कल की चिंता हो क्योंकर उन्हें
जो आज संवारने मे पूरे जुटे है ।
मेहनत पर जो करे विश्वास
उनके सपने अवश्य पूरे हुए है ।
Thursday, December 31, 2009
Saturday, December 26, 2009
सन्देश व नव वर्ष की शुभकामनाएँ
एक कांटा क्या चुभा
सभी फूलों से रूठ जाए
उनकी महक भूल जाए
ये तो लगता उचित नही ।
ठोकर लगी , तनक लडखडाए
तो क्या ? तुरंत संतुलन बनाते
कदम आगे बढाए ,भय भगाए
होगा उस समय ये ही सही ।
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
सभी फूलों से रूठ जाए
उनकी महक भूल जाए
ये तो लगता उचित नही ।
ठोकर लगी , तनक लडखडाए
तो क्या ? तुरंत संतुलन बनाते
कदम आगे बढाए ,भय भगाए
होगा उस समय ये ही सही ।
इंसान ये चाहे बस बसंत ही रहे
सदैव उसके जीवन मे
प्रकृति के भी कुछ नियम है
ये तो हो सकता मुमकिन नही ।
Saturday, December 19, 2009
प्रश्न
नदी ने पूछा सागर से
इतना उफान ?
इतने अशांत ?
इतना खारापन ?
इतना भारीपन ?
इतनी गहराई ?
सागर भीने से मुस्काया
बोला , इतनी जिज्ञासा ?
इतने प्रश्न ?
क्या कभी सोचा है ?
चाँद सूरज करते
मुझसे क्यों खेल ?
लहरे क्यो चाहे
तटो से करना मेल ?
एक बात और
जो मेरे भी समझ
मे नही आई ?
नदी बताओ
इतने संशय फ़िर भी
तुम क्यो आकर
मुझमे ही समाई ?
इतना उफान ?
इतने अशांत ?
इतना खारापन ?
इतना भारीपन ?
इतनी गहराई ?
सागर भीने से मुस्काया
बोला , इतनी जिज्ञासा ?
इतने प्रश्न ?
क्या कभी सोचा है ?
चाँद सूरज करते
मुझसे क्यों खेल ?
लहरे क्यो चाहे
तटो से करना मेल ?
एक बात और
जो मेरे भी समझ
मे नही आई ?
नदी बताओ
इतने संशय फ़िर भी
तुम क्यो आकर
मुझमे ही समाई ?
Monday, December 14, 2009
मेरी सोंच
जब विचारो मे न हो
कोई ताल मेल और
न हो धैर्य और समय
एक - दूसरे की
बात सुनने , समझने का
तो सम्बन्ध ऐसे मे
बनाए रखना हो कर
रह जाता है महज
औपचारिक ।।
लेकिन
जंहा हो एक दूसरे को
को समझने की ललक
और विचारो मे भी ताल मेल
वंहा समय भी निकलता है
और भावनाए भी आ
जुड़ती है हमसे , फिर
संबंधो मे घनिष्टता
पनपना हो ही जाता है
स्वाभाविक ।।
कोई ताल मेल और
न हो धैर्य और समय
एक - दूसरे की
बात सुनने , समझने का
तो सम्बन्ध ऐसे मे
बनाए रखना हो कर
रह जाता है महज
औपचारिक ।।
लेकिन
जंहा हो एक दूसरे को
को समझने की ललक
और विचारो मे भी ताल मेल
वंहा समय भी निकलता है
और भावनाए भी आ
जुड़ती है हमसे , फिर
संबंधो मे घनिष्टता
पनपना हो ही जाता है
स्वाभाविक ।।
Tuesday, December 8, 2009
आशा किरण
मेरे बाबूजी जो अब
नही मेरे साथ
आशा और विश्वास
की दी थी उन्होंने
मुझे अनमोल सौगात ।
बचपन मे बांधी थी
मेरी चिट्टी उंगली से
एक अदृश्य डोर ।
दूसरे किनारे था
आशा किरण का छोर ।
जीवन मे निराशा,उलझने
नही डाल पाती घेरा ।
आशा , विश्वास जो करते
है सदा यँहा बसेरा ।
जँहा हों दृडता
कुछ करने की लगन ।
लक्ष्य को पाने
हों जाए जो मगन ।
बदकिस्मती भी थक -हार
उड़न छू हों जाती है ।
और फिर मंजिल
साफ़ पास नज़र आती है ।
नही मेरे साथ
आशा और विश्वास
की दी थी उन्होंने
मुझे अनमोल सौगात ।
बचपन मे बांधी थी
मेरी चिट्टी उंगली से
एक अदृश्य डोर ।
दूसरे किनारे था
आशा किरण का छोर ।
जीवन मे निराशा,उलझने
नही डाल पाती घेरा ।
आशा , विश्वास जो करते
है सदा यँहा बसेरा ।
जँहा हों दृडता
कुछ करने की लगन ।
लक्ष्य को पाने
हों जाए जो मगन ।
बदकिस्मती भी थक -हार
उड़न छू हों जाती है ।
और फिर मंजिल
साफ़ पास नज़र आती है ।
Sunday, November 29, 2009
स्वर्ग - नर्क
दुनिया हर क्षण
करवट बदल रही
बस बीते जाए
सुबह और शाम ।।
समय का अभाव है
जान लीजिये भई
बात हो गयी
है अब ये आम ।।
दौड़ - भाग मे
सभी लगे
निज स्वार्थ मे है
आज सब तल्लीन ।।
पर , की सोचने
के लिए दिल कंहा ?
भलमनसाहत होगई
है आज विलीन ।।
आज मानव हो
गया है जूझते-जूझते
परस्थितियों से
इतना निराश ।
कोई मदद करेगा
आगे बड़कर
ये भी करता नही
वो आजकल आस ।
ऐसे मे अनायास
कोई सहारा देने
अगर अपने हाथ
उसकी ओर बढाए ।।
कुछ क्षण भौचक्का सा
स्वप्न है या हकीकत ?
इस पशोपेश मे ,यकीन
करने मे समय लगाए ।।
सोच - विचार मे
भी आगया है
बहुत ही , अब फर्क ।।
मरने के बाद
किसने देखा है ।
अपने व्यवहार से
इंसान बनाता है
यही पर स्वर्ग
और यंही पर नर्क ।।
करवट बदल रही
बस बीते जाए
सुबह और शाम ।।
समय का अभाव है
जान लीजिये भई
बात हो गयी
है अब ये आम ।।
दौड़ - भाग मे
सभी लगे
निज स्वार्थ मे है
आज सब तल्लीन ।।
पर , की सोचने
के लिए दिल कंहा ?
भलमनसाहत होगई
है आज विलीन ।।
आज मानव हो
गया है जूझते-जूझते
परस्थितियों से
इतना निराश ।
कोई मदद करेगा
आगे बड़कर
ये भी करता नही
वो आजकल आस ।
ऐसे मे अनायास
कोई सहारा देने
अगर अपने हाथ
उसकी ओर बढाए ।।
कुछ क्षण भौचक्का सा
स्वप्न है या हकीकत ?
इस पशोपेश मे ,यकीन
करने मे समय लगाए ।।
सोच - विचार मे
भी आगया है
बहुत ही , अब फर्क ।।
मरने के बाद
किसने देखा है ।
अपने व्यवहार से
इंसान बनाता है
यही पर स्वर्ग
और यंही पर नर्क ।।
Wednesday, November 25, 2009
रिश्ते ( २ )
कुछ रिश्ते महज
नाम के होते है रिश्ते ।
और कुछ होते है
सिर्फ़ - दिखावे के रिश्ते ।
मेरी सोच की दुनिया मे
इनका कोई अस्तित्व नही
ऐसे रिश्ते निभाना
मेरी नज़रो मे
आम व्यक्ती के लिए
मुमकिन हो सकता नही।
कभी - कभी कुछ
अनजान रिश्ते बन जाते है ।
जिन्हें नाम देने मे हम
अपने आपको असमर्थ पाते है ।
जो रिश्ता आपके
दुःख दर्द का रहा हो साथी ।
जिस रिश्ते ने आपकी
हर भावना है मूक हो बांटी ।
ऐसे रिश्ते को किसी
संज्ञा ,विशेषण की
चाह नही होती ।
अनमोल होते है ये रिश्ते
इनकी कोई कीमत नही होती ।
मानवता का रिश्ता
जो उत्साह , लगन से निभाए ।
मेरी नज़रो मे वो रिश्ता
सर्वोपरी हो जाए ।
वैसे आस्था विश्वास की
नींव पर बने रिश्ते
आड़े समय काम आकर
मुश्किल से हमे उभारते है।
ख़राब समय ऐसे मे कैसे ?
अछूता निकल जाता
हम देखते दंग रह जाते है ।
सतर्क रहना है हमें , अवहेलना
तिरस्कार ना आपाए
हमारे व्यवहार से
रिश्तो के बीच कभी ।
बड़ो के लिए हो दिल मे
मान - सम्मान , अपनत्व
छोटो के प्रति प्यार व क्षमा -भाव
निभते फिर रिश्ते आसानी से सभी ।
नाम के होते है रिश्ते ।
और कुछ होते है
सिर्फ़ - दिखावे के रिश्ते ।
मेरी सोच की दुनिया मे
इनका कोई अस्तित्व नही
ऐसे रिश्ते निभाना
मेरी नज़रो मे
आम व्यक्ती के लिए
मुमकिन हो सकता नही।
कभी - कभी कुछ
अनजान रिश्ते बन जाते है ।
जिन्हें नाम देने मे हम
अपने आपको असमर्थ पाते है ।
जो रिश्ता आपके
दुःख दर्द का रहा हो साथी ।
जिस रिश्ते ने आपकी
हर भावना है मूक हो बांटी ।
ऐसे रिश्ते को किसी
संज्ञा ,विशेषण की
चाह नही होती ।
अनमोल होते है ये रिश्ते
इनकी कोई कीमत नही होती ।
मानवता का रिश्ता
जो उत्साह , लगन से निभाए ।
मेरी नज़रो मे वो रिश्ता
सर्वोपरी हो जाए ।
वैसे आस्था विश्वास की
नींव पर बने रिश्ते
आड़े समय काम आकर
मुश्किल से हमे उभारते है।
ख़राब समय ऐसे मे कैसे ?
अछूता निकल जाता
हम देखते दंग रह जाते है ।
सतर्क रहना है हमें , अवहेलना
तिरस्कार ना आपाए
हमारे व्यवहार से
रिश्तो के बीच कभी ।
बड़ो के लिए हो दिल मे
मान - सम्मान , अपनत्व
छोटो के प्रति प्यार व क्षमा -भाव
निभते फिर रिश्ते आसानी से सभी ।
Friday, November 20, 2009
रिश्ते ( १ )
कई रिश्ते
हलके से लगे
कई रिश्ते लगे
बड़े ही भारी ।
क्या रिश्तो मे
वजन होता है ?
कदापि नही ,महज़
सोच है हमारी ।
जंहा हो अपनेपन
का आदान प्रदान
वंहा ये खुल कर
श्वास ले , जी लेते है
अतः पनप जाते है ।
जंहा हो महज
दिखावा , बनावट
वंहा बड़ी घुटन , तड़पन
महसूस कर ये
दम तोड़ जाते है ।
अपनत्व से भरे रिश्ते
बड़े दिल के करीब
और सुहावने होते है
इसमे कोई शक ही नही ।
त्याग , प्यार और धैर्य मे
बड़ी शक्ती होती है
हर रिश्ते को निभाने की
ये बात भी लगती है
सतही तौर पर पूर्णतः सही ।
हलके से लगे
कई रिश्ते लगे
बड़े ही भारी ।
क्या रिश्तो मे
वजन होता है ?
कदापि नही ,महज़
सोच है हमारी ।
जंहा हो अपनेपन
का आदान प्रदान
वंहा ये खुल कर
श्वास ले , जी लेते है
अतः पनप जाते है ।
जंहा हो महज
दिखावा , बनावट
वंहा बड़ी घुटन , तड़पन
महसूस कर ये
दम तोड़ जाते है ।
अपनत्व से भरे रिश्ते
बड़े दिल के करीब
और सुहावने होते है
इसमे कोई शक ही नही ।
त्याग , प्यार और धैर्य मे
बड़ी शक्ती होती है
हर रिश्ते को निभाने की
ये बात भी लगती है
सतही तौर पर पूर्णतः सही ।
Friday, November 13, 2009
फ्रेम
सत्ता की ना हो चाह ,
रखे ,जन - हित मे
वो अपना पूरा ध्यान
कुछ करने का बस हो जज्बा
दिल मे , और देश से हो
उनका अगाध प्रेम । ।
कैसी आशाये ले बैठी ?
अब वो त्याग , समर्पण कंहा ?
वैसे नेता तो टंग चुके है
और शोभा बड़ा रहे है
सरकारी भवनों की बस
दीवारों पर , बनके फ्रेम । ।
रखे ,जन - हित मे
वो अपना पूरा ध्यान
कुछ करने का बस हो जज्बा
दिल मे , और देश से हो
उनका अगाध प्रेम । ।
कैसी आशाये ले बैठी ?
अब वो त्याग , समर्पण कंहा ?
वैसे नेता तो टंग चुके है
और शोभा बड़ा रहे है
सरकारी भवनों की बस
दीवारों पर , बनके फ्रेम । ।
Sunday, November 8, 2009
खटास
रेड्डी भाइयो का
रूठना,धमकाना
और बी जे पी के
दिग्गजों का उन्हें
मनाना,समझाना
मुख्य - मंत्री का
टूट जाने की हद तक
समझौते के नाम पर
झुक जाना
कर्नाटक को क्या
पूरे देश को ही
स्तब्ध कर गया है ।
आज पेपर पढ़ने
के साथ - साथ
बासी दूध की बनी
हम पी रहे थे चाय ।
इतने मे घंटी बजी
ताजा दूध आया
मैंने स्टील की भगौनी
पानी से धो - खंखार
झट से उसमे दूध
उबलने चढाया ।
अरे ये क्या हुआ ?
दूध तुंरत फट गया ।
धुली भगौनी
और था ताज़ा दूध
सोचने लगी फिर
ये क्या हुआ चक्कर ?
कंही माहौल मे
फ़ैली राजनीति की
खटास का तो दूध पर
नही था ये असर ?
रूठना,धमकाना
और बी जे पी के
दिग्गजों का उन्हें
मनाना,समझाना
मुख्य - मंत्री का
टूट जाने की हद तक
समझौते के नाम पर
झुक जाना
कर्नाटक को क्या
पूरे देश को ही
स्तब्ध कर गया है ।
आज पेपर पढ़ने
के साथ - साथ
बासी दूध की बनी
हम पी रहे थे चाय ।
इतने मे घंटी बजी
ताजा दूध आया
मैंने स्टील की भगौनी
पानी से धो - खंखार
झट से उसमे दूध
उबलने चढाया ।
अरे ये क्या हुआ ?
दूध तुंरत फट गया ।
धुली भगौनी
और था ताज़ा दूध
सोचने लगी फिर
ये क्या हुआ चक्कर ?
कंही माहौल मे
फ़ैली राजनीति की
खटास का तो दूध पर
नही था ये असर ?
Wednesday, November 4, 2009
दिल
दिल कांच की भांति
आजकल टूटते नही ।
खोजोगे अगर आप एक
तो मिलेंगे कई ।
जिंदगी भर साथ
निभाने की बातें
आजकल नही होती ।
सभी आज मे जीना
पसंद करते है
भविष्य की चिंता
किंचित नही होती ।
दिल की कदर
अब वो नही रही
बदल गई है ।
है ये आज की दास्ताँ ।
रहने को दिल मे
जगह नही चाहिए
एक अच्छे मकान का
बस है वास्ता ।
आजकल लैला - मजनू
जैसे किस्से सुनने -पड़ने
मे कत्तई नही आए ।
हीर राँझा के किस्से भी
इतिहास के पन्नो की
ही शोभा बस बढाए ।
नैतिक मूल्यों मे जो
आया है इतना पतन ।
उत्थान के लिए , हमें
करने ही होंगे अब यतन ।
आजकल टूटते नही ।
खोजोगे अगर आप एक
तो मिलेंगे कई ।
जिंदगी भर साथ
निभाने की बातें
आजकल नही होती ।
सभी आज मे जीना
पसंद करते है
भविष्य की चिंता
किंचित नही होती ।
दिल की कदर
अब वो नही रही
बदल गई है ।
है ये आज की दास्ताँ ।
रहने को दिल मे
जगह नही चाहिए
एक अच्छे मकान का
बस है वास्ता ।
आजकल लैला - मजनू
जैसे किस्से सुनने -पड़ने
मे कत्तई नही आए ।
हीर राँझा के किस्से भी
इतिहास के पन्नो की
ही शोभा बस बढाए ।
नैतिक मूल्यों मे जो
आया है इतना पतन ।
उत्थान के लिए , हमें
करने ही होंगे अब यतन ।
Monday, November 2, 2009
अपनत्व
अपनत्व ही
मेरा शस्त्र है ।
अपनत्व ही
है मेरी ढाल ।
अपनत्व से सदा
घिरी , सुरक्षित
हूँ मै ,नही डर
आए कोई भूचाल ।
मेरा शस्त्र है ।
अपनत्व ही
है मेरी ढाल ।
अपनत्व से सदा
घिरी , सुरक्षित
हूँ मै ,नही डर
आए कोई भूचाल ।
Thursday, October 29, 2009
आलस
आलस है हमारे मन की
एक ऐसी अनचाही उपज
जीवन मे समां जाए तो
दिनचर्या जाती है उलझ ।
जंहा आलस आकर
जीवन मे डाले डेरा ।
वंहा उत्साह उमंग भी
नही करते है बसेरा ।
आलस की चादर
जो कोई भी ओडे
स्वावलंबन तुंरत ही
उनका अंगना छोडे ।
आलस है एक शायद
मानसिक कमजोरी ।
चंगुल से निकलना इसके
सभी के लिये है बहुत जरूरी।
आलस हमारे जीवन मे
एक वाधा बन कर है आता ।
और इसके राज्य मे
जीवन घिसटता चला जाता ।
आलसी को कौन समझाए
सब कुछ पा सकते हो
पर खोया समय कभी
लौट कर हाथ ना आए ।
अवसर तो फिर भी कभी कभार
आलसी के घर कुंडी खटखटाए ।
घुटने टेक सोया आलसी का आत्मबल
दरवाजा भी समय पर खोल न पाए ।
एक ऐसी अनचाही उपज
जीवन मे समां जाए तो
दिनचर्या जाती है उलझ ।
जंहा आलस आकर
जीवन मे डाले डेरा ।
वंहा उत्साह उमंग भी
नही करते है बसेरा ।
आलस की चादर
जो कोई भी ओडे
स्वावलंबन तुंरत ही
उनका अंगना छोडे ।
आलस है एक शायद
मानसिक कमजोरी ।
चंगुल से निकलना इसके
सभी के लिये है बहुत जरूरी।
आलस हमारे जीवन मे
एक वाधा बन कर है आता ।
और इसके राज्य मे
जीवन घिसटता चला जाता ।
आलसी को कौन समझाए
सब कुछ पा सकते हो
पर खोया समय कभी
लौट कर हाथ ना आए ।
अवसर तो फिर भी कभी कभार
आलसी के घर कुंडी खटखटाए ।
घुटने टेक सोया आलसी का आत्मबल
दरवाजा भी समय पर खोल न पाए ।
Saturday, October 24, 2009
विश्वास
अनुशासित हो
अपनी सोंच
तो फिर जीवन
भटकन से रहे दूर ।
अभिलाषाओं को
पूर्ण करने की
क्षमता हममे ही है
विश्वास रखे भरपूर ।
अपनी सोंच
तो फिर जीवन
भटकन से रहे दूर ।
अभिलाषाओं को
पूर्ण करने की
क्षमता हममे ही है
विश्वास रखे भरपूर ।
Tuesday, October 6, 2009
संतुलन
भीगी अनुभूति
भीगे एहसास
जब भी माहौल को
पूरे तौर से
भिगा जाते है
और यों दिलो मे
सभी की ठंडक
पैदाकर जाते है ।
आत्मीयता मे
सने , लिपटे
मेरे तपते दबे जज्वात
गर्माहट देने
न जाने किस कौने से
ऊपर उठे चले आते है
और यों माहौल मे
संतुलन बना जाते है ।
भीगे एहसास
जब भी माहौल को
पूरे तौर से
भिगा जाते है
और यों दिलो मे
सभी की ठंडक
पैदाकर जाते है ।
आत्मीयता मे
सने , लिपटे
मेरे तपते दबे जज्वात
गर्माहट देने
न जाने किस कौने से
ऊपर उठे चले आते है
और यों माहौल मे
संतुलन बना जाते है ।
Thursday, October 1, 2009
यंहा - वँहा
नौ- दस साल
पहले की है बात ।
मै जब पहुची
थी बोस्टन
हेलोवीन डे
की थी रात ।
निमंत्रण था
हारवर्ड से
मेरे पति का
ग्रेजुएशन डे
अटेंड करने का ।
और साथ ही
अवसर मिला था
सभी प्रोफेसर्स
के साथ
केस स्टडीज
करने का ।
जैसे ही मै कैम्पस
जा ,कमरे मे पहुँची
आकर बेच-मेट्स ने
दिया था धरना ।
मेरा काम था कुछ
सवालों का बस
स्पष्टीकरण करना |
सभी एडवांस
मैनेजमेंट के
ही थे छात्र ।
सभी विदेशी
और मेरे पति
महोदय थे
उनकी जिज्ञासा
के पात्र ।
सभी अचंभित
थे इनकी दी
जानकारी से ।
कि सदा
दूर रहे ये
यंहा घर
चलाने की
कार्य प्रणाली से ।
लौंड्री तक
नही की थी
कभी जीवन मे ।
बात किसी तरह
भी फिट नही हो
पा रही थी
वंहा ,ये
उनके जेहन मे ।
भारत मे पति
करने लगे घर
का अगर काम ।
खिल्ली तो उडेगी
मुफ्त मे हो
जाएगी बिचारी
पत्नी भी
उनकी , बदनाम ।
मैंने स्पष्ट किया
कि शिक्षा , सोंच मे
बदलाव जरूर लाई है ।
अतः नई पीडी मे अब
उत्तरदायित्व को ले
काफी जाग्रति आई है ।
बुद्धजीवी वर्ग
चौदह ,सौलह घंटे
आफिस मे खटता है |
ओर फिर करे
घर आकर भी काम ?
इसका तो प्रश्न ही
नहीं उठता है ।
मेरी पीडी , की पत्नी
पलक पावडे बिछा
पति का इंतजार
हर रोज़ करती है |
ओर पति की हर
ज़रुरत का ध्यान
बिन कहे सुने
सहर्ष रखती है |
वैसे भारत मे
मेहनत मजदूरी व
घरो मे काम करके
जीवन व्यापन
करने वालो की
रहती कमी नही ।
भारत मे आपके पास
अगर है कार
तो ड्राईवर भी होगा |
घर , लॉन भी है
तो माली भी होगा |
घर के छोटे मोटे
कामो मे नौकर
हाथ बटाए |
ऐसी सुविधाओ के लिए
अमेरिका मे बसने वाले
धनी होते हुए भी
तरस ही जाए |
नौकर , ड्राईवर रखना
अमेरिका मे
आम बात नही ।
सभी स्वावलंबी होते है
यंहा ये बात है
शत - प्रतिशत सही ।
पहले की है बात ।
मै जब पहुची
थी बोस्टन
हेलोवीन डे
की थी रात ।
निमंत्रण था
हारवर्ड से
मेरे पति का
ग्रेजुएशन डे
अटेंड करने का ।
और साथ ही
अवसर मिला था
सभी प्रोफेसर्स
के साथ
केस स्टडीज
करने का ।
जैसे ही मै कैम्पस
जा ,कमरे मे पहुँची
आकर बेच-मेट्स ने
दिया था धरना ।
मेरा काम था कुछ
सवालों का बस
स्पष्टीकरण करना |
सभी एडवांस
मैनेजमेंट के
ही थे छात्र ।
सभी विदेशी
और मेरे पति
महोदय थे
उनकी जिज्ञासा
के पात्र ।
सभी अचंभित
थे इनकी दी
जानकारी से ।
कि सदा
दूर रहे ये
यंहा घर
चलाने की
कार्य प्रणाली से ।
लौंड्री तक
नही की थी
कभी जीवन मे ।
बात किसी तरह
भी फिट नही हो
पा रही थी
वंहा ,ये
उनके जेहन मे ।
भारत मे पति
करने लगे घर
का अगर काम ।
खिल्ली तो उडेगी
मुफ्त मे हो
जाएगी बिचारी
पत्नी भी
उनकी , बदनाम ।
मैंने स्पष्ट किया
कि शिक्षा , सोंच मे
बदलाव जरूर लाई है ।
अतः नई पीडी मे अब
उत्तरदायित्व को ले
काफी जाग्रति आई है ।
बुद्धजीवी वर्ग
चौदह ,सौलह घंटे
आफिस मे खटता है |
ओर फिर करे
घर आकर भी काम ?
इसका तो प्रश्न ही
नहीं उठता है ।
मेरी पीडी , की पत्नी
पलक पावडे बिछा
पति का इंतजार
हर रोज़ करती है |
ओर पति की हर
ज़रुरत का ध्यान
बिन कहे सुने
सहर्ष रखती है |
वैसे भारत मे
मेहनत मजदूरी व
घरो मे काम करके
जीवन व्यापन
करने वालो की
रहती कमी नही ।
भारत मे आपके पास
अगर है कार
तो ड्राईवर भी होगा |
घर , लॉन भी है
तो माली भी होगा |
घर के छोटे मोटे
कामो मे नौकर
हाथ बटाए |
ऐसी सुविधाओ के लिए
अमेरिका मे बसने वाले
धनी होते हुए भी
तरस ही जाए |
नौकर , ड्राईवर रखना
अमेरिका मे
आम बात नही ।
सभी स्वावलंबी होते है
यंहा ये बात है
शत - प्रतिशत सही ।
Monday, September 28, 2009
तारे
दिन मे
इनका कोई
अस्तित्व नहीं
सूर्य के उदय
होते ही ये
धुंधलाते है
और फ़िर
विलीन
हो जाते है ।
पर काली
अंधेरी रात
इसकी तो
अलग ही
हो जाती
है बात |
आकाश मे
चन्दा के
राज्य मे
तारो का
झिलमिलाना
टिमटिमाना
जगमगाना
मेरे दिल को
लुभा जाता है |
कुछ बड़े तारे
कुछ छोंटे तारे
पर सबका
मिलजुल कर
साथ - साथ
पर कुछ दूरी
बना कर रहना |
चाहों अगर
कुछ सीखना
तो ये हमें
बहुत कुछ
सिखा जाता है |
दिन भर का
मेरा भटका
थका हारा मन
तारो की
ओड़नी ओडे इस
आसमान के
आँगन आ
बड़ी राहत
पा जाता है ।
और कुछ
ही पलो मे
नभ की
गोद मे
खेल रहे
तारो से खूब
घुल -मिल
सा जाता है |
और अब
शुरू हो
जाता है मेरा
तारा समूह को
खोजना
पहचानना |
वैसे तो
ये है 88
पर मेरी नज़रे
सप्त ऋषी मंडल
पर जा कर
ही लेती है टेक |
जब से
होश संभाला
और मेरे
बाबूजी ने
इनसे मेरा
परिचय कराया
बराबर रहा है
साथ हमारा |
गाँव छूटा
शहर बदले
मेरे बाबूजी भी
बरसों पहले
साथ छोड़ चले |
पर तारा मंडल ने
नहीं छोडा
कभी भी
मेरा साथ |
धन्य हूँ
और आभारी भी
प्रकृति की
पा कर
अतुलनीय
ये सौगात |
इनका कोई
अस्तित्व नहीं
सूर्य के उदय
होते ही ये
धुंधलाते है
और फ़िर
विलीन
हो जाते है ।
पर काली
अंधेरी रात
इसकी तो
अलग ही
हो जाती
है बात |
आकाश मे
चन्दा के
राज्य मे
तारो का
झिलमिलाना
टिमटिमाना
जगमगाना
मेरे दिल को
लुभा जाता है |
कुछ बड़े तारे
कुछ छोंटे तारे
पर सबका
मिलजुल कर
साथ - साथ
पर कुछ दूरी
बना कर रहना |
चाहों अगर
कुछ सीखना
तो ये हमें
बहुत कुछ
सिखा जाता है |
दिन भर का
मेरा भटका
थका हारा मन
तारो की
ओड़नी ओडे इस
आसमान के
आँगन आ
बड़ी राहत
पा जाता है ।
और कुछ
ही पलो मे
नभ की
गोद मे
खेल रहे
तारो से खूब
घुल -मिल
सा जाता है |
और अब
शुरू हो
जाता है मेरा
तारा समूह को
खोजना
पहचानना |
वैसे तो
ये है 88
पर मेरी नज़रे
सप्त ऋषी मंडल
पर जा कर
ही लेती है टेक |
जब से
होश संभाला
और मेरे
बाबूजी ने
इनसे मेरा
परिचय कराया
बराबर रहा है
साथ हमारा |
गाँव छूटा
शहर बदले
मेरे बाबूजी भी
बरसों पहले
साथ छोड़ चले |
पर तारा मंडल ने
नहीं छोडा
कभी भी
मेरा साथ |
धन्य हूँ
और आभारी भी
प्रकृति की
पा कर
अतुलनीय
ये सौगात |
Saturday, September 26, 2009
विकृति
किसी का
दूसरों को
सदैव सताना
तकलीफ देना
चोट पहुचाना
और इसी मे
आनंद उठाना
अगर बन जाए
उसकी आदत
या फ़िर कहू कि
उसकी प्रकृति ।
चुप चाप
मत सहिये
जागिये और
कुछ करिये
ये क्रूर प्रकृति
वास्तव मे है
सोचनीय
दयनीय
उपचार योग्य
एक मानसिक
विकृति ।
दूसरों को
सदैव सताना
तकलीफ देना
चोट पहुचाना
और इसी मे
आनंद उठाना
अगर बन जाए
उसकी आदत
या फ़िर कहू कि
उसकी प्रकृति ।
चुप चाप
मत सहिये
जागिये और
कुछ करिये
ये क्रूर प्रकृति
वास्तव मे है
सोचनीय
दयनीय
उपचार योग्य
एक मानसिक
विकृति ।
Tuesday, September 22, 2009
मानसिकता
बात का बतंगड़ बनाना
तिल का ताड़ करना
लगी चिंगारी को
दबाने , बुझाने की जगह
हवा दे आग लगाना
और भड़काना |
अपने स्वार्थ के लिए
किसी भी मुद्दे को
राजनीति का
मुखौटा पहनाना |
ऐसी मानसिकता
समय समय पर
हम सब को
झेलनी पड़ती है |
कभी धरम के नाम पर
कभी जाति के नाम पर |
रक्षको से घिरे लीडर
तो हर हाल मे
सुरक्षित रहते है पर ........
ना जाने कितने
असहाय लोगो को
जान की आहुति
तक देनी पड़ती है |
तिल का ताड़ करना
लगी चिंगारी को
दबाने , बुझाने की जगह
हवा दे आग लगाना
और भड़काना |
अपने स्वार्थ के लिए
किसी भी मुद्दे को
राजनीति का
मुखौटा पहनाना |
ऐसी मानसिकता
समय समय पर
हम सब को
झेलनी पड़ती है |
कभी धरम के नाम पर
कभी जाति के नाम पर |
रक्षको से घिरे लीडर
तो हर हाल मे
सुरक्षित रहते है पर ........
ना जाने कितने
असहाय लोगो को
जान की आहुति
तक देनी पड़ती है |
Thursday, September 17, 2009
दयनीय स्थिती
घुटना ,चुप रहना
सब कुछ अन्याय
अपने ऊपर
होने पर भी
बिना उफ किए
सहते रहना |
घर की इज्जत
बचाए रखने के लिए
अपने पति की
ज्यादतियों को सदैव
सबसे ढकना ।
आज भी नारी
हमारे गावों मे
ये ही भोग रही है ।
जो कुछ बीत रहा
उसे भाग्य का लिखा
मान कर सह रही है ।
कल पेपर मे पढा
बुंदेलखंड मे कुछ
ऐसा घट गया।
कुछ किसानो ने
खेत खलियान के बाद
जानवरों की भाति
अब पत्नी को भी
महाजन के द्वार
बलि चडा दिया ।
हकीकत तो ये होगी
की समाज के ठेकेदारों ने
मूल, ब्याज, सूद के साथ
बिचारी पत्नी को
भी हथिया लिया ।
अखबार मे ये भी
ख़बर थी कि
एक पति ने
अपनी पत्नी को
एक वृद्ध को कुछ
रकम लेकर , था
बेझिझक बेच दिया
अरे मै तो
भूल ही गई ।
महाभारत मे
चोपड के खेल मे
द्रोपदी भी लगी
थी दांव पर ।
और सीता को भी
देनी पडी थी
अग्नि परिक्षा महज
एक धोबी की
कही बात पर ।
ये कैसी आस्था ?
ये कैसी मजबूरी ?
ऐसे समाज के
खिलाफ आवाज़ उठाना
क्या हम सब के लिए
नही है अब ज़रूरी ?
सब कुछ अन्याय
अपने ऊपर
होने पर भी
बिना उफ किए
सहते रहना |
घर की इज्जत
बचाए रखने के लिए
अपने पति की
ज्यादतियों को सदैव
सबसे ढकना ।
आज भी नारी
हमारे गावों मे
ये ही भोग रही है ।
जो कुछ बीत रहा
उसे भाग्य का लिखा
मान कर सह रही है ।
कल पेपर मे पढा
बुंदेलखंड मे कुछ
ऐसा घट गया।
कुछ किसानो ने
खेत खलियान के बाद
जानवरों की भाति
अब पत्नी को भी
महाजन के द्वार
बलि चडा दिया ।
हकीकत तो ये होगी
की समाज के ठेकेदारों ने
मूल, ब्याज, सूद के साथ
बिचारी पत्नी को
भी हथिया लिया ।
अखबार मे ये भी
ख़बर थी कि
एक पति ने
अपनी पत्नी को
एक वृद्ध को कुछ
रकम लेकर , था
बेझिझक बेच दिया
अरे मै तो
भूल ही गई ।
महाभारत मे
चोपड के खेल मे
द्रोपदी भी लगी
थी दांव पर ।
और सीता को भी
देनी पडी थी
अग्नि परिक्षा महज
एक धोबी की
कही बात पर ।
ये कैसी आस्था ?
ये कैसी मजबूरी ?
ऐसे समाज के
खिलाफ आवाज़ उठाना
क्या हम सब के लिए
नही है अब ज़रूरी ?
Tuesday, September 15, 2009
सय्यम
क्रोध जो
हम सभी का
होता है दुश्मन
गर इसके
चंगुल मे हम
फस जाए ।
सय्यम ही
एक मात्र
साधन है जो
इसके परिणामो
से हमें
सदा बचाए ।
हम सभी का
होता है दुश्मन
गर इसके
चंगुल मे हम
फस जाए ।
सय्यम ही
एक मात्र
साधन है जो
इसके परिणामो
से हमें
सदा बचाए ।
Friday, September 11, 2009
आत्मा
आत्मा हो अगर
हमारी उजली
तो मन भी नही
रहेगा कभी मैला ।
सदैव अपने को
प्रकाश मे पाएँगे
अँधेरा चारो ओर
चाहे हो फैला ।
हमारी उजली
तो मन भी नही
रहेगा कभी मैला ।
सदैव अपने को
प्रकाश मे पाएँगे
अँधेरा चारो ओर
चाहे हो फैला ।
Monday, September 7, 2009
बौना
चोटी पर पहुचना
है अगर ध्येय
तों ऊपर
पहुचने के लिए
चडाई तो
निरंतर करनी होगी |
पर ऊचाई पर पहुच
जो सब धरातल पर
नीचे खड़े है
उन्हें बौना समझ बैठे
तो ये बड़ी भारी
गफलत होगी ।
है अगर ध्येय
तों ऊपर
पहुचने के लिए
चडाई तो
निरंतर करनी होगी |
पर ऊचाई पर पहुच
जो सब धरातल पर
नीचे खड़े है
उन्हें बौना समझ बैठे
तो ये बड़ी भारी
गफलत होगी ।
Sunday, September 6, 2009
नन्हा
नन्हा क्या आया
मेरी बिटिया
के जीवन मे
रौनक है आ गई ।
इसके नींद मे
हँसने की अदा
मेरे दिल मे
है समा गई ।
इसका रोना !
गोदी मे उठाऊ
तो झट से
चुप होना ।
गहरी नींद मे
भी मुस्काना
कभी चौंक उठना
कभी ऐसे
मुह बनाना ।
जैसे दे रहा हो
कोई उलाहना ।
हम सब को
बांधे रखता है ।
अब तो कब
सुबह होती है ।
और कब रात
ये पता ही
नही चलता है ।
मेरी बिटिया
के जीवन मे
रौनक है आ गई ।
इसके नींद मे
हँसने की अदा
मेरे दिल मे
है समा गई ।
इसका रोना !
गोदी मे उठाऊ
तो झट से
चुप होना ।
गहरी नींद मे
भी मुस्काना
कभी चौंक उठना
कभी ऐसे
मुह बनाना ।
जैसे दे रहा हो
कोई उलाहना ।
हम सब को
बांधे रखता है ।
अब तो कब
सुबह होती है ।
और कब रात
ये पता ही
नही चलता है ।
Saturday, September 5, 2009
अकुलाहट
मेरी बिटिया का
full term है चल रहा
अब ये समय सभीका
काटे नही है कट रहा ।
डाक्टर ने दी है
दो सितम्बर की डेट
तब तक तो करना
ही है सभी को वेट ।
माँ और नानी बनने मे है
बहुत ही ज्यादा होता है फर्क ।
बेकार है इस को लेकर
करना किसी तरह का तर्क ।
"मूल से सूद प्यारा होता है "
ये बात अब मै भी जान गई ।
मेरी माँ की , नानी की छवि
अनायास मेरे सामने है आगई ।
लौरी ,कहानिया जो मै सुनाती थी
मेरी बेटियों को रातो मे कभी ।
अचेतन मे छिपी बैठी थी जो कही
उभर कर आगई ऊपर वे सभी ।
मन मे घुस आई है
बिना किये कोई आहट |
समय काटना मुश्किल हो गया
ये ही तो नहीं अकुलाहट ?
full term है चल रहा
अब ये समय सभीका
काटे नही है कट रहा ।
डाक्टर ने दी है
दो सितम्बर की डेट
तब तक तो करना
ही है सभी को वेट ।
माँ और नानी बनने मे है
बहुत ही ज्यादा होता है फर्क ।
बेकार है इस को लेकर
करना किसी तरह का तर्क ।
"मूल से सूद प्यारा होता है "
ये बात अब मै भी जान गई ।
मेरी माँ की , नानी की छवि
अनायास मेरे सामने है आगई ।
लौरी ,कहानिया जो मै सुनाती थी
मेरी बेटियों को रातो मे कभी ।
अचेतन मे छिपी बैठी थी जो कही
उभर कर आगई ऊपर वे सभी ।
मन मे घुस आई है
बिना किये कोई आहट |
समय काटना मुश्किल हो गया
ये ही तो नहीं अकुलाहट ?
Saturday, August 29, 2009
प्रकृति
चट्टानों से टकरा कर भी
खिलखिलाना कोई लहरों से सीखे ।
हजारो राज़ अपने मे सहेज
रखने की कला कोई सागर से सीखे ।
काँटों से घिरे रह कर भी
मुस्काना कोई गुलाब से सीखे ।
क्षमता से अधिक श्रम करने की
लगन कोई चींटी से सीखे ।
कुछ सीखना है तो प्रकृति
के पास शिक्षको की कमी नही ।
नि शुल्क सीखने की सुविधा
किसीको मिलेगी क्या कंही ?
खिलखिलाना कोई लहरों से सीखे ।
हजारो राज़ अपने मे सहेज
रखने की कला कोई सागर से सीखे ।
काँटों से घिरे रह कर भी
मुस्काना कोई गुलाब से सीखे ।
क्षमता से अधिक श्रम करने की
लगन कोई चींटी से सीखे ।
कुछ सीखना है तो प्रकृति
के पास शिक्षको की कमी नही ।
नि शुल्क सीखने की सुविधा
किसीको मिलेगी क्या कंही ?
Thursday, August 27, 2009
मन
सबको खुश
देखती हूँ मै जब
मेरा मन भी
खिल उठता है ।
उदास किसी
को भी जब देखू
ये भी अनमना
सा हो जाता है ।
दूर जो है अपने
अभी मुझसे
पाती हूँ उन्हें भी
अपने ही पास ।
अपने मन को
जंहा चाहे वंहा भेजू
ऐसी जादुई शक्ति
जो है मेरे पास ।
देखती हूँ मै जब
मेरा मन भी
खिल उठता है ।
उदास किसी
को भी जब देखू
ये भी अनमना
सा हो जाता है ।
दूर जो है अपने
अभी मुझसे
पाती हूँ उन्हें भी
अपने ही पास ।
अपने मन को
जंहा चाहे वंहा भेजू
ऐसी जादुई शक्ति
जो है मेरे पास ।
आशंकाए
आशंकाए इनसे
सभी दूर भागते
फिर भी आ सर
मंडराने लगती है |
ऐसे मे जीना
हो जाता है दूभर
और दिल की
धड़कने भी बड़ती है |
धैर्य भी किनारा
कर लेता है
हम तब असहाय
महसूस करते है |
ऐसे मे सांतवना
के कुछ शव्द
हमारा मनोबल बढाने
का काम करते है |
सभी दूर भागते
फिर भी आ सर
मंडराने लगती है |
ऐसे मे जीना
हो जाता है दूभर
और दिल की
धड़कने भी बड़ती है |
धैर्य भी किनारा
कर लेता है
हम तब असहाय
महसूस करते है |
ऐसे मे सांतवना
के कुछ शव्द
हमारा मनोबल बढाने
का काम करते है |
Thursday, August 20, 2009
सबक
अपने साथ
कुछ अप्रिय
घटे तो असीम
दुःख होता है ।
दूसरो के साथ
ऐसा घटे
तो चर्चा का
विषय बनता है ।
पल , कभी धूप
कभी छाव के
ये तो सभी के
आँगन आएँगे ।
कभी तपन
तो कभी ठंडक
जीवन मे
ये सभी के लाएँगे ।
सोचिये ! क्या
बीतेगी आप पर?
जब आपके
आँगन आ
धूप मे हाथ
सेंक कर
राहगीर आगे
बड़ जायेंगे ।
पीड़ा ,पीड़ा
ही होती है ।
अपनी हो या
फ़िर परायी।
शायद अब
ये सबक .........
हम जरूर
सीख जाएँगे ।
कुछ अप्रिय
घटे तो असीम
दुःख होता है ।
दूसरो के साथ
ऐसा घटे
तो चर्चा का
विषय बनता है ।
पल , कभी धूप
कभी छाव के
ये तो सभी के
आँगन आएँगे ।
कभी तपन
तो कभी ठंडक
जीवन मे
ये सभी के लाएँगे ।
सोचिये ! क्या
बीतेगी आप पर?
जब आपके
आँगन आ
धूप मे हाथ
सेंक कर
राहगीर आगे
बड़ जायेंगे ।
पीड़ा ,पीड़ा
ही होती है ।
अपनी हो या
फ़िर परायी।
शायद अब
ये सबक .........
हम जरूर
सीख जाएँगे ।
नीति मार्ग
हकीकत पर
डालना परदा
होता है सदैव
अपने से ही तो छल ।
दुनिया तो
भांप ही लेगी
धक्-धक् भी आपके
साथ रहे हर पल ।
अपने आदर्श
अपने सिद्धांत
इनसे न कभी
आप नाता तोडिये ।
नीति के मार्ग
पर सदा चलकर
उज्वल भविष्य से
स्वयं को जोड़िये ।
डालना परदा
होता है सदैव
अपने से ही तो छल ।
दुनिया तो
भांप ही लेगी
धक्-धक् भी आपके
साथ रहे हर पल ।
अपने आदर्श
अपने सिद्धांत
इनसे न कभी
आप नाता तोडिये ।
नीति के मार्ग
पर सदा चलकर
उज्वल भविष्य से
स्वयं को जोड़िये ।
Tuesday, August 18, 2009
ठहराव
हलचल ने किया
है प्रस्थान
तो हुआ है
ठहराव का
आगमन ।
लगता है
सब कुछ
व्यवस्थित है
इस विश्वास का
है स्वागतम ।
धडकनों ने भी
गति धीमी
कर ली अब
विश्राम कर रहा
चिंतन-मनन ।
हलचल से दूरी
विश्वास से लगाव
इसी प्रकृति से ही
तो आता है सभी के
जीवन मे ठहराव ।
है प्रस्थान
तो हुआ है
ठहराव का
आगमन ।
लगता है
सब कुछ
व्यवस्थित है
इस विश्वास का
है स्वागतम ।
धडकनों ने भी
गति धीमी
कर ली अब
विश्राम कर रहा
चिंतन-मनन ।
हलचल से दूरी
विश्वास से लगाव
इसी प्रकृति से ही
तो आता है सभी के
जीवन मे ठहराव ।
Saturday, August 15, 2009
नास्तिक / आस्तिक ?
भटका, पथिक
चलते -चलते
हताश हो
रुक गया ।
आत्म विश्वास
उसका अब
स्वयं से था
उठ गया |
सामने न थी
उसकी मंजिल
और साथ न
कोई था पता । ।
बड़ी ही
थकी नज़रो
से ऊपर, शायद
आसमा को देखा ।
और बोला
बहुत हुआ
अब बस कर
और ना सता । ।
चलते -चलते
हताश हो
रुक गया ।
आत्म विश्वास
उसका अब
स्वयं से था
उठ गया |
सामने न थी
उसकी मंजिल
और साथ न
कोई था पता । ।
बड़ी ही
थकी नज़रो
से ऊपर, शायद
आसमा को देखा ।
और बोला
बहुत हुआ
अब बस कर
और ना सता । ।
Friday, August 14, 2009
Comments Technical Issue solved
Hello all
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Thursday, August 13, 2009
नींव
कल्पना की नींव
पर बना महल भी
महज़ एक हवा के
झोंके से, उड़ सकता है ।
पर यथार्थ की नींव
पर बनी, एक झोपडी
तूफ़ान से भी टक्कर
लेने का हौसला रखती है ।
पर बना महल भी
महज़ एक हवा के
झोंके से, उड़ सकता है ।
पर यथार्थ की नींव
पर बनी, एक झोपडी
तूफ़ान से भी टक्कर
लेने का हौसला रखती है ।
Wednesday, August 12, 2009
मिसाल
बहुत व्यस्त होते हुए भी जो
सभी का रखते है पूरा ध्यान |
ये ही वजह तो नही कि अपनो के
बसते ऐसे व्यक्ति मे प्राण |
सभी के हितों को लेकर चलने वाला
बन ही जाता है सब के लिए एक मिसाल ।
ऐसे व्यक्ति से अगर आप जुड़े हो
अवश्य ही महसूस करेंगे स्वयं को निहाल ।
सभी के हितों को लेकर चलने वाला
बन ही जाता है सब के लिए एक मिसाल ।
ऐसे व्यक्ति से अगर आप जुड़े हो
अवश्य ही महसूस करेंगे स्वयं को निहाल ।
Sunday, August 9, 2009
दुविधा
एक तरफ़ हो कुँआ
दूसरी तरफ़ खाई ।
लाख शुक्र है ईश्वर का
ये स्थिती मेरे जीवन में
आज तक कभी नही आई । ।
पर मैंने इस दुविधा में
लोगो को झूलते है देखा ।
मिटा नही सकता
कोई भाग्य का लिखा लेखा । ।
ऐसे में मुश्किल हो
आसानी से कोई
भी निर्णय लेना ।
बस ये ही प्रार्थना
कर सकते है कि सबको
भगवन सत्बुद्धी देना । ।
दूसरी तरफ़ खाई ।
लाख शुक्र है ईश्वर का
ये स्थिती मेरे जीवन में
आज तक कभी नही आई । ।
पर मैंने इस दुविधा में
लोगो को झूलते है देखा ।
मिटा नही सकता
कोई भाग्य का लिखा लेखा । ।
ऐसे में मुश्किल हो
आसानी से कोई
भी निर्णय लेना ।
बस ये ही प्रार्थना
कर सकते है कि सबको
भगवन सत्बुद्धी देना । ।
Wednesday, August 5, 2009
वादा
इन्होने कभी किया था
मुझसे कोई वादा ।
याद दिलाया तो जवाब
दिया था सीधा -सादा । ।
तुम्हारा कोई सपना
नही रहेगा अधूरा ।
थोड़ा समय दो सब
करूँगा मै जरूर पूरा ।।
एक बात तो है व्यक्तित्व मे
मैंने हमेशा ही दिल से मानी ।
होकर रहता है वही जीवन मे
एक वार जो है इन्होने ठानी ।।
जो चाहो तुंरत मिले तो
आए वो मज़ा भी नहीं ।।
कुछ तरसे, इंतजार करे
फिर मिले तो क़द्र होती है, सही ।।
मुझसे कोई वादा ।
याद दिलाया तो जवाब
दिया था सीधा -सादा । ।
तुम्हारा कोई सपना
नही रहेगा अधूरा ।
थोड़ा समय दो सब
करूँगा मै जरूर पूरा ।।
एक बात तो है व्यक्तित्व मे
मैंने हमेशा ही दिल से मानी ।
होकर रहता है वही जीवन मे
एक वार जो है इन्होने ठानी ।।
जो चाहो तुंरत मिले तो
आए वो मज़ा भी नहीं ।।
कुछ तरसे, इंतजार करे
फिर मिले तो क़द्र होती है, सही ।।
Saturday, August 1, 2009
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा,ये भी अपने आप मे
एक अनूठा सा अनुभव है ।
कौतुहल ,बेचैनी ,उत्सुकता
इन सभी भावों का संगम है ।।
मेरे जीवन मे भी आकर
इसने डेरा जमा है डाला ।
समय काटे नही कट रहा
लाख यतन कर डाला ।।
रोज़ ही बिटिया से बात होती
फिर भी संतोष नही ।
हर माँ का दिल ऐसा होता है
मेरा भी कोई दोष नही ।।
सब्र का फल मीठा होता है ।
कह गए बड़े -बूडे और ज्ञानी ।
पर ममतावश मजबूर हूँ
कहावत से नही, मै भी अनजानी । ।
मन को बहुत प्यार से समझाया तो है
कुछ सप्ताह की ही तो अब है बात ।
मान गया तो अच्छा ही है
वरना जैसा रखेगा , रहेंगे इसके साथ । ।
एक अनूठा सा अनुभव है ।
कौतुहल ,बेचैनी ,उत्सुकता
इन सभी भावों का संगम है ।।
मेरे जीवन मे भी आकर
इसने डेरा जमा है डाला ।
समय काटे नही कट रहा
लाख यतन कर डाला ।।
रोज़ ही बिटिया से बात होती
फिर भी संतोष नही ।
हर माँ का दिल ऐसा होता है
मेरा भी कोई दोष नही ।।
सब्र का फल मीठा होता है ।
कह गए बड़े -बूडे और ज्ञानी ।
पर ममतावश मजबूर हूँ
कहावत से नही, मै भी अनजानी । ।
मन को बहुत प्यार से समझाया तो है
कुछ सप्ताह की ही तो अब है बात ।
मान गया तो अच्छा ही है
वरना जैसा रखेगा , रहेंगे इसके साथ । ।
Tuesday, July 28, 2009
पूनम
सावन की जो पूनम है
उसकी तो है अनोखी बात ।
रक्षा -बंधन जो आता है
सदैव इसके साथ ।
मुझे वैसे , हर पूनम पसंद है
छिटकती है जो चांदनी
खुल के उस रात ।
काश ! कुछ उजाला
समेट,सहेज रख पाती
वो काम तब आता
होती जब अमावस की रात ।
उसकी तो है अनोखी बात ।
रक्षा -बंधन जो आता है
सदैव इसके साथ ।
मुझे वैसे , हर पूनम पसंद है
छिटकती है जो चांदनी
खुल के उस रात ।
काश ! कुछ उजाला
समेट,सहेज रख पाती
वो काम तब आता
होती जब अमावस की रात ।
Monday, July 27, 2009
मन
मेरा मन ,कल्पना के
घोड़े पर हो सवार
सभी अपनों के पास
अक्सर ही हो आता है ।
उसका यूँ भटकना
सबकी खोज -ख़बर
समय -समय पर लेना
बहुत अच्छा लगता है।
उसका ये लगाव ही तो
मुझे सबसे जोड़े रखता है ।
घोड़े पर हो सवार
सभी अपनों के पास
अक्सर ही हो आता है ।
उसका यूँ भटकना
सबकी खोज -ख़बर
समय -समय पर लेना
बहुत अच्छा लगता है।
उसका ये लगाव ही तो
मुझे सबसे जोड़े रखता है ।
Saturday, July 25, 2009
आप -बीती
एक दिन अचानक ही
सब कुछ था बदल गया ।
जो पास था वो दूर -
और दूर का पास आ गया ।
अरे ! हिलने लगी धरा
कभी लगा, धंसने लगी ।
आकाश भी झुकने लगा
कल्पना सी लगने लगी ।
फिर डॉक्टर को जा दिखाया
vertigo है ,ऐसा उन्होंने बताया।
vertin गोली लेने का सुझाव दिया
साथ ही ऊचा देखने व झुकने से मना किया।
vertigo में उठते -बैठते
चक्कर से आ जाते है ।
जानते है कि धरती नही हिलती
पर कदम डगमगा जाते है ।
संतुलन खोने का डर
ऐसे मे हमेशा बना रहता है ।
हाथ पकड़ कर चलना
आगे बड़ने मे सहायक होता है ।
इसी से ,जब भी बाहर जाने
की होती थी बात ।
अवश्य ही कोई न कोई
होता ही था मेरे साथ ।
कभी ख़राब समय आ जाता है
जीवन में, आता है तो आए ।
दिल चाहता है ,पड़ाव न डाले यंहा
हवा के झोंके सा ,उड़ जाए ।
vertin गोली ने कमाल कर दिया
अब तो सब ठीक ही चल रहा है।
स्वास्थ्य को ले, रहना है सदैव सजग
आख़िर vertigo से सीख लिया है।
सब कुछ था बदल गया ।
जो पास था वो दूर -
और दूर का पास आ गया ।
अरे ! हिलने लगी धरा
कभी लगा, धंसने लगी ।
आकाश भी झुकने लगा
कल्पना सी लगने लगी ।
फिर डॉक्टर को जा दिखाया
vertigo है ,ऐसा उन्होंने बताया।
vertin गोली लेने का सुझाव दिया
साथ ही ऊचा देखने व झुकने से मना किया।
vertigo में उठते -बैठते
चक्कर से आ जाते है ।
जानते है कि धरती नही हिलती
पर कदम डगमगा जाते है ।
संतुलन खोने का डर
ऐसे मे हमेशा बना रहता है ।
हाथ पकड़ कर चलना
आगे बड़ने मे सहायक होता है ।
इसी से ,जब भी बाहर जाने
की होती थी बात ।
अवश्य ही कोई न कोई
होता ही था मेरे साथ ।
कभी ख़राब समय आ जाता है
जीवन में, आता है तो आए ।
दिल चाहता है ,पड़ाव न डाले यंहा
हवा के झोंके सा ,उड़ जाए ।
vertin गोली ने कमाल कर दिया
अब तो सब ठीक ही चल रहा है।
स्वास्थ्य को ले, रहना है सदैव सजग
आख़िर vertigo से सीख लिया है।
Tuesday, July 21, 2009
कभी-कभी
कभी -कभी
हम तो स्थिर होते है
पर मन भटके चारों ओर ।
एक जगह न रुके
जैसे मिल न रही कहीं ठौर ।
हम चाहते कुछ है
हो जाता है कुछ और ।
संयम रखना ठीक रहेगा
व्यर्थ है मचाना शोर ।
कभी -कभी
जब गर्दिश में
होते है तारे।
सभी यत्न बेकार
होते हमारे ।
हताश होने की
नही कोई वजह।
याद रहे हर रात की
होती ही है सुबह ।
कभी -कभी
उलझनों से जब हम
घिर जाते है ।
और सही मार्ग स्वयं
खोज नही पाते है ।
उचित रहेगा कि -
स्वजनों से हम ले सलाह
उनके अनुभव हमें
सही राह बता जाते है ।
हम तो स्थिर होते है
पर मन भटके चारों ओर ।
एक जगह न रुके
जैसे मिल न रही कहीं ठौर ।
हम चाहते कुछ है
हो जाता है कुछ और ।
संयम रखना ठीक रहेगा
व्यर्थ है मचाना शोर ।
कभी -कभी
जब गर्दिश में
होते है तारे।
सभी यत्न बेकार
होते हमारे ।
हताश होने की
नही कोई वजह।
याद रहे हर रात की
होती ही है सुबह ।
कभी -कभी
उलझनों से जब हम
घिर जाते है ।
और सही मार्ग स्वयं
खोज नही पाते है ।
उचित रहेगा कि -
स्वजनों से हम ले सलाह
उनके अनुभव हमें
सही राह बता जाते है ।
Sunday, July 19, 2009
अकेलापन
ये किसी को काटता है
तो किसी को कचोटता है ।
कोई इससे बोर होता है
तो किसी को ये उदासीन करता है ।
किसी का समय कटना दुभर करता है
तो किसी को उसकी, अप्रियता का आभास कराता है ।
कई वार यंहा तक होता है कि -
आप सबके साथ होते है तब भी ,ये आपके साथ होता है।
सबसे आपके विचार नही मिलते है
इसीसे, इसका आभास होता है ।
खुश रहिये कि सब का साथ है आपको मिला
विचार नही मिलते, इसका क्या करिये गिला ।
जब आप गए है स्वयं के
विचारों को अच्छी तरह जान ।
ठीक रहेगा अब बनाना
अपनी अलग ही एक पहचान ।
करिये वो ही जो आपको
आपकी आत्मा को अच्छा लगता है ।
व्यस्त रखिये अपने को
फिर देखिये अकेलापन कैसे भगता है ।
तो किसी को कचोटता है ।
कोई इससे बोर होता है
तो किसी को ये उदासीन करता है ।
किसी का समय कटना दुभर करता है
तो किसी को उसकी, अप्रियता का आभास कराता है ।
कई वार यंहा तक होता है कि -
आप सबके साथ होते है तब भी ,ये आपके साथ होता है।
सबसे आपके विचार नही मिलते है
इसीसे, इसका आभास होता है ।
खुश रहिये कि सब का साथ है आपको मिला
विचार नही मिलते, इसका क्या करिये गिला ।
जब आप गए है स्वयं के
विचारों को अच्छी तरह जान ।
ठीक रहेगा अब बनाना
अपनी अलग ही एक पहचान ।
करिये वो ही जो आपको
आपकी आत्मा को अच्छा लगता है ।
व्यस्त रखिये अपने को
फिर देखिये अकेलापन कैसे भगता है ।
Thursday, July 16, 2009
तीस साल पहले
तब
मेरे पति और बोस में
लगी थी एक बेट ।
sales के आंकडो को
किया था उन्होंने सेट ।
कहने की कोई बात नही
कि कौन जीता कौन हारा ।
मेहनत से इन्होने कभी
किया नही किनारा ।
समय के पहिले लक्ष्य
पूरा कर दिखाया।
और ऐसे अपने बोस को
शर्त में था हराया ।
बाहर treat की थी बात ।
दौनो ही व्यस्त रहते थे
अतः एक साल बाद
आई वो (जीते) डिनर की रात ।
वो मेरा शायद दूसरा ही
फाइव स्टार डिनर था ।
ताज का था टॉप floor
और तगड़ा बिल था ।
पूरी तौर से हम दोनों है veg
वंहा क्या खाया ?मत पूंछे ।
मेनू कार्ड हाथ में ले
हम इससे काफी जूझे ।
अब
कारपोरेट ऑफिस जब
मुंबई से शिफ्ट हो, बेंगलूर आया ।
बोस के आग्रह पर फिर एक
बाहर डिनर का प्रोग्राम बनाया ।
इस वार जब मुझसे
लिया गया सुझाव ।
restaurant तंदूर का मैंने
बेझिझक किया चुनाव ।
सच मानिये हमे आज भी
दाल रोटी खाने में ही आता है मज़ा ।
वो फाइव स्टार की treat थी
मेरी भूख को एक प्यारी सज़ा ।
मेरे पति और बोस में
लगी थी एक बेट ।
sales के आंकडो को
किया था उन्होंने सेट ।
कहने की कोई बात नही
कि कौन जीता कौन हारा ।
मेहनत से इन्होने कभी
किया नही किनारा ।
समय के पहिले लक्ष्य
पूरा कर दिखाया।
और ऐसे अपने बोस को
शर्त में था हराया ।
बाहर treat की थी बात ।
दौनो ही व्यस्त रहते थे
अतः एक साल बाद
आई वो (जीते) डिनर की रात ।
वो मेरा शायद दूसरा ही
फाइव स्टार डिनर था ।
ताज का था टॉप floor
और तगड़ा बिल था ।
पूरी तौर से हम दोनों है veg
वंहा क्या खाया ?मत पूंछे ।
मेनू कार्ड हाथ में ले
हम इससे काफी जूझे ।
अब
कारपोरेट ऑफिस जब
मुंबई से शिफ्ट हो, बेंगलूर आया ।
बोस के आग्रह पर फिर एक
बाहर डिनर का प्रोग्राम बनाया ।
इस वार जब मुझसे
लिया गया सुझाव ।
restaurant तंदूर का मैंने
बेझिझक किया चुनाव ।
सच मानिये हमे आज भी
दाल रोटी खाने में ही आता है मज़ा ।
वो फाइव स्टार की treat थी
मेरी भूख को एक प्यारी सज़ा ।
Wednesday, July 15, 2009
सौगात
अमावस की रात भी
जब उजली लगे
हो जैसे कोई
चांदनी रात ।
और संभली हो
कोई बिगड़ती बात ।
अवश्य ही तब
अपनो का मिला है
आपको पूरा साथ ।
जिंदगी की
इससे बड़ी
नही हो सकती
कोई सौगात ।
जब उजली लगे
हो जैसे कोई
चांदनी रात ।
और संभली हो
कोई बिगड़ती बात ।
अवश्य ही तब
अपनो का मिला है
आपको पूरा साथ ।
जिंदगी की
इससे बड़ी
नही हो सकती
कोई सौगात ।
जिंदगी
हमारे कई अपने
जिंदगी की राह में
सदा के लिए
छोड़ गए हमारा साथ ।
नियति के आगे
सभी कमज़ोर है
बस मलते रह
जाते है हम हाथ ।
ये जिंदगी भी
करती है ।
हमारे साथ
नित नये खेल ।
कभी अपनो से
दूर करती है
कभी परायो से
कराती है मेल ।
जिंदगी की राह में
सदा के लिए
छोड़ गए हमारा साथ ।
नियति के आगे
सभी कमज़ोर है
बस मलते रह
जाते है हम हाथ ।
ये जिंदगी भी
करती है ।
हमारे साथ
नित नये खेल ।
कभी अपनो से
दूर करती है
कभी परायो से
कराती है मेल ।
Sunday, July 12, 2009
याददाश्त
आजकल कुछ गज़ब हो रहा है ।
पुराना बहुत कुछ
याद आ रहा और
नया गायब हो रहा है । (कभी -कभी )
कभी कभी ऐसा भी हो रहा है
जब किसी का जिक्र चले
उसका चेहरा याद आ रहा
और नाम गुल हो रहा है ।
सोचिये! सुनने वाला क्या करे ?
जानकारी आती नही किसी काम
मनुष्य की क्या पहचान है ?
जब साथ न जुड़ा हो उसका नाम ।
पुराना बहुत कुछ
याद आ रहा और
नया गायब हो रहा है । (कभी -कभी )
कभी कभी ऐसा भी हो रहा है
जब किसी का जिक्र चले
उसका चेहरा याद आ रहा
और नाम गुल हो रहा है ।
सोचिये! सुनने वाला क्या करे ?
जानकारी आती नही किसी काम
मनुष्य की क्या पहचान है ?
जब साथ न जुड़ा हो उसका नाम ।
यादें
जब भी मै
अकेली होती हूँ
यादें घिर
आती है ।
पर जब
होती हूँ व्यस्त
ये उड़न छू
हो जाती है ।
बिना किसी
आहट के
जब -जब भी
ये आती है ।
मेरे वर्तमान
जीवन में
अतीत की छाप
छोड़ जाती है।
अकेली होती हूँ
यादें घिर
आती है ।
पर जब
होती हूँ व्यस्त
ये उड़न छू
हो जाती है ।
बिना किसी
आहट के
जब -जब भी
ये आती है ।
मेरे वर्तमान
जीवन में
अतीत की छाप
छोड़ जाती है।
Friday, July 10, 2009
एक पाती
प्रिय आभा
तुमने मेरा ब्लॉग पड़ा, अच्छा लगा, जान कर खुशी हुई।
जिन्दगी कैसे निकल गई पता ही नहीं चला ।
पर बड़ी खट्टी - मीठी यादो का खजाना संजो रखा है इस दिल ने ।
बहुत सीखा हँ जीवन में सभी सीखते है कोई नई बात नहीं । हँ ना?
ब्लॉग एक अच्छा माध्यम है भावों की अभिव्यक्ती का ।
तुम्हे पता है मेरे भाईजान भी शौक रखते थे कविता लिखने का ?
जी हाँ ये आपके पापाजी की ही बात हो रही है ।
और ये भी पचास साल पहिले की बात है। हम लोग तब नागौर में ही थे।
उन दिनों हाथ साबुन से नहीं मिट्टी से धोये जाते थे ।
गधे की पीठ पर लाद कर कुम्हार मिट्टी लाते थे ।
इसी से प्रेरित हो कविता लिखी गई थी मै तब बहुत छोटी थी।
पर दो पंक्तिया अभी भी याद है वो ऐसे थी।
(अरे ओ! गर्धव राज महान पतली -पतली टांगे आपकी फ्रांस देश की सुंदरियों सी)
डेचू -डेचू की तुलना किसी गायक से की गई थी । (जंहा तक मुझे याद है )
आगे याद नहीं पर हास्य व्यंग का मिश्रण अवश्य था ।
अगली वार बात करो तो जिक्र जरूर करना शायद पूरी कविता याद आ जाये ।उनकी छुपी, दबी
प्रतिभा को कुरेदना अच्छा लग रहा है .................
आशीष के साथ
आंटी
तुमने मेरा ब्लॉग पड़ा, अच्छा लगा, जान कर खुशी हुई।
जिन्दगी कैसे निकल गई पता ही नहीं चला ।
पर बड़ी खट्टी - मीठी यादो का खजाना संजो रखा है इस दिल ने ।
बहुत सीखा हँ जीवन में सभी सीखते है कोई नई बात नहीं । हँ ना?
ब्लॉग एक अच्छा माध्यम है भावों की अभिव्यक्ती का ।
तुम्हे पता है मेरे भाईजान भी शौक रखते थे कविता लिखने का ?
जी हाँ ये आपके पापाजी की ही बात हो रही है ।
और ये भी पचास साल पहिले की बात है। हम लोग तब नागौर में ही थे।
उन दिनों हाथ साबुन से नहीं मिट्टी से धोये जाते थे ।
गधे की पीठ पर लाद कर कुम्हार मिट्टी लाते थे ।
इसी से प्रेरित हो कविता लिखी गई थी मै तब बहुत छोटी थी।
पर दो पंक्तिया अभी भी याद है वो ऐसे थी।
(अरे ओ! गर्धव राज महान पतली -पतली टांगे आपकी फ्रांस देश की सुंदरियों सी)
डेचू -डेचू की तुलना किसी गायक से की गई थी । (जंहा तक मुझे याद है )
आगे याद नहीं पर हास्य व्यंग का मिश्रण अवश्य था ।
अगली वार बात करो तो जिक्र जरूर करना शायद पूरी कविता याद आ जाये ।उनकी छुपी, दबी
प्रतिभा को कुरेदना अच्छा लग रहा है .................
आशीष के साथ
आंटी
Thursday, July 9, 2009
आश्वासन
आश्वासन
मिलता रहे
तो कदम
बढाने का
साहस एक
नन्हा बालक
भी
कर लेता है।
अगर डगमगाया
या गिरा
तो कोई भी
दो बांहे
आकर थाम
लेंगी
ये नन्हा
भांप लेता है।
जब नन्हा चलना
सीख रहा होता है
कभी -कभी
संतुलन खोता है।
(ऐसे में जरूरी है कि आप कदापि विचलित न हों और आगे बड़ उसे सहारा दे)
आप सदैव
उसके साथ है
अब वो ये
जान लेता है।
नन्हे करते
मम्मी - पापा
के दिल पर
अपना शासन ।
और पाना चाहे
प्रोत्साहन
निरीक्षण
और आश्वासन ।
मिलता रहे
तो कदम
बढाने का
साहस एक
नन्हा बालक
भी
कर लेता है।
अगर डगमगाया
या गिरा
तो कोई भी
दो बांहे
आकर थाम
लेंगी
ये नन्हा
भांप लेता है।
जब नन्हा चलना
सीख रहा होता है
कभी -कभी
संतुलन खोता है।
(ऐसे में जरूरी है कि आप कदापि विचलित न हों और आगे बड़ उसे सहारा दे)
आप सदैव
उसके साथ है
अब वो ये
जान लेता है।
नन्हे करते
मम्मी - पापा
के दिल पर
अपना शासन ।
और पाना चाहे
प्रोत्साहन
निरीक्षण
और आश्वासन ।
Monday, July 6, 2009
वेदना
ज़रूरी नही
कि इसके एहसास
के लिए
आप स्वयं किसी
शारीरिक ,मानसिक
पीड़ा के
मार्मिक दौर
से गुजरे ।
पर किसी
संवेदन शील
प्राणी के लिए
जग- बीती,पर-बीती
आप बीती की
पीड़ा दे जाए
तो इस एहसास
से वो कैसे मुकरे ।
कि इसके एहसास
के लिए
आप स्वयं किसी
शारीरिक ,मानसिक
पीड़ा के
मार्मिक दौर
से गुजरे ।
पर किसी
संवेदन शील
प्राणी के लिए
जग- बीती,पर-बीती
आप बीती की
पीड़ा दे जाए
तो इस एहसास
से वो कैसे मुकरे ।
Saturday, July 4, 2009
असहाय
कभी -कभी हम अपने आपको
बहुत असहाय महसूस करते है।
जब कोई हमारा ही अपना
हमें समझ कर भी नही समझता है ।
सब कुछ जान कर भी
अनजान बनता है ।
लाख सब के समझाने पर भी
अपनी ही बात पर अड़ जाता है।
दूसरों के धैर्य
की हदों को यों, वो
अनजाने ही
पार कर जाता है ।
तब हम अपने आपको
बहुत ही असहाय महसूस करते है ।
अपनी ही सोंच का कैदी
जब कोई बन जाए।
समझ ही नही आए कि
उनके साथ कैसे पेश आए।
बहुत असहाय महसूस करते है।
जब कोई हमारा ही अपना
हमें समझ कर भी नही समझता है ।
सब कुछ जान कर भी
अनजान बनता है ।
लाख सब के समझाने पर भी
अपनी ही बात पर अड़ जाता है।
दूसरों के धैर्य
की हदों को यों, वो
अनजाने ही
पार कर जाता है ।
तब हम अपने आपको
बहुत ही असहाय महसूस करते है ।
अपनी ही सोंच का कैदी
जब कोई बन जाए।
समझ ही नही आए कि
उनके साथ कैसे पेश आए।
Friday, July 3, 2009
खुशी
खुशियाँ बांटने से
घटती नही है ।
गुणित हो (multiplied)
बहुत बड़ जाती है ।
पर मानव है कि आशंकाओ की चादर ओड़ लेता है ।
स्वयंको कभी बुरी नज़र से बचाना
कभी ईर्षा - द्वेष,टोने -टोटकों से बचाना
सारे अपने प्रयास इसी और मोड़ लेता है ।
सबकी अपनी -अपनी सोंच है
मै इस बारे में क्या कंहू ।
खुशी बांटने में जो अनुपम सुख है
मै तो इससे वंचित कभी ना रंहू ।
घटती नही है ।
गुणित हो (multiplied)
बहुत बड़ जाती है ।
पर मानव है कि आशंकाओ की चादर ओड़ लेता है ।
स्वयंको कभी बुरी नज़र से बचाना
कभी ईर्षा - द्वेष,टोने -टोटकों से बचाना
सारे अपने प्रयास इसी और मोड़ लेता है ।
सबकी अपनी -अपनी सोंच है
मै इस बारे में क्या कंहू ।
खुशी बांटने में जो अनुपम सुख है
मै तो इससे वंचित कभी ना रंहू ।
Saturday, June 27, 2009
मंझली
मेरी मंझली बिटिया
अपनी शादी के पूरे
एक साल, एक महिने
बाद घर आरही है ।
चार दिन नही
आठ दिन की
चांदनी अपने साथ
ला रही है ।
खाने में क्या पसंद
क्या ना पसंद
सारी यांदे
जुट आई है ।
अब दिल ये चाहे
समय चींटी की गति
से चले ,तो इसमे
क्या बुराई है ?
अपनी शादी के पूरे
एक साल, एक महिने
बाद घर आरही है ।
चार दिन नही
आठ दिन की
चांदनी अपने साथ
ला रही है ।
खाने में क्या पसंद
क्या ना पसंद
सारी यांदे
जुट आई है ।
अब दिल ये चाहे
समय चींटी की गति
से चले ,तो इसमे
क्या बुराई है ?
Friday, June 19, 2009
ननंद
मेरी बड़ी ननंद
उनका सदैव
मुस्काता चेहरा
मुझे है बहुत पसंद ।
पूजा पाठ को ले
बहुत कड़ी है ।
पर स्वास्थ को ले
लापरवाह बड़ी है।
मेरी ननंद
बड़े परिवार की बेटी
स्वयं भी
बड़े परिवार वाली है ।
हर सम्बन्ध को
सहज आत्मियता से
निभाने की कला
उनमे निराली है।
एक खासियत ये है कि
वो हमेशा शांत दीखे ।
बिगड़ी कैसे बनाए
कोई इनसे सीखे।
(एक छोटा सा उदाहरण )
मेरी बड़ी बिटियाँ की
शादी की है ये बात ।
दाल पीसनी थी लेकिन
मिक्सी नही दे रही थी साथ ।
उन्होंने झट अदरख
कूटने वाला खलबत्ता उठाया ।
थोड़ी दाल कुचली
शगुन की बडियां डाली
काम तुंरत आगे बढाया ।
काम करने का
अपना मज़ा है
उनके संग ।
इनकी सूझ -बूझ
को देख कर
मै हूँ अति दंग ।
ननंद के लिए
कुछ लिखना
सूरज को दिया दिखाना है।
चाह है उनसे
बहुत कुछ सीखू ।
जीवन को
सार्थक जो बनाना है।
उनका सदैव
मुस्काता चेहरा
मुझे है बहुत पसंद ।
पूजा पाठ को ले
बहुत कड़ी है ।
पर स्वास्थ को ले
लापरवाह बड़ी है।
मेरी ननंद
बड़े परिवार की बेटी
स्वयं भी
बड़े परिवार वाली है ।
हर सम्बन्ध को
सहज आत्मियता से
निभाने की कला
उनमे निराली है।
एक खासियत ये है कि
वो हमेशा शांत दीखे ।
बिगड़ी कैसे बनाए
कोई इनसे सीखे।
(एक छोटा सा उदाहरण )
मेरी बड़ी बिटियाँ की
शादी की है ये बात ।
दाल पीसनी थी लेकिन
मिक्सी नही दे रही थी साथ ।
उन्होंने झट अदरख
कूटने वाला खलबत्ता उठाया ।
थोड़ी दाल कुचली
शगुन की बडियां डाली
काम तुंरत आगे बढाया ।
काम करने का
अपना मज़ा है
उनके संग ।
इनकी सूझ -बूझ
को देख कर
मै हूँ अति दंग ।
ननंद के लिए
कुछ लिखना
सूरज को दिया दिखाना है।
चाह है उनसे
बहुत कुछ सीखू ।
जीवन को
सार्थक जो बनाना है।
Wednesday, June 17, 2009
ध्येय
इस जीवन में
ध्येय सभी
का होता
है एक ।
पर लक्ष्य प्राप्ति के
मार्ग होते
है सदैव
ही अनेक ।
सुख - शान्ति
समृद्धि की
सभी करते
मंगल कामना ।
यत्न करे
सही राह पकड़े
सफल रहे
मेरी ये भावना।
ध्येय सभी
का होता
है एक ।
पर लक्ष्य प्राप्ति के
मार्ग होते
है सदैव
ही अनेक ।
सुख - शान्ति
समृद्धि की
सभी करते
मंगल कामना ।
यत्न करे
सही राह पकड़े
सफल रहे
मेरी ये भावना।
Thursday, June 11, 2009
प्रयास
मेरी छोटी बिटिया का है आया मेल
मम्मा कठिन शव्दों से कर रही हो आप खेल ।
लगता है जैसे ले रही हो हिन्दी का टेस्ट
इंगलिश में पोस्ट करोगी तो ही होगा बेस्ट ।
पढ़ने-लिखने का उसको
है बेहद ही चाव ।
कोशिश जरूर करेगी वो जब
फरमाइश को नही मिलेगा कोई भाव ।
हिन्दी ना छूटे मेरे बच्चो से
एक माँ का है ये प्रयास ।
सफल रहूंगी मकसद में
इसकी है मुझे पूरी आस ।
मम्मा कठिन शव्दों से कर रही हो आप खेल ।
लगता है जैसे ले रही हो हिन्दी का टेस्ट
इंगलिश में पोस्ट करोगी तो ही होगा बेस्ट ।
पढ़ने-लिखने का उसको
है बेहद ही चाव ।
कोशिश जरूर करेगी वो जब
फरमाइश को नही मिलेगा कोई भाव ।
हिन्दी ना छूटे मेरे बच्चो से
एक माँ का है ये प्रयास ।
सफल रहूंगी मकसद में
इसकी है मुझे पूरी आस ।
Wednesday, June 10, 2009
बेटी
एक घड़ी आती है जब
छूटता है बाबुल का आँगन ।
नया क्षितिज पाती है बेटियाँ
मिले जब इन्हे मनभावन ।
उनके अब अपने सपने है
और है एक नया उल्हास ।
दूर तो ये है जरुर हमसे
पर पाती हूँ सदा मन के पास ।
( बेटी को पराये धन की संज्ञा तो नही दूंगी मै )
पर होती है ये धरोहर ।
अपने धरोंदे को खूब
संवारने में जुट जाती है
बनाना जो है इसे मनोहर।
( बरसों पहले मेरा आँगन छूटा, अब छूटा इनका )
ये तो है जीवन धारा ।
खुश रहे सदैव बेटियाँ
अपने - अपने अंगना में
ये ही है आशीष हमारा ।
छूटता है बाबुल का आँगन ।
नया क्षितिज पाती है बेटियाँ
मिले जब इन्हे मनभावन ।
उनके अब अपने सपने है
और है एक नया उल्हास ।
दूर तो ये है जरुर हमसे
पर पाती हूँ सदा मन के पास ।
( बेटी को पराये धन की संज्ञा तो नही दूंगी मै )
पर होती है ये धरोहर ।
अपने धरोंदे को खूब
संवारने में जुट जाती है
बनाना जो है इसे मनोहर।
( बरसों पहले मेरा आँगन छूटा, अब छूटा इनका )
ये तो है जीवन धारा ।
खुश रहे सदैव बेटियाँ
अपने - अपने अंगना में
ये ही है आशीष हमारा ।
Monday, June 8, 2009
दृष्टिकोण
सकारात्मक दृष्टिकोण
उलझनों के जालों को चीर जाता है ।
फिर आता है आत्मविश्वास जो
प्रतिकूल परिस्थितियों से भिड जाता है।
उलझनों के जालों को चीर जाता है ।
फिर आता है आत्मविश्वास जो
प्रतिकूल परिस्थितियों से भिड जाता है।
Sunday, June 7, 2009
अतीत
अतीत की बिखरी यादों को
चुन चुन कर मैंने बीना है ।
मधुर स्मृतियों का है ये भंडार
इसी के सहारे अब जीना है।
चुन चुन कर मैंने बीना है ।
मधुर स्मृतियों का है ये भंडार
इसी के सहारे अब जीना है।
Saturday, June 6, 2009
पनघट
मेरा जन्म राजस्थान के एक गाँव में हुआ था ।
गाँव का नाम है नागौर।
उस समय वहाँ ना तो बिजली थी और ना ही पानी ।
एक तालाब था उसका नाम था गिनानी ।वहीं से पानी लाया जाता था । पीने का पानी कूए से लाते थे।
हमारे घर से करीब बीस मीनिट का रास्ता था ।
गाँव की महिलाए बड़े चाव से सिर पर कोई दो तो कोई तीन घड़े रख
कर पानी भरने चल देती थी। ( हर सुबह )
मै उस समय बहुत छोटी थी पर जानने का कौतुहल था कि ये लोग क्या
करते है ? कैसे पानी मिलता है।
हमारे घर राधाबाई पानी लाती थी हम उन्हें मौसी कहते थे।
वो विधवा थी किसी पर आश्रित रहना उन्हें नही भाता था।
एक दिन उन्हें मना कर उनकी उंगली पकड़ कर मै भी गिनानी गई ।
मुझे तो एक छोटा सा लोटा दिया गया था।
मैंने देखा कि सब पहले तो अपने अपने घड़े को इमली या तो फिर
नीम्बू के छिलके से मिट्टी लेकर खूब चमकाती
और फिर उसे धो कर कपडे से छान कर पानी भरती।
सब एक दूसरे का इंतजार करते और साथ साथ ही लौटते ।
और हाँ जो नए सुंदर कपडे पहिन कर (घाघरा ओड़नी )
आती थी , सब उसके साथ हंसी ठिठौली करते थे ।
सब को मालुम जो पड़ जाता था कि उसका सांवरिया परदेश से लौट आया है।
उन पीतल के चमचमाते घडों और हंसी ठिठौली ने मेरे जीवन में अमिट छाप छोडी है।
मैंने अनुभव किया है कि उत्साह ,उमंग के साथ किया हर काम एक आनंद
और संतुष्टी का भाव छोड़ जाता है.................
गाँव का नाम है नागौर।
उस समय वहाँ ना तो बिजली थी और ना ही पानी ।
एक तालाब था उसका नाम था गिनानी ।वहीं से पानी लाया जाता था । पीने का पानी कूए से लाते थे।
हमारे घर से करीब बीस मीनिट का रास्ता था ।
गाँव की महिलाए बड़े चाव से सिर पर कोई दो तो कोई तीन घड़े रख
कर पानी भरने चल देती थी। ( हर सुबह )
मै उस समय बहुत छोटी थी पर जानने का कौतुहल था कि ये लोग क्या
करते है ? कैसे पानी मिलता है।
हमारे घर राधाबाई पानी लाती थी हम उन्हें मौसी कहते थे।
वो विधवा थी किसी पर आश्रित रहना उन्हें नही भाता था।
एक दिन उन्हें मना कर उनकी उंगली पकड़ कर मै भी गिनानी गई ।
मुझे तो एक छोटा सा लोटा दिया गया था।
मैंने देखा कि सब पहले तो अपने अपने घड़े को इमली या तो फिर
नीम्बू के छिलके से मिट्टी लेकर खूब चमकाती
और फिर उसे धो कर कपडे से छान कर पानी भरती।
सब एक दूसरे का इंतजार करते और साथ साथ ही लौटते ।
और हाँ जो नए सुंदर कपडे पहिन कर (घाघरा ओड़नी )
आती थी , सब उसके साथ हंसी ठिठौली करते थे ।
सब को मालुम जो पड़ जाता था कि उसका सांवरिया परदेश से लौट आया है।
उन पीतल के चमचमाते घडों और हंसी ठिठौली ने मेरे जीवन में अमिट छाप छोडी है।
मैंने अनुभव किया है कि उत्साह ,उमंग के साथ किया हर काम एक आनंद
और संतुष्टी का भाव छोड़ जाता है.................
Thursday, June 4, 2009
Wednesday, June 3, 2009
अनुभूति
नदी
पहाड़ी ,पथरीले रास्ते में
कितनी अल्हड
चंचल लगती है ।
बिना विराम लिए
निरंतर कल-कल
नाद करते
आगे बड़ती है ।
मैंने पर उसका
शांत ,गंभीर
रूप भी देखा है ।
जंहा इसने
अपने अस्तित्व को
किया समतल को अर्पित
और आखिरकर
शान्ति कर ही ली अर्जित ।
अब देखने में आता है ।
कि ......
दूर से फेंका
छोटा सा कंकर भी
अनगिनत तरंगे
पैदा कर जाता है ।
पहाड़ी ,पथरीले रास्ते में
कितनी अल्हड
चंचल लगती है ।
बिना विराम लिए
निरंतर कल-कल
नाद करते
आगे बड़ती है ।
मैंने पर उसका
शांत ,गंभीर
रूप भी देखा है ।
जंहा इसने
अपने अस्तित्व को
किया समतल को अर्पित
और आखिरकर
शान्ति कर ही ली अर्जित ।
अब देखने में आता है ।
कि ......
दूर से फेंका
छोटा सा कंकर भी
अनगिनत तरंगे
पैदा कर जाता है ।
Tuesday, June 2, 2009
Sunday, May 31, 2009
आंकना
मेरी है एक छोटी बहना
समझदारी में उसका क्या कहना ।
उसके सामने मेरे शव्द लगते हल्के
विचारों की परिपक्वता
उसकी रचनाओं में झलके ।
जीवन की इस कठिन डगर पर
वो संभल कर चली है।
सभी के लिए अच्छा सोंचे
दिल की बहुत ही भली है ।
समझदारी में उसका क्या कहना ।
उसके सामने मेरे शव्द लगते हल्के
विचारों की परिपक्वता
उसकी रचनाओं में झलके ।
जीवन की इस कठिन डगर पर
वो संभल कर चली है।
सभी के लिए अच्छा सोंचे
दिल की बहुत ही भली है ।
Friday, May 29, 2009
bruno
मेरी सहेली के pet का नाम है ब्रुनो
ब्रुनो का व्यवहार इतना मोहक है कि मुझे क्या हर किसी को उससे लगाव हो जाता है ।
हम neighbours साथ,साथ सुबह शाम पैदल घूमने जाते है जैसे ही उसे पता चलता था
कि मै गेट पर हूँ ब्रुनो मुह में मेरी फ्रेंड का shoe लेकर भाग जाता था और छुपा देता था ।
बड़ी request के बाद shoe वापस मिलता था। मुझे वो अच्छा लगता था पर फिर भी डर
तो लगता ही था,इसी कारण मै जब भी उन्हें visit करती थी मेरी फ्रेंड उसे ले जा कर एक
रूम में समझा कर छोड़ आती थी।
दो तीन बार के बाद ऐसा हुआ कि जैसे ही वो मुझे देखता था अपने आप ही रूम में
चला जाता था। ब्रुनो के इस व्यव्हार ने मेरा सारा डर भगा दिया है अब तो मुझे सड़क के
dogs भी अच्छे लगने लगे है।
ब्रुनो से मिलने के बाद मैंने सीखा है कि कभी बिना किसी
वजह के ,डर को पनपने नही देना चाहिए............
ब्रुनो का व्यवहार इतना मोहक है कि मुझे क्या हर किसी को उससे लगाव हो जाता है ।
हम neighbours साथ,साथ सुबह शाम पैदल घूमने जाते है जैसे ही उसे पता चलता था
कि मै गेट पर हूँ ब्रुनो मुह में मेरी फ्रेंड का shoe लेकर भाग जाता था और छुपा देता था ।
बड़ी request के बाद shoe वापस मिलता था। मुझे वो अच्छा लगता था पर फिर भी डर
तो लगता ही था,इसी कारण मै जब भी उन्हें visit करती थी मेरी फ्रेंड उसे ले जा कर एक
रूम में समझा कर छोड़ आती थी।
दो तीन बार के बाद ऐसा हुआ कि जैसे ही वो मुझे देखता था अपने आप ही रूम में
चला जाता था। ब्रुनो के इस व्यव्हार ने मेरा सारा डर भगा दिया है अब तो मुझे सड़क के
dogs भी अच्छे लगने लगे है।
ब्रुनो से मिलने के बाद मैंने सीखा है कि कभी बिना किसी
वजह के ,डर को पनपने नही देना चाहिए............
Tuesday, May 26, 2009
बड़ता कदम
माँ अपने नन्हे बच्चे को उंगली पकड़ कर चलाना सिखाती है पर इस इन्टरनेट की दुनिया में मेरा ये कदम अपनी बड़ी बिटिया की उंगली पकड़ कर हुआ है|
बच्चो से सीखने में भी एक सुखद एहसास हँ.......
बच्चो से सीखने में भी एक सुखद एहसास हँ.......
Monday, May 25, 2009
Pahala nanha kadam
Here i am in this new world , aim is to remain young . ( Recently i read some where learning
keeps one young )
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