बात का बतंगड़ बनाना
तिल का ताड़ करना
लगी चिंगारी को
दबाने , बुझाने की जगह
हवा दे आग लगाना
और भड़काना |
अपने स्वार्थ के लिए
किसी भी मुद्दे को
राजनीति का
मुखौटा पहनाना |
ऐसी मानसिकता
समय समय पर
हम सब को
झेलनी पड़ती है |
कभी धरम के नाम पर
कभी जाति के नाम पर |
रक्षको से घिरे लीडर
तो हर हाल मे
सुरक्षित रहते है पर ........
ना जाने कितने
असहाय लोगो को
जान की आहुति
तक देनी पड़ती है |
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6 comments:
gahari sachchai ko darshati sundar rachna .
bilkul sach ....apane swarth ke liye hamaare rajneta kuchh bhi kar sakte hain....aur jhelna aam janta ko hi padta hai....aawam ki aawaz uthaati rachna bahut sashakt hai....badhai
nice poem
very thoughtful
Very true.... Soch sabse mabi hotia hai..
मुखौटा पहनाना
सही चित्रण किया है आपने सच का.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
its the common man who suffers the most due to some act of highly influential people who have vested interest in everything they do.
its sad but its very true.
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