Sunday, November 28, 2010

नखरा..

चार्जेर रूठा या ,
या बेटरी की कमर है टूटी
इसी वजह से
टीका टिप्पणी की लत है छूटी।

मनचाहे ब्लोगों से ,
दूर रहना है अखरा,
पर क्या करें है मजबूरी,
लैपटॉप दिखा रहा है नखरा।




Friday, November 19, 2010

विजयी

ऐसा नहीं कि
हमने दुःख कभी
भी नही झेले
मुसीबत जब
भी आन पड़ी
हमने भी तो
बहुत पापड़
जीवन मे है बेले ।
नहीं आया तो
बस हां
अपने दुखो की
नुमाईश करना
बिलकुल नही आया ।
दुःख दूसरो कों बता
हमारे अपनों का
मन
भारी करने से
कम
कैसे होता है ?
ये आज तक मुझे
समझ नहीं आया ।
सच तो ये है कि
विपदा की घड़ी
बहुत कुछ हमे
सिखा जाती है
अपने परायो मे
फर्क बता जाती है ।
आत्मबल ही
हमे निराशा से
उबारता है
विषम परिस्थिती
से जूझना भी
ये ही तो सदैव
हमे सिखाता है ।
दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।

Sunday, November 14, 2010

बोली

थोड़े दिन पहिले बड़ी बिटिया से बात हो रही थी उसे अफ़सोस इस बात का था कि मै जो दो प्रांतीय भाषाए जानती हूँ राजस्थानी और बुन्देलखंडी वो मेरे साथ ही चली जाएंगी । ( मेरे घर से ) ....... अरे ऐसा उसने कहा नहीं बस तात्पर्य ये ही था ।मेरे अलावा किसी कों मेरे घर मे मारवाड़ी जो बोलना नहीं आता । बुन्देलखंडी तो ये भी बोल लेते है पर बच्चे सिर्फ अंग्रेज़ी ही बोलते है इसमे इनका भी कोई दोष नही दक्षिण मे ये ही हाल है सभी बच्चो का ।
इसी से मुझे लगा कि कुछ प्रयोग किये जाए ........ ।
" सुधि " उसीका उदाहरण मात्र है ।
आप माने या ना माने खडी बोली से ज्यादा मिठास प्रांतीय भाषाओ मे है ......
मेरी दो बेटिया विदेश मे है हिंदी छूटने का गम अब नहीं कई हिंदी ब्लोग्स से बेटिया मेरे माध्यम से जुडी है । मारवाड़ी की एक झलक यहाँ दे रही हूँ ।
मेरी एक बहिन की शादी लाडनू एक छोटे गाँव मे हुई थी उन दिनों हम नागौर मे रहते थे । जीजाजी मारवाड़ी ही बोलते थे ।
एक दिन की बात है .......
आगे मारवाड़ी मे ..........

नहीं नहीं करता भी पचास साल पहिले की बात है बी साल ही जीजी कों ब्याह हुयो थो पहली वार
जीजी न लेवान जीजाजी आयोडा हा ।
जीमता समय म ही पुरसगारी कर रही थी जब मै पापड़ आखिरमै लेर गयी तो म्हारस जीजाजी बोल्या सालीजी थोड़ी इन
चुनडी पहनार लाओसा .
मै तो समझी कोनी काई बोल रिया है ।
जीजी जल्दी से पापड़ पर घी डाल ऊपर से लाल मिर्चा बुकनी बुरक दी अन बोली अब लेजाओ ।
पापड़ जब सेक्यो जाव है सिकता ही उबड़ खाबड़ हो जाव है । बी पर अगर पिघ्ल्यो घी डाला तो चारो तरफ फ़ैल जाव ह ऊपर से मिर्ची भी घी के साथ फ़ैल जाव . लाडनू सुजानगढ़ मे पापड यान ही खाव है चाव स अब तो मसाला पापड़ सगला लोग पसंद करवा लाग्या ।घी और बीपर मिर्ची बुर्कोड्यो पापड़ बिलकुल यान ही लाग है कि कोई लाल चुनडी पहना दी हो
आज भी किस्सों याद आव तो हँसी आ जाव है........पापड़ अणि चूनड़ी हा हा हा हा ..........

Friday, November 12, 2010

सुधि

गत मॉस कैसे बीत गयो

हमनो कछु सुधि नाही

खयालों के जाल जो बुने

फंस रह गए बिन माही ।