Friday, February 26, 2010

रखवाले

इंसान ही इंसान का
सबसे बड़ा दुश्मन है
सच मानिये इसे
ये नहीं कोई उपहास ।
गवाह है हमारे
सभी ग्रन्थ महाभारत
रामायण , गीता और
भारत का अपना इतिहास ।
आदिकाल मे आदमी
कंदराओ, गुफ़ाओं मे भी
सुरक्षित महसूस करता था ।
अपने दुश्मन को आसानी से
पहचान , परख सकता था ।
और आज का आलम
ये है कि हमारे
तथाकथित सभ्य चुने नेता
अपनो के बीच भी
अपने को सुरक्षित नहीं
महसूस करते है ।
इसीलिये तो स्वयम
की सुरक्षा के लिए
ब्लैक कमांडोज़* की
डीमांड* रखते है ।
आम आदमी की जान
की , नहीं रह गयी
अब कोई कीमत ।
हादसों मे मरते रहते
है यूं ही ये अनगिनत ।


सोचती हूँ .......
ऐसे नेता

जिन्हें अपनी ही जान के
पड़े हो लाले ।
क्या वे काबिल है ?
बनने के लिए
देश के भविष्य
के रखवाले .........................

अभी - अभी बजट पेश होते समय देखा है जो नज़ारा ।
इस तरह की नेतागिरी से तो विश्वास है उठा हमारा । ।

*क्षमा करे इन अंग्रेज़ी शव्दों के प्रयोग के लिये

19 comments:

रश्मि प्रभा... said...

आवेश में ऐसे शब्द निकल जाते हैं......सही बात कही है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिलकुल सही लिखा है आपने....नेताओं को तो सुरक्षा मिल जाती है पर आम आदमी क्या करे?
और बजट की बात तो कुछ पूछिए ही नहीं..आम आदमी को तो ये वैसे ही मार डालेंगे...सुरक्षा की ज़रूरत ही नहीं...

Parul kanani said...

aam aadmi to pahle se hi mara hua hai..

करण समस्तीपुरी said...

कविता अच्छी लगी. वर्तमान समाज का यथार्थ चित्रण. नेतृत्व के प्रति अविश्वास और क्षोभ मुखर हैं. किन्तु शिल्प कमजोर लगा. शिल्प की कमजोरी के कारण कविता में निहित व्यंग्यानुभूती चमत्कारिक नहीं बन रहा है !!! कवयित्री छंदमुक्त कविता लिखते हुए भी कहीं-कहीं तुकबंदी के मोह से नहीं बच पायी हैं. कई स्थानों पर छंद भंग भी है.......... यथा ---
ये नहीं कोई उपहास ।
गवाह है हमारे
सभी ग्रन्थ महाभारत
रामायण , गीता और
साथ ही पूरा इतिहास ।
मात्रा की अधिकता छंद का अनुशासन तोड़ रही है !
अब कोई कीमत ।
हादसों मे मरते रहते
है यूं ही अनगिनत ।
यहाँ भी मात्राओं का असंतुलन प्रवाह बाधित कर रहा है !!
कुल मिला कर यही कहूँगा कि कविता अच्छी है..... और अच्छी हो सकती थी !!
स्वयम
की सुरक्षा के लिए
ब्लैक कमांडोज़* की
डीमांड* रखते है ।
पंच-लाइन बेजोर है !

Dev said...

''kitna badal gya insaan ''........bhetreen prastuti

ज्योति सिंह said...

bahut hi achchha aur sachcha likha hai aapne ,bade dhyaan se padhti rahi ,sundar ,

Pawan Nishant said...

samyik baat hai, holi ki shubhkamnayen.

Ravi Rajbhar said...

Maujuda halat ha sahi chitran kiya hai aapne...badhai.

kshama said...

इंसान ही इंसान का
सबसे बड़ा दुश्मन है
सच मानिये इसे
ये नहीं कोई उपहास ।
Gar ye dushmani khatm ho jay to saaree seemayen simat jayen! Qudratne bakshi dhartee kitnee sundar ho jay!
Holee kee anek shubhkamnayen!

दिगम्बर नासवा said...

ऐसे नेता बस अपने ही रखवाले हैं ....... गहरी सोच से निकली है यह रचना ..
आपको और आपके समस्त परिवार को होली की शुभ-कामनाएँ ...

ज्योति सिंह said...

aapko bhi bahut bahut saparivaar holi mubarak ,sabke jeevan me khushiyon ke rang barse yahi kaamna hai

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आज सुरक्षित कोई नहीं है. महंगाई का यही हाल रहा..लोग भूख से मरने लगे तो वह दिन भी आएगा जब देश की ८० प्रतिशत जनता हमें घरों से खींचकर मारेगी और हम कुछ नहीं कर पाएँगे.
हाँ.. बड़े चोर को बड़ा खतरा होना स्वाभाविक है.
...होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ.

रचना दीक्षित said...

आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
सच कहा आपने जब अन्दर आक्रोश होता है तो ऐसे ही निकल कर बाहर आता है.अच्छी रचना

Shalabh Gupta "Raj" said...

आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं....
सादर व साभार !
शलभ गुप्ता

निर्मला कपिला said...

आपका आक्रोश समझ मे आता है ये शायद सब के मन की आवाज़ है। मगर क्या करें। आपको व परिवार को होली की शुभकामनायें

दीपक 'मशाल' said...

ekdam saral bhasha me kahi gayi satya kavita.. prabhavi lagee..
इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)

होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...

ज्योति सिंह said...

sarita ji main phone lagai rahi shobhna ji ke ghar magar koi uthaya nahi ,lagta hai kahi saparivaar nikal gaye hai ,nahi to koi to phone uthata ,thodi fikr to ho gayi hai lekin raasta nahi mil paa raha .

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

amita said...

जो इंसान खुद सुरक्षित नहीं हैं
उसे ब्लैक कमांडो की जरूरत होती हैं
ऐसे इंसान क्या हमारी आम आदमी की
रक्षा करने के काबिल हैं ?
सही सवाल है आपका