Sunday, January 24, 2010

सैलाव ( अतीत से ) २

स्वतंत्र भारत मे
ही मै जन्मी
बात है तब की
जब थी मै नन्ही ।
जबसे आया था मुझे होश
चारों ओर पाया था
एक नया ही जोश ।
कांग्रेस के हाथ थी तब
सत्ता की बागडोर ।
पंच वर्षीय योजनाओं का
शुरू हुआ था नया दौर ।
मुझे अच्छी तरह याद है
जब भी हमारे छोटे
गाँव नागौर मे
कोई भी नेता आते थे।
मेरे बाबूजी व सभी कांग्रेसी
चरखे पर सूत
कातने जुट जाते थे।
फिर कते सूत की लच्छीया
बनाई जाती थी ।
और हार की तरह सम्मान मे
श्रद्धेय नेताओं के
गले मे पहनाई जाती थी ।
पाठशालाओं मे भी
सूत कातना सिखाया जाता था ।
आजादी अंहिसा के मार्ग
पर चल कर ही मिली
ये बड़े गर्व से बताया जाता था ।
ईमानदारी , त्याग की भावना
वो देश के लिए कुछ
कर गुजरने का जोश
जो नेताओं की
रग रग मे बहता था ।
वो जज्बा आज इतिहास
बन कर है रह गया ।
भ्रष्टाचार , खुदगर्जी
और भौतिकता का ऐसा
सैलाव आया कि सब
तिनके की तरह इसके
साथ है बह गया ।

24 comments:

दिगम्बर नासवा said...

सच लिखा है ... अब ये बातें इतिहास हैं ....... रस्मी तौर पर कभी कभी २ अक्तूबर को चरखा निकलता होगा गाँधी समाधि पर ...... दस्तावेज़ है आपकी रचना ......

मनोज कुमार said...

आधुनिकता को निशाना बनाकर यथार्थ व भारतीयता के धरातल पर लिखित यह रचना बहुत अच्छी लगी।

amita said...
This comment has been removed by the author.
amita said...

आप ने सही कहा देश के लिए कुछ
कर गुजरने का जोश वो जज्बा आज इतिहास
बन कर है रह गया ।
हम उन श्रद्धेय नेताओं की तस्वीर को फूलों का
हार पहनाकर दो देश भक्ति के गीत गाकर फिर भूल
जातें हैं.

पूनम श्रीवास्तव said...

Aaj ke samaj aur logon kee soch ke satha badalate ja rahe manveeya moolyon ko aapane bahut sundarata ke sath prastut kiyaa hai.
Poonam

kshama said...

Gantantr diwas kee anek shubh kamnayen!

निर्मला कपिला said...

शुक्र मानिये कि दिखावे के लिये ही सही अभी लोग याद तो कर रहे हैं शायद कभी ये भी याद न रहे। आज के सच से रूबरू करवाती रचना।।गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपने बीते लम्हे याद करा दिए..आज सब औपचारिक हो कर रह गया है.....तकली खूब याद कराई....

गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें

कविता रावत said...

ईमानदारी , त्याग की भावना
वो देश के लिए कुछ
कर गुजरने का जोश
जो नेताओं की
रग रग मे बहता था ।
वो जज्बा आज इतिहास
बन कर है रह गया ।
भ्रष्टाचार , खुदगर्जी
और भौतिकता का ऐसा
सैलाव आया कि सब
तिनके की तरह इसके
साथ है बह गया ।
Sach se muhn nahi modh sakta koi bhi desh taraki ke saath na jane kyun deshpremiyon ki sankhya kam hue hai or dikhawa adhik...
Gantantra diwas ki haardik subhkamnayen...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

गणतंत्र दिवस के दिन वर्तमान के चेहरे पर अतीत की राख मलती इस पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.
..गणतंत्र दिवस की बधाई.

Shalabh Gupta "Raj" said...

"गण हो आगे , पीछे तंत्र !

तभी सफल होगा गणतंत्र !"

आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ......
सादर व साभार!
शलभ गुप्ता

दीपक 'मशाल' said...

ab to tab aur ab ke neta me tulna karna bhi unka apmaan hai maam... kavita achchhi hai..
Ganatantra diwas par shubhkamnayen
Jai Hind...

Ranjana said...

आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

ranjana said...

देखिये कितना दिल खोल के शुभकामनाएं दी है. एक नहीं दो नहीं तीन तीन बार..दरअसल ये गलती से हो गया. अतिरिक्त कमेन्ट हटा दीजियेगा और इस गलती के लिए माफ़ करियेगा..

इस्मत ज़ैदी said...

bahut sundar aur sateek rachna
gantantra divas ki bahut bahut shubhkamnayen

Kusum Thakur said...

"आधुनिकता को निशाना बनाकर यथार्थ व भारतीयता के धरातल पर लिखित यह "

बहुत अच्छी रचना !!
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!

Anonymous said...

वो जज्बा आज इतिहास
बन कर है रह गया ।
भ्रष्टाचार , खुदगर्जी
और भौतिकता का ऐसा
सैलाव आया कि सब
तिनके की तरह इसके
साथ है बह गया ।
जी हाँ सच और सही - आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई.

Anonymous said...

पाठशालाओं मे भी
सूत कातना सिखाया जाता था ।
आजादी अंहिसा के मार्ग
पर चल कर ही मिली
ये बड़े गर्व से बताया जाता था ।

uprokta panktiyone bachapan ki yad tarotaza kar di. abhaar. sundar abhivyakti ke liye abhinandan

ज्योति सिंह said...

vande maatram ,aapka apnapan dekh man aaj dohri khushi se jhoom utha abhi doosre blog par daali hoon idhar bhi daaloongi ,aajkal baithne me taklif ho rahi hai ,kandhe me bahut dard hai .aur aaj kolkata se rishtedaar bhi aaye hai .unhi ki taiyaari me bhi rahi .

अजय कुमार said...

समय परिवर्तन का सही जायजा

शोभना चौरे said...

bahut sundar .charkha ,takli sunne me hi kano ko sukun dete hai aur fir hmne bhi to chlaye hai iske sath hi ak cheej aur hoti thi kaps se binaoula nikalne ka ptiya aur slai .
aapne to bhuli bisri yado me panhucha diya .

Neelesh K. Jain said...

Khaadi ki jagah ab sadkon par
Plastic ke jhande bikate hain
Azaad huye kitne saal huye Phir bhi
sadkon parbhooke bacche dikhate hain

स्वतंत्र भारत मे
ही मै जन्मी
बात है तब की
जब थी मै नन्ही ।

Aapka bachpan bana rahe aur masoomiyat bhi ...bade hone se to kuch mila nahin...
aapka Neelesh .

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत सुन्दर विचार
पुरानी यादों को तरोताजा कर दिया
बहुत बहुत आभार

Urmi said...

आपने बड़े ही सुन्दरता से बदलते हुए समाज का सही चित्रण प्रस्तुत किया है! हर एक शब्द सच्चाई का ज़िक्र करते हुए आपने उम्दा रचना लिखा है ! बहुत अच्छा लगा!