हर पतझड़
तेज हवा मेरा
चीर हरण करती है
और सामने वाले
पेड़ की टहनी
हवा मे झूम
खूब आनंद लेती है
पर मै उदास नहीं
ना ही कोई इर्षा
के भाव रखता हूँ
रात के बाद
आता है दिन
ये मै बखूबी
खूब समझता हूँ ।
खुश हूँ मेरे
सूखे पत्तो कों
इकठ्ठा कर
झोपड़ा पट्टी वाले
जला धुँआ पैदा कर
मच्छर भगा
खून चुसने से
अपने कों बचाते है
और सूखी
टहनियों कों जला
गरीब खाना पका
अपने उदर की आग
बुझाते है ।
सुना है कुछ सजग
पर्यावरण प्रेमी भी
मेरे सूखे पत्तो कों गला
कम्पोस्ट खाद बनाते है
और फिर यो पौधे
नवजीवन पा जाते है।
दुःख है तो
बस इतना कि
थका पथिक
मेरे आंगन तले
छाव नहीं पाता है
बस निराश हो
आगे बड़ जाता है ।
कुछ प्रतीक्षा के बाद
होता है प्रकृति
का एक करिश्मा
मनभावन
बसंत आता है ।
ताज़े हरे कोमल
पत्तो से मेरी
टहनियों कों
वो सहर्ष स्वयं
पुनः सजाता है ।