अपनत्व
satya vachan...
बहुत सुन्दर विचार!
सही कहा है .. इसलिए कहते हैं कुंठा निकाल देनी चाहिए मन से .........
जीवन के सत्य को दर्शाती अच्छी रचना....
कुण्ठाएँ वैसे भी घुन की तरह होती हैं.. जो मानस को खोखला कर देती हैं…
sach likha hai aapne...
अच्छी रचना...
this is the truth of life
बहुत अच्छी रचना
bahut sahi keha..
amal karne layak baat.......:)kuntha ko durr bhagao..........
mera blog wait kar raha hai.......:D
bahut acche vichaar..!
कम शब्दों मे बहुत कुछ कह देना आपकी खूबी है जो बहुत कम लोगों मे होती है.कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
रोज न जाने केतना लोग कुंठा से घबरा कर आत्महत्या तक कर लेता है... आपके ई कबिता को अगर मन में बईठा लिया त एगो नया सबेरा अपने आप देखाई देने लगेगा... बहुत प्रेरक!!
kuntha par achcha darshan hai..
कुंठा पर आपके विचार सशक्त हैं ।
व्यक्तित्व भी उसका धराशायी हो जाता है ।सत्य कथन ।
आत्म विश्वास तोफिर खोता ही हैbilkul satya aur sundar
sahi baat
आपके ब्लाग पर आकर सचमुच अपनापन लगा। आपकी छोटी छोटी कविताएं गागर में सागर के समान हैं।
कुंठाअच्छा लिखा एक अन्दाज यह भी देखेंछोड़ो-मनकुंठाओं कोऔर सो जाओमानातुम्हारे पासकहने को बहुत कुछ हैपरकिससे कहोगे?उनकानो सेजिन्होने कब सेतुम्हारी बातों परकान धरना छोड़ दिया हैउसदिल सेकिस दिल कीबात कर रहे हो तुमजिस दिल सेबेदखल हुएएक जमाना बीत गया है......पूरी कविता http://katha-kavita.blogspot.com/ पर देखें
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22 comments:
satya vachan...
बहुत सुन्दर विचार!
सही कहा है .. इसलिए कहते हैं कुंठा निकाल देनी चाहिए मन से .........
जीवन के सत्य को दर्शाती अच्छी रचना....
कुण्ठाएँ वैसे भी घुन की तरह होती हैं.. जो मानस को खोखला कर देती हैं…
sach likha hai aapne...
अच्छी रचना...
this is the truth of life
बहुत अच्छी रचना
bahut sahi keha..
amal karne layak baat.......:)
kuntha ko durr bhagao..........
mera blog wait kar raha hai.......:D
bahut acche vichaar..!
कम शब्दों मे बहुत कुछ कह देना आपकी खूबी है जो बहुत कम लोगों मे होती है.
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
रोज न जाने केतना लोग कुंठा से घबरा कर आत्महत्या तक कर लेता है... आपके ई कबिता को अगर मन में बईठा लिया त एगो नया सबेरा अपने आप देखाई देने लगेगा... बहुत प्रेरक!!
kuntha par achcha darshan hai..
कुंठा पर आपके विचार सशक्त हैं ।
व्यक्तित्व भी उसका धराशायी हो जाता है ।
सत्य कथन ।
आत्म विश्वास तो
फिर खोता ही है
bilkul satya aur sundar
sahi baat
आपके ब्लाग पर आकर सचमुच अपनापन लगा। आपकी छोटी छोटी कविताएं गागर में सागर के समान हैं।
कुंठा
अच्छा लिखा एक अन्दाज यह भी देखें
छोड़ो-मन
कुंठाओं को
और सो जाओ
माना
तुम्हारे पास
कहने को बहुत कुछ है
पर
किससे कहोगे?
उन
कानो से
जिन्होने कब से
तुम्हारी बातों पर
कान धरना छोड़ दिया है
उस
दिल से
किस दिल की
बात कर रहे हो तुम
जिस दिल से
बेदखल हुए
एक जमाना बीत गया है......
पूरी कविता http://katha-kavita.blogspot.com/ पर देखें
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