Wednesday, January 13, 2010

अनुभव

सदा स्पष्ट बोलना
अपने जीवन मे
पड़ता है कभी
बड़ा ही भारी

ऐसे माहौल मे
घुलना - मिलना दुभर
जंहा आपकी सोंच
हो दूसरों से न्यारी ।

11 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिलकुल सही बात कही है.....जहाँ सोच ना मिलती हो वहाँ मन का मिलना मुश्किल हो जाता है ....बहुत खूब

Razi Shahab said...

its real truth...nice post thnx for this post

मनोज कुमार said...

जीवन की अभिव्यक्ति का सच।

रश्मि प्रभा... said...

स्पष्टवादिता हर एक को समझ नहीं आती, मुल्लमा चढ़ी बातें ही अच्छी लगती हैं

निर्मला कपिला said...

सही बात कही है आपने। मगर कई लोग झूठा नकाब लगा कर बोल लेते हैं। शुभकामनायें

ज्योति सिंह said...

ऐसे माहौल मे
घुलना - मिलना दुभर
जंहा आपकी सोंच
हो दूसरों से न्यारी ।
sach hi hai ekdam ,main aese jagah me aksar bore ho jaati hoon .

Harshvardhan said...

very nice post

Urmi said...

मकर संक्रांति की शुभकामनायें! बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! बधाई!

हास्यफुहार said...

सच कहा है आपने।

शोभना चौरे said...

saty vachan .
meetthi meethi bato se bachna jara duniya ke logo me hai jadoo bhra .

amita said...

ज्यादा तर लोग स्पस्ट बातें सुन नहीं सकतें
और स्पस्ट वक्ता को ईस हाकिकत का सामना
करना पड़ता हैं.