Saturday, August 15, 2009

नास्तिक / आस्तिक ?

भटका, पथिक
चलते -चलते
हताश हो
रुक गया ।

आत्म विश्वास
उसका अब
स्वयं से था
उठ गया |

सामने न थी
उसकी मंजिल
और साथ न
कोई था पता । ।

बड़ी ही
थकी नज़रो
से ऊपर, शायद
आसमा को देखा ।

और बोला
बहुत हुआ
अब बस कर
और ना सता । ।

5 comments:

Anonymous said...

Well written - In my case the look at the sky would be in awe of the randomness of events - and by definition randomness will work unfavorably sometimes - one needs to be ready to take both outcomes (favorable and unfavorable) in ones stride

Anonymous said...

:) mama, right now...I have no 'pata'.

xoxoxo,
iti

Swatantra said...

mast likhte ho aap... i liked the title and the words written true according to it..

Keep it going!!

Dr. Ashok Saxena said...

Jab koi baat bigad jaye, jab koi mushkil ad jaye, "TUM" dena saath mera.................

a good one once again, keep it up.

-Ashok Saxena jhs

Satish Saxena said...

@अपनत्व,
हाँ ...ऐसे मौके बहुत बार आते हैं जब हम असहाय होकर आसमान को देखते हैं ...कोई नहीं होता आसपास मदद को ... और आजकल तो भगवान् भी नहीं ...क्या कहें
आपके कमेंट्स में वह शक्ति है की अर्ध रात्री में सोते से पहले जवाब लिखवा रही है !
कुछ तो है आपमें ...शुभकामनाएं !!