किसी का
दूसरों को
सदैव सताना
तकलीफ देना
चोट पहुचाना
और इसी मे
आनंद उठाना
अगर बन जाए
उसकी आदत
या फ़िर कहू कि
उसकी प्रकृति ।
चुप चाप
मत सहिये
जागिये और
कुछ करिये
ये क्रूर प्रकृति
वास्तव मे है
सोचनीय
दयनीय
उपचार योग्य
एक मानसिक
विकृति ।
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7 comments:
In mind i am going through some thoughts like this.. Loved your thoughts!! Thanks for sharing!!
soch ki vikrati ko bahut sahi roop se vyakt kiya hai.....badhai
बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
sundar rachna .vijyadashmi ki shubhkaamnaaye .
what we call in english "sadistic pleasure" alas ! some people are victim of the same.
कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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