनगया है ......इसके आड़ किसी भी प्रकार कार्य किया जा सकता है
Bahut sundar aur jabardast vyangya ----maja aa gaya padhkar.
अच्छा व्यंग है ... आपका इशारा समझ गये ,.... बहुत खूब ....
दलितों का हो उत्थान
उन्हें भी मिले पूरा सम्मान
ये ही थी संविधान की कोशिश
ये ही थी गांधीजी की ख्वाहिश ।
अब समय ने ली है करवट
परिस्थितियाँ भी बदली है
साफ़ सुथरी नीति की जगह अब
dalito ki rajneeti ने जगह ले ली है ।
- dalito ki chinta chhodkar ab to Maya ki Mala hai.
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