Thursday, September 16, 2010

मेरा सपना

ईमानदारी
एक संक्रामक
रोग बन
फ़ैल जाए ।

स्वार्थ
बस दुनियां
से एकदम
लुप्त हो जाए ।

भाई - चारा
सब दिल से
हमेशा एक
दूसरे से निभाए ।

धरती भावी
कर्णधारों के लिये

बस जन्नत ही
हम बना जाए ।

25 comments:

मनोज कुमार said...

ये तो हम सबका सपना है। और सच है यदि यह सपना पूरा हुआ तो धर्ती स्वर्ग-सी हो ही जाएगी।

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

अभिलाषा की तीव्रता एक समीक्षा आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

amen!!

रचना दीक्षित said...

आपकी कलम में घी शक्कर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सपना सच हो ..यही कामना है ..

वाणी गीत said...

हमारा सपना सबका सपना बन जाए ...!

निर्मला कपिला said...

सुन्दर अभिलाशा। बधाई।

Satish Saxena said...

इतनी प्यारी आशा में नुक्सान ही क्या है मैं आपको आज के निराशा जनक माहौल में सिर्फ शुभकामनायें दे सकता हूँ !

Anonymous said...

"धरती भावी
कर्णधारों के लिये
बस जन्नत ही
हम बना जाए।"
शुभकामनाएं

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kash aise sapne pure hon..........!!

Di!! bahut umda rachna!!

Parul kanani said...

sab aapke saath hai :)

Swatantra said...

sapna sach ho jayee aapka.. yeh dua hai hamari..

ZEAL said...

धरती भावी
कर्णधारों के लिये
बस जन्नत ही
हम बना जाए ।

ati sundar

.

प्रवीण पाण्डेय said...

वही मेरा भी सपना है।

अनामिका की सदायें ...... said...

काश ऐसा हो जाये
काश ऐसा हो जाये
काश ऐसा हो जाये.

:):):):)

Bharat Bhushan said...

ऐसे सपने देखना बहुत महत्वपूर्ण है. हम सभी की शुभकामनाएँ.

मनोज भारती said...

बहुत सुंदर भाव हैं...

दिगम्बर नासवा said...

आमीन ... आपके मुँह में घी शक्कर ... काश ऐसा हो जाए ....

Saumya said...

amen...hope so!!!

Rohit Singh said...

कविता की पहली लाइन ने गुरु नानक की एक कहानी याद दिला दी। गुरु एक गांव पहुंचे जहां सबने उनका प्यार से स्वागत किया। जब गुरु जाने लगे तो गांव को आशिर्वाद दिया कि उजड़ जाओ। उनके शिष्य हैरान, पर कुछ बोले नहीं। गुरु की माया गुरु जाने। फिर घूमते हुए गुरु नानक एक दूसरे गांव पहुंचे। वहां के लोगो ने उनका स्वागत करना तो दूर ढंग से बात भी नहीं कि। गुरु नानक को शायद भोजन भी नहीं दिया। जाते वक्त गुरु नानक के कहा बसे रहो। अबकी बार हैरान शिष्यों से नहीं रहा गया। वो पूछ बैठे . गुरुदेव जिन लोगो ने आपको इतना मान सम्मान दिया उनको उजड़ने का, और इन लोगो ने जिन्होने आपका अपमान किया, आपसे सही से भी नहीं बोले उन्हें बसे रहने का आशिर्वाद। ऐसा उलट आशिर्वाद। गुरु मंद मंद मुस्कुराए। बोले..देखो अच्छे लोग जहां भी जाएंगे अच्छी बातें ही फैलाएंगे। बुरे जहां जाएंगे वहां बुरी बातों को ही फैलाएंगे। इसलिए बुरे लोगो का यहीं बसे रहना बेहतर है।

आपकी कविता उसी कहानी का अग्रिम भाग है।

अंजना said...

बेहतरीन भाव हैं.शुभकामनाएँ.

SKT said...

आपकी दुआ क़ुबूल हो, आमीन!

अरुणेश मिश्र said...

पवित्र भावना की रचना ।
प्रशंसनीय ।

Anonymous said...

काश ऐसा हो सकता..............ऐसे सोच वाले लोगों की इस दुनिया को सख्त ज़रुरत है | बहुत अछि सोच है आपकी और उसे शब्दों में बहुत सुन्दर रूप में पिरोया है आपने ...........आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा ...........एक सुझाव है आप अपने ब्लॉग का नाम पहले हिंदी फिर इंग्लिश में तो तो हमारी भाषा का सम्मान और बढेगा ...........सबसे पहले खुद आपकी नज़र में.........शुभकामनाये|

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VIVEK VK JAIN said...

sapne sach ho......!

रंजना said...

हम सबका यह सपना....काश कि सच हो जाए...