दिन मे
इनका कोई
अस्तित्व नहीं
सूर्य के उदय
होते ही ये
धुंधलाते है
और फ़िर
विलीन
हो जाते है ।
पर काली
अंधेरी रात
इसकी तो
अलग ही
हो जाती
है बात |
आकाश मे
चन्दा के
राज्य मे
तारो का
झिलमिलाना
टिमटिमाना
जगमगाना
मेरे दिल को
लुभा जाता है |
कुछ बड़े तारे
कुछ छोंटे तारे
पर सबका
मिलजुल कर
साथ - साथ
पर कुछ दूरी
बना कर रहना |
चाहों अगर
कुछ सीखना
तो ये हमें
बहुत कुछ
सिखा जाता है |
दिन भर का
मेरा भटका
थका हारा मन
तारो की
ओड़नी ओडे इस
आसमान के
आँगन आ
बड़ी राहत
पा जाता है ।
और कुछ
ही पलो मे
नभ की
गोद मे
खेल रहे
तारो से खूब
घुल -मिल
सा जाता है |
और अब
शुरू हो
जाता है मेरा
तारा समूह को
खोजना
पहचानना |
वैसे तो
ये है 88
पर मेरी नज़रे
सप्त ऋषी मंडल
पर जा कर
ही लेती है टेक |
जब से
होश संभाला
और मेरे
बाबूजी ने
इनसे मेरा
परिचय कराया
बराबर रहा है
साथ हमारा |
गाँव छूटा
शहर बदले
मेरे बाबूजी भी
बरसों पहले
साथ छोड़ चले |
पर तारा मंडल ने
नहीं छोडा
कभी भी
मेरा साथ |
धन्य हूँ
और आभारी भी
प्रकृति की
पा कर
अतुलनीय
ये सौगात |
Monday, September 28, 2009
Saturday, September 26, 2009
विकृति
किसी का
दूसरों को
सदैव सताना
तकलीफ देना
चोट पहुचाना
और इसी मे
आनंद उठाना
अगर बन जाए
उसकी आदत
या फ़िर कहू कि
उसकी प्रकृति ।
चुप चाप
मत सहिये
जागिये और
कुछ करिये
ये क्रूर प्रकृति
वास्तव मे है
सोचनीय
दयनीय
उपचार योग्य
एक मानसिक
विकृति ।
दूसरों को
सदैव सताना
तकलीफ देना
चोट पहुचाना
और इसी मे
आनंद उठाना
अगर बन जाए
उसकी आदत
या फ़िर कहू कि
उसकी प्रकृति ।
चुप चाप
मत सहिये
जागिये और
कुछ करिये
ये क्रूर प्रकृति
वास्तव मे है
सोचनीय
दयनीय
उपचार योग्य
एक मानसिक
विकृति ।
Tuesday, September 22, 2009
मानसिकता
बात का बतंगड़ बनाना
तिल का ताड़ करना
लगी चिंगारी को
दबाने , बुझाने की जगह
हवा दे आग लगाना
और भड़काना |
अपने स्वार्थ के लिए
किसी भी मुद्दे को
राजनीति का
मुखौटा पहनाना |
ऐसी मानसिकता
समय समय पर
हम सब को
झेलनी पड़ती है |
कभी धरम के नाम पर
कभी जाति के नाम पर |
रक्षको से घिरे लीडर
तो हर हाल मे
सुरक्षित रहते है पर ........
ना जाने कितने
असहाय लोगो को
जान की आहुति
तक देनी पड़ती है |
तिल का ताड़ करना
लगी चिंगारी को
दबाने , बुझाने की जगह
हवा दे आग लगाना
और भड़काना |
अपने स्वार्थ के लिए
किसी भी मुद्दे को
राजनीति का
मुखौटा पहनाना |
ऐसी मानसिकता
समय समय पर
हम सब को
झेलनी पड़ती है |
कभी धरम के नाम पर
कभी जाति के नाम पर |
रक्षको से घिरे लीडर
तो हर हाल मे
सुरक्षित रहते है पर ........
ना जाने कितने
असहाय लोगो को
जान की आहुति
तक देनी पड़ती है |
Thursday, September 17, 2009
दयनीय स्थिती
घुटना ,चुप रहना
सब कुछ अन्याय
अपने ऊपर
होने पर भी
बिना उफ किए
सहते रहना |
घर की इज्जत
बचाए रखने के लिए
अपने पति की
ज्यादतियों को सदैव
सबसे ढकना ।
आज भी नारी
हमारे गावों मे
ये ही भोग रही है ।
जो कुछ बीत रहा
उसे भाग्य का लिखा
मान कर सह रही है ।
कल पेपर मे पढा
बुंदेलखंड मे कुछ
ऐसा घट गया।
कुछ किसानो ने
खेत खलियान के बाद
जानवरों की भाति
अब पत्नी को भी
महाजन के द्वार
बलि चडा दिया ।
हकीकत तो ये होगी
की समाज के ठेकेदारों ने
मूल, ब्याज, सूद के साथ
बिचारी पत्नी को
भी हथिया लिया ।
अखबार मे ये भी
ख़बर थी कि
एक पति ने
अपनी पत्नी को
एक वृद्ध को कुछ
रकम लेकर , था
बेझिझक बेच दिया
अरे मै तो
भूल ही गई ।
महाभारत मे
चोपड के खेल मे
द्रोपदी भी लगी
थी दांव पर ।
और सीता को भी
देनी पडी थी
अग्नि परिक्षा महज
एक धोबी की
कही बात पर ।
ये कैसी आस्था ?
ये कैसी मजबूरी ?
ऐसे समाज के
खिलाफ आवाज़ उठाना
क्या हम सब के लिए
नही है अब ज़रूरी ?
सब कुछ अन्याय
अपने ऊपर
होने पर भी
बिना उफ किए
सहते रहना |
घर की इज्जत
बचाए रखने के लिए
अपने पति की
ज्यादतियों को सदैव
सबसे ढकना ।
आज भी नारी
हमारे गावों मे
ये ही भोग रही है ।
जो कुछ बीत रहा
उसे भाग्य का लिखा
मान कर सह रही है ।
कल पेपर मे पढा
बुंदेलखंड मे कुछ
ऐसा घट गया।
कुछ किसानो ने
खेत खलियान के बाद
जानवरों की भाति
अब पत्नी को भी
महाजन के द्वार
बलि चडा दिया ।
हकीकत तो ये होगी
की समाज के ठेकेदारों ने
मूल, ब्याज, सूद के साथ
बिचारी पत्नी को
भी हथिया लिया ।
अखबार मे ये भी
ख़बर थी कि
एक पति ने
अपनी पत्नी को
एक वृद्ध को कुछ
रकम लेकर , था
बेझिझक बेच दिया
अरे मै तो
भूल ही गई ।
महाभारत मे
चोपड के खेल मे
द्रोपदी भी लगी
थी दांव पर ।
और सीता को भी
देनी पडी थी
अग्नि परिक्षा महज
एक धोबी की
कही बात पर ।
ये कैसी आस्था ?
ये कैसी मजबूरी ?
ऐसे समाज के
खिलाफ आवाज़ उठाना
क्या हम सब के लिए
नही है अब ज़रूरी ?
Tuesday, September 15, 2009
सय्यम
क्रोध जो
हम सभी का
होता है दुश्मन
गर इसके
चंगुल मे हम
फस जाए ।
सय्यम ही
एक मात्र
साधन है जो
इसके परिणामो
से हमें
सदा बचाए ।
हम सभी का
होता है दुश्मन
गर इसके
चंगुल मे हम
फस जाए ।
सय्यम ही
एक मात्र
साधन है जो
इसके परिणामो
से हमें
सदा बचाए ।
Friday, September 11, 2009
आत्मा
आत्मा हो अगर
हमारी उजली
तो मन भी नही
रहेगा कभी मैला ।
सदैव अपने को
प्रकाश मे पाएँगे
अँधेरा चारो ओर
चाहे हो फैला ।
हमारी उजली
तो मन भी नही
रहेगा कभी मैला ।
सदैव अपने को
प्रकाश मे पाएँगे
अँधेरा चारो ओर
चाहे हो फैला ।
Monday, September 7, 2009
बौना
चोटी पर पहुचना
है अगर ध्येय
तों ऊपर
पहुचने के लिए
चडाई तो
निरंतर करनी होगी |
पर ऊचाई पर पहुच
जो सब धरातल पर
नीचे खड़े है
उन्हें बौना समझ बैठे
तो ये बड़ी भारी
गफलत होगी ।
है अगर ध्येय
तों ऊपर
पहुचने के लिए
चडाई तो
निरंतर करनी होगी |
पर ऊचाई पर पहुच
जो सब धरातल पर
नीचे खड़े है
उन्हें बौना समझ बैठे
तो ये बड़ी भारी
गफलत होगी ।
Sunday, September 6, 2009
नन्हा
नन्हा क्या आया
मेरी बिटिया
के जीवन मे
रौनक है आ गई ।
इसके नींद मे
हँसने की अदा
मेरे दिल मे
है समा गई ।
इसका रोना !
गोदी मे उठाऊ
तो झट से
चुप होना ।
गहरी नींद मे
भी मुस्काना
कभी चौंक उठना
कभी ऐसे
मुह बनाना ।
जैसे दे रहा हो
कोई उलाहना ।
हम सब को
बांधे रखता है ।
अब तो कब
सुबह होती है ।
और कब रात
ये पता ही
नही चलता है ।
मेरी बिटिया
के जीवन मे
रौनक है आ गई ।
इसके नींद मे
हँसने की अदा
मेरे दिल मे
है समा गई ।
इसका रोना !
गोदी मे उठाऊ
तो झट से
चुप होना ।
गहरी नींद मे
भी मुस्काना
कभी चौंक उठना
कभी ऐसे
मुह बनाना ।
जैसे दे रहा हो
कोई उलाहना ।
हम सब को
बांधे रखता है ।
अब तो कब
सुबह होती है ।
और कब रात
ये पता ही
नही चलता है ।
Saturday, September 5, 2009
अकुलाहट
मेरी बिटिया का
full term है चल रहा
अब ये समय सभीका
काटे नही है कट रहा ।
डाक्टर ने दी है
दो सितम्बर की डेट
तब तक तो करना
ही है सभी को वेट ।
माँ और नानी बनने मे है
बहुत ही ज्यादा होता है फर्क ।
बेकार है इस को लेकर
करना किसी तरह का तर्क ।
"मूल से सूद प्यारा होता है "
ये बात अब मै भी जान गई ।
मेरी माँ की , नानी की छवि
अनायास मेरे सामने है आगई ।
लौरी ,कहानिया जो मै सुनाती थी
मेरी बेटियों को रातो मे कभी ।
अचेतन मे छिपी बैठी थी जो कही
उभर कर आगई ऊपर वे सभी ।
मन मे घुस आई है
बिना किये कोई आहट |
समय काटना मुश्किल हो गया
ये ही तो नहीं अकुलाहट ?
full term है चल रहा
अब ये समय सभीका
काटे नही है कट रहा ।
डाक्टर ने दी है
दो सितम्बर की डेट
तब तक तो करना
ही है सभी को वेट ।
माँ और नानी बनने मे है
बहुत ही ज्यादा होता है फर्क ।
बेकार है इस को लेकर
करना किसी तरह का तर्क ।
"मूल से सूद प्यारा होता है "
ये बात अब मै भी जान गई ।
मेरी माँ की , नानी की छवि
अनायास मेरे सामने है आगई ।
लौरी ,कहानिया जो मै सुनाती थी
मेरी बेटियों को रातो मे कभी ।
अचेतन मे छिपी बैठी थी जो कही
उभर कर आगई ऊपर वे सभी ।
मन मे घुस आई है
बिना किये कोई आहट |
समय काटना मुश्किल हो गया
ये ही तो नहीं अकुलाहट ?
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