Thursday, January 28, 2010

बहार

हमेशा वर्तमान
ही रहे अगर
जीवन में हमारा
केंद्र बिन्दु

शायद इस से
भविष्य कभी नहीं
बनेगा चिंता का
विषय , मेरे बंधू

जब है आप व्यस्त
तो समय कंहा
कि बैठ करे नाहक
चिन्ता , विचार

आज सुधारिये
बोइये , सींचीये
तब ही तो आएगी
जीवन मे कल बहार

Sunday, January 24, 2010

सैलाव ( अतीत से ) २

स्वतंत्र भारत मे
ही मै जन्मी
बात है तब की
जब थी मै नन्ही ।
जबसे आया था मुझे होश
चारों ओर पाया था
एक नया ही जोश ।
कांग्रेस के हाथ थी तब
सत्ता की बागडोर ।
पंच वर्षीय योजनाओं का
शुरू हुआ था नया दौर ।
मुझे अच्छी तरह याद है
जब भी हमारे छोटे
गाँव नागौर मे
कोई भी नेता आते थे।
मेरे बाबूजी व सभी कांग्रेसी
चरखे पर सूत
कातने जुट जाते थे।
फिर कते सूत की लच्छीया
बनाई जाती थी ।
और हार की तरह सम्मान मे
श्रद्धेय नेताओं के
गले मे पहनाई जाती थी ।
पाठशालाओं मे भी
सूत कातना सिखाया जाता था ।
आजादी अंहिसा के मार्ग
पर चल कर ही मिली
ये बड़े गर्व से बताया जाता था ।
ईमानदारी , त्याग की भावना
वो देश के लिए कुछ
कर गुजरने का जोश
जो नेताओं की
रग रग मे बहता था ।
वो जज्बा आज इतिहास
बन कर है रह गया ।
भ्रष्टाचार , खुदगर्जी
और भौतिकता का ऐसा
सैलाव आया कि सब
तिनके की तरह इसके
साथ है बह गया ।

Thursday, January 21, 2010

भूकंप

प्रक्रति के कोप का ओफ़
हैटी मे ऐसा देखा नज़ारा ।
पलक झपकते ही लाखों
निवासी हो गए बेसहारा

भविष्य के गर्भ मे है क्या
कौन है जो जान पाए ?
इतनी जान हानि देखी कि
ठंड मे भी पसीने से नहाए ।

ऐसे हादसों से कैसे बचे ?
सुझाए वैज्ञानिक ! कोई उपाय
साधारण मानव तो पा रहा
ऐसी स्थिती मे अपने को असहाय


Friday, January 15, 2010

अतीत से ( १ )

लगभग पचपन साल
पहले की है ये बात
कड़ाके की सर्दी
की थी वो रात ।
हम बच्चे आग
रहे थे ताप
सुनी हमने तब
पगों की चाप ।
हम सभी मचा
रहे थे धमाल
मुहं से भाप निकलने का
देख रहे थे हो
हतप्रभ , कमाल ।
एक छोटी लडकी
मेरी ही हम उम्र
धर्मशाला के हमारे
कमरे के द्वार पर आई ।
कुछ ठिठकी
कुछ सकपकाई ।
मैंने उसे अंदर बुलाया ।
दोस्ती का हाथ
था
बेझिझक
उसकी और बढाया ।
वो थी वंहा के
चौकीदार की बेटी ।
आग तापने
सिमटी , सकुचाई
उकडू
हो आग के कूंडे
के पास आ बैठी ।
हमने देखा लालटेन की
रोशनी मे उसका मुखड़ा ।
हाथ मे उसके था
बाजरे की सूखी
मोटी रोटी का
एक छोटा टुकड़ा ।
वो उसे खा नहीं रही थी
बस चूसे ही जा रही थी ।
मै भी टकटकी लगाए
उसे देखे जा रही थी ।
वो ऐसा क्यों कर रही ?
पूछने पर उसने
हमें था बताया ।
माँ है बीमार
तेज़ है बुखार ।
आज चूल्हा नहीं जला
बस , बासी रोटी से ही
है काम आज चला ।
माँ ने कहा है
आज इतना ही बस -
और नहीं मिलेगा ।
फिर सयानेपन से
उसने था समझाया ।
खाने से टुकड़ा
ज्यादा नहीं चलेगा ।
धीरे - धीरे चूसने से
सूखा टुकड़ा
जल्दी नहीं गलेगा
और खूब देर
तक चलेगा ।


कुछ बाते हमारे मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ जाती है .......
और ये रचना इस बात का ज्वलंत उदाहरण है .......................

Thursday, January 14, 2010

शुभकामनाएँ

मकर संक्रांति की सभी , शुभकामनाएँ मेरी स्वीकारे !
और
मिलकर समाज की सभी कुरीतियों को हम धिक्कारें !

Wednesday, January 13, 2010

अनुभव

सदा स्पष्ट बोलना
अपने जीवन मे
पड़ता है कभी
बड़ा ही भारी

ऐसे माहौल मे
घुलना - मिलना दुभर
जंहा आपकी सोंच
हो दूसरों से न्यारी ।

Monday, January 11, 2010

भवसागर

अनुभवों की नैया
पर सवार हो
जब मनुष्य
अपने स्वयं के
हाथों मे विश्वास के
चप्पू संभाले
भवसागर मे उतरे ।
बाल भी बांका
ना हो उसका
डूबने ,भटकने का
भी अब डर नहीं
हर कठिनाई से वो
संचित अनुभवों
और अमिट विश्वास
का , लेकर सहारा
इस भवसागर से
सहजता से उबरे ।

Wednesday, January 6, 2010

सपना

सपना देखते देखते
ही नींद टूटी ।
लगा आज देर
से मै उठी ।
जल्दी जल्दी काम
मे , मै जुट गई ।
सपना क्या था
ये भी भूल गई ।
पर अन्तः करण मे कंही
ये एहसास था ।
बड़े ही हल्केपन का
आभास साथ था ।
लग रहा था जैसे
सारा जंहा ही
है बस अपना ।
दुआ कर रही कि
सभी को आए
ऐसा ही सपना ।

Tuesday, January 5, 2010

उद्देश्य

खुशहाली रहे
सदा जीवन मे
उद्देश सभी का
बस ये एक ।

पर लक्ष्य प्राप्ति के
मार्ग होते ही है
सदैव भिन्न - भिन्न
अतः अनेक ।


सुख - शान्ति
समृद्धि की
सभी करते है
मंगल कामना ।

यत्न करे ।
सही राह पकड़े ।
सफल रहे ।
मेरी ये भावना ।

Friday, January 1, 2010

धोखा

धोखा खा कर , कष्ट तो अवश्य होता है
पर क्या होगा हासिल , अगर करे गिला ।
भरोसा सब पर तो नहीं कर सकते यूँ ही
कम से कम ये तो सीखने को हमें मिला ।