मेरे घर के
द्वार की कुंडी
किसी ने आकर
खटखटाई
व्यस्त थी मैंने
भीतर से ही
आवाज़ लगाई
पूछा कौन ?
वो खड़ा था
एकदम मौन ।
फिर बोला
मै हूँ अवसर
लोग मुझे पा
जिन्दगी बनाते है
मुझे खो दे तो
बड़ा पछताते है
मैंने मन ही
मन सोचा
परिचय देने की
ऐसी क्या
आन पडी ?
कई प्रतीक्षा
करते है
इसका हाथ
पर हाथ रख
हर घड़ी ।
मै मंद मंद
मुस्काई
उसे लगा मै
उसे पहचान
नहीं पाई ।
मैंने कंहा
तुम तो सदैव
साथ रहते हो
फिर क्यों
आगंतुक बन
आकर मुझे
छलते हो ?
जो करले
समय का
सदुपयोग
नाम तुम्हारा
होता है ।
जंहा होता है
दुरूपयोग
भाग्य उन्ही का
सोता है ।
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।
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24 comments:
जीवन की वास्तविकता का अहसास है समय ! अक्सर हम उसे कहने के बाद ही याद करते हैं !
वाह........ ! आज मुझे भी आपकी ताजा-तरीन प्रस्तुती पढने का अवसर मिल ही गया !! बहुत ही अच्छा... और आपको बहोत-बहोत धन्यवाद !!!! कहीं-कहीं मात्राएँ टूट रही हैं और कहीं-कहीं पर पन्चुएशन मार्क्स की योजना कर ली जाए तो परफेक्ट !!!!!! धन्यवाद !!!!!!!
"व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं"
बहुत सुंदर और सटीक
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।
zindagee ke prati sahi nazariye ka nichod bata diya aapne!
यह अवसर आगंतुक सा ही लगता है, हमेशा इसे महसूस करनेवाले कम होते हैं
kya khoob kaha hai aap ne main kis kis pankaion ko cot karu duvidha main hoo , sadhuwad
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।
सटीक....ज़माना उनका नहीं होता जो अवसर का इंतज़ार करते हैं...बल्कि जो अवसर को दास बना लेते हैं दुनिया उनके ही कदमों में झुकती है
वाह ....छंदबद्ध कविता लिखने में आप माहिर हैं ....
बहुत खूब .....!!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ....बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ हैं आपकी.
सो स्वीट!! जवाब नहीं आपके अतिथि का. दस्तक देकर आ जाते हैं. न जाने कितने ऐसे लोग भी हैं जो इनके लिए दरवाज़ा खोलने की ज़हमत भी गवारा नहीं करते. अतिथि देवो भव का अर्थ आपने समझाया है, देवता लौट गये द्वार से खाली तो बस भाग्य को ही कोसते रहते हैं लोग. ऐसे अतिथि आ जाएँ तो कौन कहेगा, “अतिथि तुम कब जाओगे!”
बहुत बढ़िया और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बड़े ही सुन्दरता से आपने जीवन की वास्तविकता को शब्दों में पिरोया है! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।
इस कविता में यथार्थबोध के साथ कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।
वाह ! कमाल की पंक्तियाँ लिखी है! अति सुन्दर!
bahut sundar shikashaa detee rachanaa badhaaI
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं
bahut pate ki baat kahi hai ,sundar rachna
bahut-bahut khoob.. ek aavashyak kavita
सच है जो समय के साथ चलते हैं अवसर उनका साथ देता है ....
पहली बार आया हूँ इस गली
बहुत अच्छा लगा
आपके ज़ज्बात पढ़कर
कुछ अपना सा लगा
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/
जितनी प्रशंसा की जाय कम है ।
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।
ekdam khari baat... bahut khoob
वाह हमेशा कि तरह फिर जीवन के सत्य से रूबरू करवाने के लिए आभार
जो करले
समय का
सदुपयोग
नाम तुम्हारा
होता है ।
जंहा होता है
दुरूपयोग
भाग्य उन्ही का
सोता है ।
व्यस्त मानस
अवसर का
मोहताज़ नहीं
आलसी करते है
इसका इंतजार
ये भी कोई
राज़ नहीं ।
सरिता जी,
बहुत बढ़िया !!
सच्ची और प्रक्टिकल सोच हैं
सच, सोलह आने सच....
कोशिश करूँगा, सुधर जाऊं!
आजकल .."मैं अवसर हूँ" कहके धोखा देने वाले बहुतेरे मिल जाते हैं. व्यस्त मानस अवसर का मोहताज नहीं रहता.
..बहुत अच्छी व जरूरी बात लिखी है आपने.
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