Friday, September 10, 2010

दंग

जब भी जीवन

मे कर्तव्य और

इच्छाओं मे

छिड जाती है ज़ंग ।

कर्तव्य कैसे ?

बाजी मार ले जाता है

देख कर मै

रह जाती हूँ दंग ।

26 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज कल आप कर्तव्य निभा रही हैं ..यह तो जानते ही हैं ....

ज़िम्मेदारी यदि बिना निबाहे मात्र इच्छा को पूरा करने का प्रयास करें तो वो भी संभव नहीं है .....

अच्छी सोच ..

सम्वेदना के स्वर said...

हमारे एक टीचर बताते थे कि सफलता के लिए इच्छा शक्ति और सामर्थ्य दोनों आवश्यक हैं ..अगर हों तो बस कर्त्तव्य ही उन इच्छओं को पूरा करने की सीढी है..
स्वार्थी न बनें हम लेकिन इच्छा है कि आप जल्दी वापस आएँ... बस इसी इंतज़ार में उस इच्छा पूर्ति के लिए कर्त्तव्य किए जा रहे हैं..जानते हुए कि आपके कर्त्तव्य महत्वपूर्ण हैं अभी… ऋद्धम को जन्म दिवस की एड्वांस में बधाई!!!

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी प्रेरणा देती पँक्तियां बस हम अधिकार तो माँगते हैं मगर कर्तव्य निभाना ही भूल जाते हैं सुन्दर । बधाई

डॉ टी एस दराल said...

वाह ! जिसने इच्छाओं का दमन कर लिया , समझो बेडा पार हो गया । कम शब्दों में बड़े काम की बात कही है ।

मनोज भारती said...

बहुत सुंदर ...कर्तव्य और इच्छा के द्वंद्व में कर्तव्य का जीतना ही मनुष्य को कर्मशील बनाए रखता है ।

प्रवीण पाण्डेय said...

क्योंकि अन्दर से हमारा हृदय कर्तव्यों को समर्थन देता है।

रश्मि प्रभा... said...

bahut khoob

Parul kanani said...

aap apni kavitaon mein hamesha jeevan ke saransh se kuch panktiyaan lati hai..aapki sadgi acchi lagti hai

sangeeta said...

Very True....

your poem ped aur patjhad is appearing in my reader but the page is not opening , please look into it.

sm said...

just a few lines
you said the geeta

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

वाह! इसे कहते हैं छोटे पैकेट में बडी चीज..
मान गये..

ASHOK BAJAJ said...

अपनत्व जी ,

कविता अच्छी लगी .

प्लास्टिक के सम्बन्ध में प्रेषित आपका सुझाव स्वागत योग्य है ,धन्यवाद

पर्युषण पर्व की बधाई ,झमा याचना सहित .

कविता रावत said...

bahut achhi preranaprad panktiyan...
bahut achhi lagi.. saadar

रचना दीक्षित said...

अपनत्व जी ,
वाह! प्रेरणा देती पँक्तियां
कविता अच्छी लगी .

अनामिका की सदायें ...... said...

यही संस्कार हम में कूट कूट कर भरे जाते हैं ना हमेशा की इच्छाओं का दमन कर के कर्ताव्व्यों को निभाओ...बस इसीलिए कर्ताव्व्य बाज़ी मार जाते हैं.

हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए

दिगम्बर नासवा said...

कर्तव्य को महत्व देती सुंदर बात ... अच्छा लिखा है ...

Dr.Ajit said...

उम्दा रचना...
ये जंग काफी पुरानी हैं

डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com

ZEAL said...

प्रेरणा देती पँक्तियां

पूनम श्रीवास्तव said...

aapki choti sechoti kavitaaon mebahut si badi badi rachnao me baazi maar le jaane ki adbhut xhmta hai sarita di.
bahut hi achhi lagi.
poonam

ज्योति सिंह said...

bahut sahi baat kahi hai ,achchha laga padhna kai din ho gaye yahan aaye .

Bharat Bhushan said...

ऐसा न होता तो सच में हम इच्छाओं में उलझ कर रह जाते. जीवन तो कर्म में ही बेहतर कटता है.

सुधीर राघव said...

हिन्दी दिवस पर आपको बहुत-बहुत बधाई।

http://sudhirraghav.blogspot.com/

Bharat Bhushan said...

आपने ब्लॉग के नाम के बारे में पूछा है. सुरत शब्द का अर्थ उस चेतन तत्त्व से है जो रचा-पचा है. जो रचे-पचे के भाव से मुक्त हो जाता है, कहते हैं कि वह निरत हो जाता है. मुझे इस भाव में कहीं मुक्ति दिखाई पड़ती है.

Dr.Ajit said...

अच्छी सोच और सम्वेदना
बधाई
आप मेरे ब्लाग पर अक्सर आती रहती है और पढती भी ये जानकर मुझे अच्छा लगा।
आपका स्नेह और आर्शावाद मिलता रहें यही कामना है।

टिप्पणियों के आदान-प्रदान के मामले मे मै अगर प्रमादी न होता तो आज इतना उपेक्षित और निर्धन न होता...खैर! सब चलता है। आप और संगीता जी नियमित मुझे पढती रहें ऐसी कामना है

Punjabi Shero Shayari | Gagan Masoun said...

its very nice

SATYA said...

प्रेरनादायी रचना,

यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...