Saturday, September 26, 2009

विकृति

किसी का
दूसरों को
सदैव सताना
तकलीफ देना
चोट पहुचाना
और इसी मे
आनंद उठाना
अगर बन जाए
उसकी आदत
या फ़िर कहू कि
उसकी प्रकृति ।
चुप चाप
मत सहिये
जागिये और
कुछ करिये
ये क्रूर प्रकृति
वास्तव मे है
सोचनीय
दयनीय
उपचार योग्य
एक मानसिक
विकृति ।

7 comments:

Swatantra said...

In mind i am going through some thoughts like this.. Loved your thoughts!! Thanks for sharing!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

soch ki vikrati ko bahut sahi roop se vyakt kiya hai.....badhai

Urmi said...

बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!

ज्योति सिंह said...

sundar rachna .vijyadashmi ki shubhkaamnaaye .

amita said...

what we call in english "sadistic pleasure" alas ! some people are victim of the same.

संजय भास्‍कर said...

कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर रचना । आभार

ढेर सारी शुभकामनायें.

SANJAY KUMAR
http://sanjaybhaskar.blogspot.com