Thursday, September 30, 2010

पेड़ और पतझड़

( पेड़ के मन से )

हर पतझड़

तेज हवा मेरा

चीर हरण करती है

और सामने वाले

पेड़ की टहनी

हवा मे झूम

खूब आनंद लेती है

पर मै उदास नहीं

ना ही कोई इर्षा

के भाव रखता हूँ

रात के बाद

आता है दिन

ये मै बखूबी

खूब समझता हूँ ।

खुश हूँ मेरे

सूखे पत्तो कों

इकठ्ठा कर

झोपड़ा पट्टी वाले

जला धुँआ पैदा कर

मच्छर भगा

खून चुसने से

अपने कों बचाते है

और सूखी

टहनियों कों जला

गरीब खाना पका

अपने उदर की आग

बुझाते है ।

सुना है कुछ सजग

पर्यावरण प्रेमी भी

मेरे सूखे पत्तो कों गला

कम्पोस्ट खाद बनाते है

और फिर यो पौधे

नवजीवन पा जाते है

दुःख है तो

बस इतना कि

थका पथिक

मेरे आंगन तले

छाव नहीं पाता है

बस निराश हो

आगे बड़ जाता है ।

कुछ प्रतीक्षा के बाद

होता है प्रकृति

का एक करिश्मा

मनभावन

बसंत आता है ।

ताज़े हरे कोमल

पत्तो से मेरी

टहनियों कों

वो सहर्ष स्वयं

पुनः सजाता है ।

40 comments:

ZEAL said...

ताज़े हरे कोमल

पत्तो से मेरी

टहनियों कों

वो सहर्ष स्वयं

पुनः सजाता है ।...

दुःख के बाद सुख को आना ही होता है। दोनों ही परिस्थितियों में कोई न कोई सुख छुपा ही होता है।

.

Ashok Vyas said...

प्रकृति, वृक्ष, यज्ञ, संवेदना, मानवीयता
और आशा सहित कई सुन्दर संकेत देने के साथ साथ 'अपनत्व' नाम को सार्थक करने वाली
एक सहज, सरल, सरस कविता.
बढ़ाई

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर भाव बुरे दिन मे आदमी को साहस नही छोदना चाहिये ये इन पेडों से सीखो। सार्थक रचना बधाई।

Asha Lata Saxena said...

बहुत सुंदर भाव लिए रचना |बधाई
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार
आशा

Creative Manch said...

सार्थक संकेत और सन्देश देती
बहुत सुन्दर रचना
आभार


प्रतीक्षा में :
मिलिए ब्लॉग सितारों से

पूनम श्रीवास्तव said...

sarita di
aapki har rachna apne -aap me anoothi hoti hai.bahut -bahut bahut hiachhi lagi aapki post.
aapmere blog par nahi dikhti hai to kuchh kahin se suna 0suuna lagta hai.aap se mera housala badhta hai.
poonam

Manish aka Manu Majaal said...

जीवन भी चलता है कुछ यूँ ही,
कुछ न कुछ कहीं,
उग ही आता है,
जब आदमी उम्मीद से जाता है...

अच्छी रचना, लिखते रहिये ...

Dr.Ajit said...

उम्दा रचना...

अब आपको भी बुलाना पडेगा क्या अपने ब्लाग पर...! वैसे ही मुझ निर्धन के यहाँ इक्का-दुक्का लोग आते है आप कुछ समर्थन कर देती है तो मनोबल बढ जाता है...

आभार सहित
डा.अजीत

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह ....दोनों स्थितियां बता दिन ..दुःख में भी सुख ढूँढ लेना चाहिए ....हर रात के बाद दिन आता है ...

और पतझर से
बेरूखी कैसी ?
इसके बाद तो
बहार का
इंतज़ार रहता है ...

सम्वेदना के स्वर said...

सरिता दी,
अपना सर्वस्व न्यौछावर करके भी वृक्ष कितनी सहजता से अपना निर्वस्त्र होना सहते हैं..और यह व्यथा भी कि पंथी को छाया नहीं दे पाने का दुःख भी है...यही विशेषता है आपकी कविताओं की, आस पास के बिम्बों के माध्यम से अनोखी शिक्षा देते हैं...
पुनश्चः पता नहीं क्यों अपडेट नहीं हो रहा कुछ भी!!

मनोज भारती said...

पुराने पत्तों का गिरना नए पत्तों के लिए जगह तैयार करना है ...पेड़ के माध्यम से जीवन-दर्शन समझा दिया आपने ।

सुंदर भाव !

Shaivalika Joshi said...

Bahut hi sunder bhav...

हरकीरत ' हीर' said...

एक पेड़ की मनोदशा को खूब उकेरा है आपने ....!!

सदा said...

ताज़े हरे कोमल

पत्तो से मेरी

टहनियों कों

वो सहर्ष स्वयं

पुनः सजाता है ।

बहुत सुन्दर रचना
आभार

Dr. Ashok saxena said...

Hamne patjhad nahin balki gire huye ped ko utha kar phir se laga dala, na jaane kitne patjhad ( lagbhag 125)bacha dale aur ab jo isme nayee kopal aayeen hai aur is ped ka sajna shuru hua hai, bas dekhte hi banta hai. Aap sab se yehi ummeed karta hoon ki
" har gire patte ko tum utha kar laga nahin sakte, lekin ek baar gire huye ped ko phir se khada karke do to dekho, abhi naa jaane kitne patjhad aur sawan uske baki hain"
Please see the follwing links for details-
1.http://www.facebook.com/album.php?aid=50450&id=1612142344&l=8e44fee1a8
2.http://www.facebook.com/album.php?aid=57897&id=1612142344&l=3e518725c7
3.http://www.facebook.com/album.php?aid=72783&id=1612142344&l=5139c1cebb
- Dr. ashok saxena Jhansi

Deepak chaubey said...

बहुत सुन्दर रचना

सुंदर भाव

आभार

Dr.Ajit said...

जो मेरी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है उसके किस्से मे दर्द अपने आप आ जाता है ऐसा नही है कि मै निराश हूं लेकिन एक अहसास है दर्द जो मे रचनात्मकता का बडा आधार भी है...

आप दर्द के भाव बखुबी समझती है...

इसके लिए आभार..

डा.अजीत
एक नया ब्लाग भी लिख रहा हूं आजकल कभी यहाँ भी चक्कर मार दिया करें तो बडी मेहरबानी होंगी..

पता है

www.meajeet.blogspot.com

mridula pradhan said...

behad achcha likhtin hain aap.

sangeeta said...

कविता पढ़ के लगा कि जैसे एक हरे भरे पेड़ ने अपनी छाव तले ले लिया हो ! पेड़ के ज़रिये कुदरत का पाठ याद दिला दिया आपने !!

शोभना चौरे said...

bahut sundar bhav .apne ko jlakar dusro ko sukh dena sundar bhavna .

कडुवासच said...

... prasanshaneey rachanaa !!!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

बेहतरीन भावाभिव्यक्ति!
सच में.... शायद यही सोच होती होगी पेड़ की!
आशीष
--
प्रायश्चित

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

होता है प्रकृति..का एक करिश्मा
मनभावन..बसंत आता है...
सच है...ये प्रकृति ही है, जो हमारे लिए इतना कुछ करती है...लेकिन हम अपने स्वार्थों के वशीभूत होकर पर्यावरण से निरंतर खिलवाड़ करते चले आ रहे हैं...
बहुत अच्छा संदेश है आपकी रचना में...बधाई.

सुधीर राघव said...

सचमुच काफी अच्छा लगा। स्थितियां भले अलग हों रूपक समान हैं। आपने सही कहा। कविता परिस्थितियों से भी निकलती है और परिस्थितियां समान भी हो सकती हैं।

दिगम्बर नासवा said...

प्रकृति तो हमें हमेश देती है .. पत्तियाँ पेड़ पर हों या सूख जाएँ .... हमेशा कुछ न कुछ देती हैं हर रूप में ... बहुत सुंदर रचना है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

Dr. Tripat Mehta said...

ah! bahut khoob..
and thanks for droppping by :)

regards
tripat

Satish Saxena said...

अच्छाई के प्रति यह आशा का भाव ही जीवन है सरिता जी , निराशा जनक माहौल में भी जीने की प्रेरणा देती यह रचना अमूल्य है !

Sadhana Vaid said...

सकारात्मक सोच का अद्वितीय उदाहरण है आपकी रचना ! अति सुन्दर !

अजय कुमार said...

सुख हो या दुख ,लोगों के काम आना चाहिये ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

कुछ प्रतीक्षा के बाद
होता है प्रकृति
का एक करिश्मा
मनभावन
बसंत आता है ।
ताज़े हरे कोमल
पत्तो से मेरी
टहनियों कों
वो सहर्ष स्वयं
पुनः सजाता है ।

भाव पूर्ण सुन्दर रचना !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

प्रकृति का सन्देश... जीवन की सकारात्मकता के
लिए.... बहुत ही खूबसूरत

स्वप्निल तिवारी said...

प्रकृति का यही चक्र है ..पतझड़ वसंत फिर पतझड़ फिर वसंत ... पेड तो यह बात समझ गया ...पर मानव जाति कब समझेगी ...अच्छी रचना ...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kitni khubshurati se Di aapne vriksharopan ke liye logo ko samjha diya........:) great!!

bahut pyari rachna......ek dum yatharthwadi.......aur jaruri!!

sangeeta said...

'aankda' is not uploading ..
It seems it is time to wish you happy birthday...:)
many happy returns.

Bharat Bhushan said...

पेड़ और मानवीय भावों को रूपक की तरह बाँधा है आपने, बहतु सुंदर भावपूर्ण रचना.

अनामिका की सदायें ...... said...

बहुत सुंदर रचना.
प्रकर्ति की बनी हर चीज़ अपने अंत तक काम आती हें...एक इंसान ही है जो अपने अंत का फायदा किसी को नहीं होने देता. चाहे तो वो भी कर सकता है लेकिन इंसान की सोच तो पेड से ज्यादा संकीर्ण है.

सुंदर रचना.

Udan Tashtari said...

पेड़ के मन से - गहन भाव उजागर करती. बढ़िया रचना.

रचना दीक्षित said...

बहुत सुंदर भाव लिए एक पेड़ की मनोदशा . अच्छी रचना है

http://anusamvedna.blogspot.com said...

दुःख और सुख एक ही सिक्के के दो पहलू है कभी एक उप तो कभी दूसरा .....

सुंदर रचना ...