Thursday, May 27, 2010

शौक

बाल की खाल
निकालना होता है
कईयों का शौक
ये भी एक
विकार ही है
कठिन है
लगाना पर रोक ।

शांति प्रिय
मानस कभी
माफी मांगते
ना अलसाए
फलो से लदी
शाखाएँ भी
हमने देखी
झुकती ही जाए ।

23 comments:

Udan Tashtari said...

सही कहा!! बढ़िया रचना!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक लेखन.....वापसी पर स्वागत है. :):)

Parul kanani said...

ekdam sahi :)

सम्वेदना के स्वर said...

सबसे पहले तो आपकी आमद पर हमरा इस्तक़बाल क़ुबूल फरमाएं... आपके मुबारक़ क़दम ‘अपनत्व’ की वो बाद ए नसीम लेकर आए हैं जिससे इतने दिनों हम महरूम रहे... उम्मीद है आपका ऑस्ट्रेलिया दौरा बेहद सुकूँ के साथ बसर हुआ होगा.
ख़ुशी के मारे धड़ाधड़ उर्दू बोलता चला गया... आपकी कविता एक ऐसी rare commodity की तरफ इंगित करती है, जो scarce होती जा रही है. शायद निर्जीव वृक्षों और सजीव कहलाने वाले इंसानों में यही अंतर है ‘झुकने का.’ तभी तो वृक्ष कटते जा रहे हैं और इंसनों की बनाई अट्टलिकाएँ सीना ताने एलान कर रही हैं कि सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं.
पुनः सुस्वागतम!

रचना दीक्षित said...

यही सच है.आपसे पूरी तरह सहमत हूँ अच्छी रचना

दिगम्बर नासवा said...

शांति प्रिय मानस कभी
माफी मांगते ना अलसाए
फलो से लदी शाखाएँ भी
हमने देखी झुकती ही जाए ...

सच है ... ऐसा अक्सर देखा है रोज रोज जीवन में ... माफी माँगने में आलस तो होना भी नही चाहिए ....

Anonymous said...

"फलो से लदी शाखाएँ भी
हमने देखी झुकती ही जाए"
जी सही और अधजल गगरी छलकत जाए

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर !

शोभना चौरे said...

bahut dino bad apki kvita mili pdhne ko .
sarl shbdo me jeevan ki sarthkta batla di hai abhar .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह!

arpit said...

bahut sunder kavita

http://bejubankalam.blogspot.com/

Urmi said...

बहुत ही सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!

सदा said...

शांति प्रिय मानस कभी
माफी मांगते ना अलसाए

अक्षरश: सत्‍य, बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति, आभार ।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

issi shouk ne to
logo ki jindagi ko
barbad karne ki koshish ki hai.......:(

badhiya!!
infact bahut badhiya...:)

KAVITA said...

बाल की खाल
निकालना होता है
कईयों का शौक
ये भी एक
विकार ही है
कठिन है
लगाना पर रोक
...sach mein kuch logon ka yahi sabse priya kaam hota hai...
Yatharth rachna....
Saarthak lekhan ke liye Haardik shubhkamnayne.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एगो मामूली पत्थर थे हम, आपके स्पर्श ने इस पत्थर को मानिक बना दिया और एक मूरत को अहिल्या... हमरी कुटिया आज पवित्तर हो गई...

शिवम् मिश्रा said...

सत्य वचन |

सम्वेदना के स्वर said...

ma'm,
Unable to see your latest post 'KUNTHAA'. PLease reset.

alka mishra said...

आपने इतनी सी बात को कितनी आसानी से कविता बना दिया. सच, हुनरमंद कोयले को भी हीरा बना देता है.
** आपने कुचकुचा के बारे में पूछा है, मुझे हंसी आ गयी, अरे भाई, ये क्रश करने के लिए कहा था. यह कोई जड़ी-बूटी नहीं है.
अपना आशीर्वाद यूंही बनाए रखिए.

kshama said...

Aapke khayalat hamesha sanjeeda hote hain..wahi rachnaon me chhalak jate hain!

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi badhiyaa

मनोज कुमार said...

बहुत सुन्दर !

ज्योति सिंह said...

sabhi aham baate aapki rachnao me shaamil hoti hai .sundar aur sach .