Monday, May 10, 2010

मेरी दादी

मेरी दादी सचमुच मे कहावतो का भंडार थी । हर अवसर पर एक कहावत बोल देती थी । हम बच्चे खेलते खेलते किसी भाई बहिन की शिकायत लेकर जब उनके पास जाते थे वे किसी का कोई पक्ष नहीं लेती थी बस हंस कर कह देती थी ।

क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......

बस बड़े माफ़ कर देते थे और खेल फिर शुरू हो जाता था ।

अब जीवन के अनुभवों से जो सीखा है लगता है दो पंक्तिया इसमे अपनी जोड़ ही दे ।


क्षमा बडन को चाहिए
छोटन को उत्पात .......

( दो के बीच मे )

तीसरा पक्ष ले बोल पड़े
तभी बडती है बात

22 comments:

रश्मि प्रभा... said...

bilkul sachchi...teesra baat badhata hai

sangeeta said...

i was reminded of my own dadi.....very true about the third party opinion..

कविता रावत said...

bilkul sahi kaha aapne do ke beech mein teesre ki bhumika baat badhne ki hi adhik hoti hai...

Swatantra said...

very true!! Would like to hear more on this from you!!

Anonymous said...

जितने बोलेंगे बात उतनी ही बढ़ेगी - सही

दिगम्बर नासवा said...

कहावत को और भी सार्थक कर दिया आपने ...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मुझे भी अपने बुजुर्गों से मुहावरे सुनकर, गाहे-बगाहे उन्हीं की तरह प्रयोग करने कि बिमारी थी. यह बिमारी तब छूटी जब जाना कि मैं तो गलत-सलत प्रयोग कर देता हूँ और हँसी का पात्र बन जाता हूँ!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह...बहुत सटीक बात कही है ...जब तीसरा टांग अडाता है तभी बात बढती है....

अच्छी सीख देती हुई बढ़िया पोस्ट.....

सम्वेदना के स्वर said...

दादी ने अपने समय की बातें कही थीं, जब बड़े क्षमा कर देते थे चाहे छोटे कितने ही उत्पाती क्यों न हों... लेकिन आपने वर्त्तमान संदर्भ में पक्षपात की नई परिभाषा गढ दी है...एक नया आयाम किंतु सच!!

मनोज कुमार said...

...क्या बात है!
... ... क्या बात है!!
... ... ... क्या बात है!!!

sm said...

very true
saying teesra baat badhata hai

Ra said...

सही बात और............ अच्छे तरीके से कही आपने ....दन्यवाद

पूनम श्रीवास्तव said...

sarita di.gat bees dini se net ki gadbadi se comment nahi post kar parahi hun .idhar do dino se net aata hai chala jata hai.aaj labhag pandrah minute se aapke blog par post karne ke liye baithi hun par net ka aana jana laga hua hai. soha tha aaj may ke aapke saare posto par tippni dal kar rahungi ,par aisa sambhav nahi dikh raha hai.ise liye aaj waale post par comment dal rahi hun ,beech me net fir kahi dhokh na de jaye.
aapneis kahawat me jo pankti jodi hai vah solah aane sahi hai.
baaki posto par tippni nade paane ka mujhe behad afsos hai par mai achhtarah janti hun ki aap mujhe dil se kshma karengi.
aapki poonam

Parul kanani said...

dadi .......kuch chitra ubhar gaye aankhon mein!

RAJWANT RAJ said...

do me tesre ki bhumika uski gunvtta ke aadhar pr ty hoti hai .smjhdar hoga to bat khtm krayega murkh hoda to dono ka our bhi bera grk krega .

hr surat me bat niklegi to door tlk jayegi

रचना दीक्षित said...

सही बात और अच्छी सीख
सार्थक पोस्ट.....

Anonymous said...

bilkul sach....
achha laga padhkar...
.
yun hi likhte rahein...
-----------------------------------
mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/

R.Venukumar said...

दादीजी ने यह भी कहा होगा ..तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा

अनुभव से बड़ा शिक्षक कोई दूसरा नहीं

इस्मत ज़ैदी said...

बहुत बढ़िया ,बचपन याद दिला दिया आप ने

Rajeysha said...

तीसरी पंक्‍ि‍त भी अर्थ को स्‍पष्‍ट करती हुई जोड़ी है, सार्थक है।

दीपक 'मशाल' said...

बिना किसी दुर्भावना के बड़ों को क्षमा करना ही चाहिए.. बशर्ते गलती ही की गयी हो अपराध नहीं..

Satish Saxena said...

:-) सही लिखा आपने