Thursday, February 11, 2010

पर्यावरण

पर्यावरण की समस्या को
ले , बड़े देश आँखे लेते है मीच
बड़े सम्मेलन निष्कर्ष तक नहीं
पहुचते , भंग होते अधबीच ।


जंगल काटे -शहर बसाए
आगे बड़ने की होड़ मे
कभी ना देखा हमने
तब अपने दाये - बाये ।


लेकर प्रगति की आड़ ।
पहाड़ नदी नालों
सभी से किया हमने
जी भर खिलवाड़ ।


प्रकृति ,जब भी ज्यादती होती
तुम देती हो एक दस्तक ।
तुम्हारी जगाने वाली प्रवृति
के आगे हम सभी नतमस्तक ।


अब आया समय अब तो
हम जगे और जगाए
सब मिलकर वृक्ष लगाए
पानी भी व्यर्थ ना बहाए ।


जरूरत है जागरूकता
जन - जन मे लाने की
भरसक कोशिश करनी है
उर्जा भी तो बचाने की ।


सरकार पर ही सब छोड़ दे
ये तो लगता उचित नहीं
आइये हम भी सहयोग दे
मेरी नज़र मे ये है सही ।

इस अभियान मे आप सब मेरे साथ है
ऐसा मेरा अटूट विश्वास है .......................................

25 comments:

मनोज कुमार said...

इस रचना में यथार्थबोध के साथ आपकी कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जागरूक करती हुई आज के सन्दर्भ में सुन्दर रचना....और सही आवाहन ....जितना हम प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे उतना ही प्रकृति हमसे करेगी....

Dev said...

प्रक्रति के प्रति जागरूकता .......बहुत सुन्दर रचना ....हम आपके साथ है

संहिता said...

बहुत बढिया लिखा है ।
आपकी कविता आज की हकीकत बयान करती है ।

रश्मि प्रभा... said...

hum sab saath saath hain

Parul kanani said...

bilkul saath hain :)

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

यथार्थ बोध कराती सुन्दर रचना. बधाई.

dipayan said...

आपने अपने कविता के माध्यम से जो सन्देश हम लोगो तक पहुँचाया है,उसके लिये धन्यवाद । हम लोग जागरुक होंगे, तभी, प्रकृति बनी रहेगी ।

निर्मला कपिला said...

ाकसर देखा गया है कि हर नाकामी या बुराई का ठीकरा सरकार के सिर फोद कर हम फ्री हो जाते हैं मगर आपने एक सार्थक प्रयास किया है जन चेतना को जगाने का
सरकार पर ही सब छोड़ दे
ये तो लगता उचित नहीं
आइये हम भी सहयोग दे
मेरी नज़र मे ये है सही ।

इस अभियान मे आप सब मेरे साथ है
ऐसा मेरा अटूट विश्वास है
बिलकुल सही कहा है हम आपके साथ हैं धन्यवाद्

दिगम्बर नासवा said...

आपका चिंतन स्वाभाविक है ..... बहुत सार्थक लिखा है ..... प्राकृति से खिलवाड़ रोकना ज़रूरी है ...
आपको महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......

Urmi said...

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ आपने बखूबी प्रस्तुत किया है! आज की सच्चाई को बयान करते हुए एक उम्दा रचना!

पूनम श्रीवास्तव said...

aadarniyaa apnatava ji,
aap hamesha sehi mere blog par aakarmera utsaha vardhankarati rahin hai.mujhe purna viswashai ki aap isi tarah mera marg darshan karati rahengi.
aapne jivan se judi bahut hi anmol preranapad kavita likhi hai.
mujhe bhi lagta hai ki iske liye ham sabko ekjut hona padega.
poonam

कविता रावत said...

Maaji ko महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह!

Kulwant happy said...

पर्यावरण aur ek baat dono hi bahut shandar rachanayen hain aur vichar pardan karti hain...

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 13.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

दीपक 'मशाल' said...

स्वाभाविक रूप से आपके साथ हैं.. पर्यावरण के साथ हैं... कविता सुन्दर बनी..
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

Neeraj Kumar said...

जंगल काटे -शहर बसाए
आगे बड़ने की होड़ मे
कभी ना देखा हमने
तब अपने दाये - बाये ।

जरूरत है जागरूकता
जन - जन मे लाने की
भरसक कोशिश करनी है
उर्जा भी तो बचाने की ।

ईमानदार चिंता और सार्थक आह्वाहन

Anonymous said...

सच्ची रचना सच्ची बात
आओ हम सम देंगे साथ

रचना दीक्षित said...

बहुत प्रभावशाली रचना

मेनका said...

bahut hi sundar..mai bhi pryavarn premi hoon.aapke saath hoon ise bachane me.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आदाब
पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिये सार्थक रचना

sm said...

excellent poem
with education

स्वप्न मञ्जूषा said...

ye aaj ka sach hai...
aaj ka maanv prakriti se kitna vimukh ho gaya hai aur uske parinaam kya hai..sochne ki fursat hi kahan hai...kya pata ham kya dekar jaa rahe hain apne aane waali pidhi ko..
bahut hi sam-saamyik rachna..
aabhaar..