Wednesday, November 4, 2009

दिल

दिल कांच की भांति
आजकल टूटते नही ।
खोजोगे अगर आप एक
तो मिलेंगे कई ।
जिंदगी भर साथ
निभाने की बातें
आजकल नही होती ।
सभी आज मे जीना
पसंद करते है
भविष्य की चिंता
किंचित नही होती ।
दिल की कदर
अब वो नही रही
बदल गई है ।
है ये आज की दास्ताँ ।
रहने को दिल मे
जगह नही चाहिए
एक अच्छे मकान का
बस है वास्ता ।
आजकल लैला - मजनू
जैसे किस्से सुनने -पड़ने
मे कत्तई नही आए ।
हीर
राँझा के किस्से भी
इतिहास के पन्नो की
ही शोभा बस बढाए ।
नैतिक मूल्यों मे जो
आया है इतना पतन ।
उत्थान के लिए , हमें
करने ही होंगे अब यतन ।

8 comments:

Poonam Agrawal said...

Very practical thoughts......jismein emotions ki koi jagah nahi hai......

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने जो दिल को छू गई! आपकी हर एक कवितायें मुझे बेहद पसंद है!

ज्योति सिंह said...

नैतिक मूल्यों मे जो
आया है इतना पतन ।
उत्थान के लिए , हमें
करने ही होंगे अब यतन
bahut uttam vichar hai aapke achchha likha hai .

कविता रावत said...

Bahut achhi baat kahi hai aapne aajkal to dil bachon jaisa koi khilona ho gaya hai, dhokha, farebipan, of samvedanheenta se bhara pata hai. Jeewan ko hansi majak ka khel samjhte hai aaj bahut se log.
नैतिक मूल्यों मे जो
आया है इतना पतन ।
उत्थान के लिए , हमें
करने ही होंगे अब यतन
Nisandeh jo kuch sache dilwale abhi bhi hain unhi naitik mulyun ko banaye rakhane ke liye yatan jarur karne hogi
Bahut badhai.

कविता रावत said...

दिल कांच की भांति
आजकल टूटते नही ।
खोजोगे अगर आप एक
तो मिलेंगे कई ।
जिंदगी भर साथ
निभाने की बातें
आजकल नही होती ।
Bahut achhi baat kahi aapne aajkal dil ko samjhane wale bahut hi kam log bachhe hai. Dil fenk bahut.
Badhai

दिगम्बर नासवा said...

बदलते समय के साथ साथ दिल भी बदल गए हैं ........... बहुत ही लाजवाब लिखा है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रहने को दिल मे
जगह नही चाहिए
एक अच्छे मकान का
बस है वास्ता ।

आज के समय को परिभाषित करती रचना
बहुत व्यावहारिक है ....
बधाई

संजय भास्‍कर said...

उत्थान के लिए , हमें
करने ही होंगे अब यतन ।
shaan daar rachna