अपने साथ
कुछ अप्रिय
घटे तो असीम
दुःख होता है ।
दूसरो के साथ
ऐसा घटे
तो चर्चा का
विषय बनता है ।
पल , कभी धूप
कभी छाव के
ये तो सभी के
आँगन आएँगे ।
कभी तपन
तो कभी ठंडक
जीवन मे
ये सभी के लाएँगे ।
सोचिये ! क्या
बीतेगी आप पर?
जब आपके
आँगन आ
धूप मे हाथ
सेंक कर
राहगीर आगे
बड़ जायेंगे ।
पीड़ा ,पीड़ा
ही होती है ।
अपनी हो या
फ़िर परायी।
शायद अब
ये सबक .........
हम जरूर
सीख जाएँगे ।
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6 comments:
I always feel inspired when i come here.. keep it coming!!
behad khoobsoorat...achhi rachna hai
its true that apne ko lagti hai to duk hota aur woh hi dusereke saat ho to khair i love coming to your blog you just amazing writer
doosare ke dukh main dukhi aur apne dukh ko bhagwan ki marzee maan kar accept karne wala hi purna manushya kehlata hai.
lets try to be a part of it atleast.
aap ne sach kaha, jab doosron ke saath bura hota hai toh baaki sab ko apne apne comment dene ke liye ek naya topic mil jaata hai, par jab wahi hamare saath hota hai tabhi hame usske dukh ka pata chalta hai.
hamesha ki tarah aap ki poem bahut bahut acchi hai....
दूसरों के साथ घटे कुछ अप्रिय तो चर्चा का विषय बनता है .
चर्चा का विषय जब हम खुद ही बन जाएँ तो तकलीफ ज्यादा होती है.
एक तो अप्रिय घटना घटी , दुसरे मुफ्त में चर्चा का विषय बने
पर दोनों में ही हमारा कोई हाथ नहीं , और कोई बस भी नहीं
मुश्किल ये है की हम समझते तभी हैं जब घटता है हमारे साथ
थोडा रुक कर हम अगर सोचते दूसरो के बारे में भी तो शायद
अपने लिए भी कुछ अच्छा कर जाते.
i am thinking of another post for a long time but some happenings have forced me to keep silent....there are a lot i want to write there n it's all getting bottlenecked....so i am keeping myself busy with my food blogs.
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