Wednesday, July 28, 2010

तलाश

बड़ी भोर घर के बड़े बूड़ों की आँख खुल जाया

करती है । सोचती हूं जीवन मे एक और लम्बे

दिन की तलाश तो इसका कारण नहीं तांकि

गुजरे सुनहरे लम्हों को समेट बटोर इसकी

छाँव मे वे फिर खुल कर उस दिन को जी सके ।

Saturday, July 24, 2010

जीवन चक्र

आज मै अपनी मंझली बिटिया के पास जा रही हूँ ।

उसके अंगना एक नन्ही परी जो आने वाली है ।

चोंकिये नहीं UK , USA में बता दिया जाता है तांकि आप उसी हिसाब से तैयारी करले , नाम सोंच ले ।

भारत वापसी सितम्बर मे ही होगी ।

लैपटॉप तो साथ जा रही है फिर भी शायद अनियमितता रहे सभी पोस्ट ना पढ़ पाऊ और कमेन्ट भी समय पर ना दे पाऊ

मेरा ही नुक्सान है और वो होने नहीं देने का प्रयास रहेगा ।

पचास पचपन साल पहिले जो मेरा बचपन बाबुल की चौखट छूट गया था ।

वो ही तीस - पैतीस साल पहिले मेरे अंगना मेरी बेटियों के साथ लौट आया था ।

अब ये ही मेरी मंझली बिटिया के आँगन लौट आ रहा है । ये ही जीवन चक्र है

बहारे आती थी आती है आती रहेंगी इसी सकारात्मक रवैया के साथ एक लम्बी छुट्टी

Tuesday, July 20, 2010

स्पष्टवादिता

स्पष्टवादिता सत्य तथ्य ईमान पारदर्शिता सभी हाथ मे हाथ लिये साथ साथ घूमा करते है पर देखिये समय की विडम्बना
स्पष्टवादिता के शव को एक भी कन्धा नहीं मिलता है ।

Tuesday, July 13, 2010

सवाल

सयानी बाला के विवाह की जब बात चलती है तो उसे ये ही लगता है कि जीवन मे उसके अरमानो को लूटने ही
आगंतुक आ रहा है ...............जीवन मे ...........
उसका जीवन बदल जाएगा ...........
अस्तव्यस्त हो जाएगा ..........
आशंकाए भी जन्म लेती है ............
पर ऐसा कुछ होता नहीं ...........
आत्म विश्वास और एक दुसरे पर पूरा विश्वास बहुत काम आता है ..........


लूटने जो आया था
लुट कर रह गया
रंग एक का दूसरे पर
फिर चोखा चड गया ।

होनी को कोई
ना टाल है सका
वक्त कंहा रोके
से किसी के रुका ?

आजन्म गिरफ्त की
मिल गयी थी सजा
उन्हें बड़ो की भी
मिली थी पूरी रज़ा ।

अब सैतीस साल
बाद उठा है बवाल
कौन किसकी गिरफ्त मे ?
ये है बड़ा सवाल ।

Saturday, July 10, 2010

ऑक्टोपस

ऑक्टोपस की

भविष्यवाणी पर

सारा विश्व

है पूरा दंग ।


होलैंड दुआ

कर रहा

अब ये क्रम

हो जाए भंग ।

Thursday, July 1, 2010

भाभी ...( पुण्यतिथी )

संयुक्त परिवार मे अपने देवर ननदों से भाभी कहलाने वाली मेरी मां आजन्म भाभी ही रही । झांसी नागौर और हैदराबाद जंहा भी वो रही जगत भाभी ही रही ।
आज उनकी पुण्यतिथी है . १९९९ मे उन्होंने हम से चिर विदा ली पर उनके आदर्श हमारा मार्ग दर्शन करने मे आज भी सक्षम है ।
मेरी भाभी का जन्म जैन परिवार मे राजस्थान के शहर अजमेर मे हुआ । अपने धर्म के प्रति अगाध आस्था थी उनकी । जैन धर्म के बारे मे जो जानते है उन्हें पता ही होगा सय्यम परिग्रह और त्याग की भावना आत्मा है इस धर्म की पर साथ ही वे जातिप्रथा के खिलाफ थी और मानव धर्म सर्वोपरि था उनके लिये ।
गांधीजी विनोवा भावे की विचारधाराओ से वे और बाबूजी जुड़े थे । भूदान को ले उन्होंने विनोवा भावे जी के साथ पदयात्रा भी की थी ।
बाल विधवा और गरीब महिलाओ को आत्म निर्भर बनाने के लिये उन्होंने उस ज़माने मे जो कदम उठाये वे
सराहनीय थे समाज की महिलाओं से उन्होंने अपील की थी कि दोपहर का सिर्फ एक घंटा वे महिलाए उन्हें दे जिन्हें किरोषा कडाई और सिलाई आती है। उन जरूरत मंद महिलाओ कोईस कला मे निपुण कर उनकी बनी चीज़े मैले मे या प्रदर्शनी मे बिकवाना इसके लिये कलेक्टर से मिलना शुल्क हीन स्टाल दिलवाना सब कुछ कर लेती थी वे ।
चलचित्र की तरह आज अतीत के एक एक पन्ने खुलके सामने आ रहे है ......
एक वार की बात है वे हरि जन बस्ती गयी थी उन्हें साफ़ सफाई से रहने और बच्चो को पाठशाला भेजने की बात करने समझाने ।
जब ये बात जैनियों तक पहुची उन्होंने अगले दिन भाभी को मंदिर मे अन्दर जाने की इज़ाज़त नहीं दी वे तो कट्टर थी कभी पूजा पाठ किये बिना आहार ग्रहण नहीं करती थी उन्होंने अन्नशन्न किया तीन दिन पानी भी मुह मे नहीं लिया जब ये बात चीफ मिनिस्टर तक पहुची उन्होंने स्वयं आकर दरवाजा खुलवाया था मंदिर का और पूजा करके ही उन्होंने आहार लिया
था ।
नागौर मे बाज़ार मे व्यापारियों ने सड़क घेर चबूतरे बडवा लिये थे फलस्वरूप यातायात मे दिक्कते होती थी लाख नोटिस
के बावजूद कुछ नहीं हो पा रहा था कलेक्टर के आग्रह पर उन्होंने सड़के चौड़ी करवाने मै भी पूरा साथ दिया था रातो रात बड़े हुए चबूतरो को तुडवा सडक चौड़ी करवाई थी ।
फिर तो नागौर मे लोग आदर से उन्हें झांसी की रानी कहने लगे थे ।
मेरे बाबूजी का जन्म झांसी मे हुआ उन्होंने वकालत की पढाई इलाहबाद से की और दादाजी के कहने पर अपने पुश्तैनी गाँव नागौर मे प्रेक्टिस की । अन्याय वो देख नहीं पाते थे । बाबूजी के बारे मे फिर कभी लिखूँगी विस्तार से ।
मेरे बाबूजी के दर्शन , सादगी और स्वावलंबन से मेरी भाभी बहुत प्रभावित थी । दूसरों के दुखो को बाँटने मे अग्रसर रहने वाली थी मेरी भाभी ।
पचास साल पूर्व की बाते ऐसे याद आ रही है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही ...........
पर बस आज इतना ही .............