सबसे पहले तो आपकी आमद पर हमरा इस्तक़बाल क़ुबूल फरमाएं... आपके मुबारक़ क़दम ‘अपनत्व’ की वो बाद ए नसीम लेकर आए हैं जिससे इतने दिनों हम महरूम रहे... उम्मीद है आपका ऑस्ट्रेलिया दौरा बेहद सुकूँ के साथ बसर हुआ होगा. ख़ुशी के मारे धड़ाधड़ उर्दू बोलता चला गया... आपकी कविता एक ऐसी rare commodity की तरफ इंगित करती है, जो scarce होती जा रही है. शायद निर्जीव वृक्षों और सजीव कहलाने वाले इंसानों में यही अंतर है ‘झुकने का.’ तभी तो वृक्ष कटते जा रहे हैं और इंसनों की बनाई अट्टलिकाएँ सीना ताने एलान कर रही हैं कि सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं. पुनः सुस्वागतम!
बाल की खाल निकालना होता है कईयों का शौक ये भी एक विकार ही है कठिन है लगाना पर रोक ...sach mein kuch logon ka yahi sabse priya kaam hota hai... Yatharth rachna.... Saarthak lekhan ke liye Haardik shubhkamnayne.
आपने इतनी सी बात को कितनी आसानी से कविता बना दिया. सच, हुनरमंद कोयले को भी हीरा बना देता है. ** आपने कुचकुचा के बारे में पूछा है, मुझे हंसी आ गयी, अरे भाई, ये क्रश करने के लिए कहा था. यह कोई जड़ी-बूटी नहीं है. अपना आशीर्वाद यूंही बनाए रखिए.
23 comments:
सही कहा!! बढ़िया रचना!
सटीक लेखन.....वापसी पर स्वागत है. :):)
ekdam sahi :)
सबसे पहले तो आपकी आमद पर हमरा इस्तक़बाल क़ुबूल फरमाएं... आपके मुबारक़ क़दम ‘अपनत्व’ की वो बाद ए नसीम लेकर आए हैं जिससे इतने दिनों हम महरूम रहे... उम्मीद है आपका ऑस्ट्रेलिया दौरा बेहद सुकूँ के साथ बसर हुआ होगा.
ख़ुशी के मारे धड़ाधड़ उर्दू बोलता चला गया... आपकी कविता एक ऐसी rare commodity की तरफ इंगित करती है, जो scarce होती जा रही है. शायद निर्जीव वृक्षों और सजीव कहलाने वाले इंसानों में यही अंतर है ‘झुकने का.’ तभी तो वृक्ष कटते जा रहे हैं और इंसनों की बनाई अट्टलिकाएँ सीना ताने एलान कर रही हैं कि सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं.
पुनः सुस्वागतम!
यही सच है.आपसे पूरी तरह सहमत हूँ अच्छी रचना
शांति प्रिय मानस कभी
माफी मांगते ना अलसाए
फलो से लदी शाखाएँ भी
हमने देखी झुकती ही जाए ...
सच है ... ऐसा अक्सर देखा है रोज रोज जीवन में ... माफी माँगने में आलस तो होना भी नही चाहिए ....
"फलो से लदी शाखाएँ भी
हमने देखी झुकती ही जाए"
जी सही और अधजल गगरी छलकत जाए
बहुत सुन्दर !
bahut dino bad apki kvita mili pdhne ko .
sarl shbdo me jeevan ki sarthkta batla di hai abhar .
वाह!
bahut sunder kavita
http://bejubankalam.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!
शांति प्रिय मानस कभी
माफी मांगते ना अलसाए
अक्षरश: सत्य, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार ।
issi shouk ne to
logo ki jindagi ko
barbad karne ki koshish ki hai.......:(
badhiya!!
infact bahut badhiya...:)
बाल की खाल
निकालना होता है
कईयों का शौक
ये भी एक
विकार ही है
कठिन है
लगाना पर रोक
...sach mein kuch logon ka yahi sabse priya kaam hota hai...
Yatharth rachna....
Saarthak lekhan ke liye Haardik shubhkamnayne.
एगो मामूली पत्थर थे हम, आपके स्पर्श ने इस पत्थर को मानिक बना दिया और एक मूरत को अहिल्या... हमरी कुटिया आज पवित्तर हो गई...
सत्य वचन |
ma'm,
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आपने इतनी सी बात को कितनी आसानी से कविता बना दिया. सच, हुनरमंद कोयले को भी हीरा बना देता है.
** आपने कुचकुचा के बारे में पूछा है, मुझे हंसी आ गयी, अरे भाई, ये क्रश करने के लिए कहा था. यह कोई जड़ी-बूटी नहीं है.
अपना आशीर्वाद यूंही बनाए रखिए.
Aapke khayalat hamesha sanjeeda hote hain..wahi rachnaon me chhalak jate hain!
bahut hi badhiyaa
बहुत सुन्दर !
sabhi aham baate aapki rachnao me shaamil hoti hai .sundar aur sach .
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