Friday, February 26, 2010

रखवाले

इंसान ही इंसान का
सबसे बड़ा दुश्मन है
सच मानिये इसे
ये नहीं कोई उपहास ।
गवाह है हमारे
सभी ग्रन्थ महाभारत
रामायण , गीता और
भारत का अपना इतिहास ।
आदिकाल मे आदमी
कंदराओ, गुफ़ाओं मे भी
सुरक्षित महसूस करता था ।
अपने दुश्मन को आसानी से
पहचान , परख सकता था ।
और आज का आलम
ये है कि हमारे
तथाकथित सभ्य चुने नेता
अपनो के बीच भी
अपने को सुरक्षित नहीं
महसूस करते है ।
इसीलिये तो स्वयम
की सुरक्षा के लिए
ब्लैक कमांडोज़* की
डीमांड* रखते है ।
आम आदमी की जान
की , नहीं रह गयी
अब कोई कीमत ।
हादसों मे मरते रहते
है यूं ही ये अनगिनत ।


सोचती हूँ .......
ऐसे नेता

जिन्हें अपनी ही जान के
पड़े हो लाले ।
क्या वे काबिल है ?
बनने के लिए
देश के भविष्य
के रखवाले .........................

अभी - अभी बजट पेश होते समय देखा है जो नज़ारा ।
इस तरह की नेतागिरी से तो विश्वास है उठा हमारा । ।

*क्षमा करे इन अंग्रेज़ी शव्दों के प्रयोग के लिये

Monday, February 22, 2010

बेटियाँ

एक समय आता है जब
छूटता है बाबुल का आँगन ।
नया क्षितिज पाती है बेटियाँ
मिले जब इन्हे मनभावन ।

उनके अब अपने सपने है
और है एक नया उल्हास ।
दूर तो ये है जरुर हमसे
पर पाती हूँ सदा मन के पास ।

( बेटी को पराये धन की संज्ञा तो नही दूंगी मै )

पर होती है ये धरोहर ।
अपने धरोंदे को खूब
संवारने में जुट जाती है
बनाना जो है इसे मनोहर।

( बरसों पहले मेरा आँगन छूटा, अब छूटा इनका )

ये तो है जीवन धारा ।
खुश रहे सदैव बेटियाँ
अपने - अपने अंगना में
ये ही है आशीष हमारा ।


हमारी बगियाँ मे खिले फूल है बेटियाँ
अब साजन का घर महकाएंगी
जब भी खुशबू की बात चलेगी
इनकी याद आ , हमें खूब भरमाएगी ।


शिक्षा संस्कार नम्रता और दुलार
इसी का दिया हमने इन्हें उपहार ।
अब बस एक माँ दुआ करती है
थम जाए इनके अंगना, आके बहार ।

Friday, February 19, 2010

आईना

मेरे कमरे के आईने पर
जब भी नज़र डालूँ मै
हर बार एक बदली सी
शकल नज़र आती है ।

जो मुझे चौंका जाती है
मेरी अपनी समझ
स्वयं को पहचानने मे
यूं उलझ सी जाती है ।

अखबार में पढ़े गए
समाचार रोज़ ही
मेरी भावनाओं से
खिलवाड़ करते है ।

कभी मुस्कान देते है
तो कभी देते है उदासी
कभी शांति देते है
है तो कभी बदहवासी ।

कभी सारी वेदना
मुझमे सिमट आती है
अपनी खुशियाँ भी इनके
तले दफ़्न हो जाती है ।

आईना तो जो देखे
वो ही है ये दिखाता ।
मेरे चेहरे के बदलते भाव
ये तो है भांप ही जाता ।

Saturday, February 13, 2010

सितम

इंसान पर जब कभी
हैवानियत का रंग चढ़ जाए ।

अपनी सारी हदों को
बेखौफ वो पार कर जाए ।

चिंगारी को हवा दे
आग लगाने मे ये माहिर।

इनकी नियत मे खोट है
ये तो अब जग ज़ाहिर ।

कंही पर बम विस्फोट
तो कंही करे साजिश ।

क्या पा लेंगे ये हैवान
पैदा करके आपस मे रंजीश ।

ऊँच - नीच का अब
इन्हें होश भला कहाँ ?

अपने कदमो तले उन्हें
लगता है सारा जंहा ।

ये गफलत इन दरीन्दो की
ना जाने कब होगी ख़तम ?

कब इंसानियत की राह ये चलेंगे
कब ? कैसे ? खत्म होंगे इनके ये सितम ?

Thursday, February 11, 2010

पर्यावरण

पर्यावरण की समस्या को
ले , बड़े देश आँखे लेते है मीच
बड़े सम्मेलन निष्कर्ष तक नहीं
पहुचते , भंग होते अधबीच ।


जंगल काटे -शहर बसाए
आगे बड़ने की होड़ मे
कभी ना देखा हमने
तब अपने दाये - बाये ।


लेकर प्रगति की आड़ ।
पहाड़ नदी नालों
सभी से किया हमने
जी भर खिलवाड़ ।


प्रकृति ,जब भी ज्यादती होती
तुम देती हो एक दस्तक ।
तुम्हारी जगाने वाली प्रवृति
के आगे हम सभी नतमस्तक ।


अब आया समय अब तो
हम जगे और जगाए
सब मिलकर वृक्ष लगाए
पानी भी व्यर्थ ना बहाए ।


जरूरत है जागरूकता
जन - जन मे लाने की
भरसक कोशिश करनी है
उर्जा भी तो बचाने की ।


सरकार पर ही सब छोड़ दे
ये तो लगता उचित नहीं
आइये हम भी सहयोग दे
मेरी नज़र मे ये है सही ।

इस अभियान मे आप सब मेरे साथ है
ऐसा मेरा अटूट विश्वास है .......................................

Sunday, February 7, 2010

एक बात

स्वाभाविक तौर पर विचारो का मिलन
ये एक बात है
स्वार्थ हेतु विचारो का मिलन
ये अलग बात है ।
सही बातों का जम कर समर्थन देना
ये एक बात है
खुश करने के लिए हां मे हां मिलाना
ये अलग बात है ।
हित की जो सोंचे वो ही सच्चा हितेषी
ये एक बात है ।
दिल को खुश करने वाला ही भला लगे
ये अलग बात है ।


आज का सत्य ये है |


एक बात किनारे कर दी गई है |

और

अलग बात सब पर हावी हो गई है ।

Wednesday, February 3, 2010

गूंगा

मेरे जटिल
उलझे भावो को
जब शव्द
बड़ी सहजता
सरलता का
जामा पहना
तुरंत , सादर
गंतव्य तक
पंहुचा आते है ।
तो मुझे ये
विवश कर
रहे है ये
सोचने पर कि
कभी सीधी
सच्ची सरल
बात पहुचाने
के समय
ये शव्द
कंहा क्यों और
कैसे अद्रश्य
हो जाते है ?
हम निरर्थक
दूंड़ते रहते
है शव्दों को
और दूर दूर
तक इनका निशा
तक नहीं मिलता
और यों हमारे
सारे प्रयास
असफल
हो जाते है ।
और उस समय
और कोई रास्ता
नहीं पा
बेबस हो
हम , गूंगा
होने पर
मजबूर हो
जाते है