Tuesday, September 22, 2009

मानसिकता

बात का बतंगड़ बनाना
तिल का ताड़ करना
लगी चिंगारी को
दबाने , बुझाने की जगह
हवा दे आग लगाना
और भड़काना |
अपने स्वार्थ के लिए
किसी भी मुद्दे को
राजनीति का
मुखौटा पहनाना |
ऐसी मानसिकता
समय समय पर
हम सब को
झेलनी पड़ती है |
कभी धरम के नाम पर
कभी जाति के नाम पर |
रक्षको से घिरे लीडर
तो हर हाल मे
सुरक्षित रहते है पर ........
ना जाने कितने
असहाय लोगो को
जान की आहुति
तक देनी पड़ती है |

6 comments:

ज्योति सिंह said...

gahari sachchai ko darshati sundar rachna .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

bilkul sach ....apane swarth ke liye hamaare rajneta kuchh bhi kar sakte hain....aur jhelna aam janta ko hi padta hai....aawam ki aawaz uthaati rachna bahut sashakt hai....badhai

sm said...

nice poem
very thoughtful

Swatantra said...

Very true.... Soch sabse mabi hotia hai..

Mumukshh Ki Rachanain said...

मुखौटा पहनाना

सही चित्रण किया है आपने सच का.

हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

amita said...

its the common man who suffers the most due to some act of highly influential people who have vested interest in everything they do.
its sad but its very true.