Saturday, May 1, 2010

पकड़

भावनाओं पर
सोंच की पकड़
रखनी पडती ही
है बड़ी मज़बूत ।
भाव तांकि
फिसल बहा ना
ले जाए विचारों
की सार्थकता
फिसलन से
ही तो साथ
जाता है छूट ।

29 comments:

कविता रावत said...

भावनाओं पर
सोंच की पकड़
रखनी पडती ही
है बड़ी मज़बूत ।
Maa ji Saarthak aur Prerak prastuti ke liye dhanyavaad.

दिलीप said...

bahut khoob saadar pranam...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

bhawnaon par soch ki pakar, bahut achchhi salah hai..........dhyan rakhunga..........:)

Smita Srivastava said...

Awesome , i simply admire all ur creations !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत शिक्षाप्रद ...भावनाओं पर सोच की पकड़....सुन्दर अभिव्यक्ति

रश्मि प्रभा... said...

pakad majboot hai

निर्झर'नीर said...

फिसलन से
ही तो साथ
जाता है छूट ।


बड़ी मज़बूत पकड़ है आपकी भावों पर और शब्दों पर

सम्वेदना के स्वर said...

जीवन को एक नया दर्शन मिल...

कडुवासच said...

फिसलन से
ही तो साथ
जाता है छूट ।
... बहुत सुन्दर !!!

मनोज कुमार said...

इसे सूक्ति ही कहूंगा .... एक सार्थक रचना।

Udan Tashtari said...

अच्छा सीख...

Anonymous said...

"फिसलन से
ही तो साथ
जाता है छूट।"
खरी और पते की बात

nilesh mathur said...

वाह ! क्या बात है, सत्य वचन !

sm said...

nice poem
emotions vs intelligence
भावनाओं पर
सोंच की पकड़
रखनी पडती ही
है बड़ी मज़बूत ।

Ra said...

कम शब्दों में गहरी बात ....शानदार रचना

alka mishra said...

सही कहा आपने --
फिसलन से ही साथ छूटता है

अगर आपकी नजर में कोई सोरायसिस का मरीज हो तो हमारे पास भेजिए ,हम उसका फ्री ईलाज करेंगे दो महीने हमारे पास रहना होगा

www.sahitya.merasamast.com

Satish Saxena said...

इस बीच कुछ अधिक व्यस्त रहा सो नियमित नहीं था, आपकी शिकायत अच्छी लगी , आभारी हूँ ! फोन न. ९८११०७६४५१ है ! यूरोप ट्रिप १५ मई - ३० मई है !
सादर

मनोज भारती said...

सुंदर भाव ...जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति ।

पूनम श्रीवास्तव said...

फिसल बहा ना
ले जाए विचारों
की सार्थकता
फिसलन से
ही तो साथ
जाता है छूट ------sach kaha apne bhavnaon aur soch men balancwe to banana hee padata hai.
Poonam

अनामिका की सदायें ...... said...

wah bhavnao par soch ki pakad...bahut gahri baat kahi.

aapne jo NAZUK LAMHE apni blog list me add kiya hua he vo mera hi blog he kisi aur naam se.

shukriya.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सच है ..फिसलन से ही साथ छूटता है.
मगर वह क्या करे जिसे उस व्यवस्था की नदी में गोते लगाना है जहाँ हर घाट पर काई जमी है.

nidhi said...

Bahut sundar rachna...soch ko nayi disha dena wala lekhan hai aapka!

रचना दीक्षित said...

जीवन दर्शन को समझती रचना अच्छी लगीं
आभार

अरुणेश मिश्र said...

आत्मानुशासन को शक्ति प्रदान करने वाली प्रशंसनीय रचना ।

Dr. Tripat Mehta said...

wah wah kya baat hai!

सम्वेदना के स्वर said...

यकीन मानें, आज आपके व्लॉग पर आकर शिकायत करने वाला था कि हमसे क्या नाराज़गी है कि आप सारी दुनिया घूम आती हैं, लेकिन हमारे दर पर आने से परहेज करती हैं... आप हमारी बुज़ुर्ग हैं और हमारे लिए पूज्य भी, इसलिए आपका आशीर्वाद ही हमारा ईनाम है… अपने आशीष का हाथ बनाए रखिए, हमारी लेखनी आपकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी...

अजय कुमार said...

सारगर्भित संदेश ,भावनाओं पर पकड़ जरूरी है ।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

यही कोशिश हमेशा रहती है.. लेकिन कभी कभी भावनाये, सोच की पकड से भी छूट ही जाती है.. फ़ेवीकोल का जोड चाहिये इनके लिये :)

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .... गहरी सोच से निकली रचना है ...