Saturday, June 6, 2009

पनघट

मेरा जन्म राजस्थान के एक गाँव में हुआ था ।
गाँव का नाम है नागौर।
उस समय वहाँ ना तो बिजली थी और ना ही पानी ।
एक तालाब था उसका नाम था गिनानी ।वहीं से पानी लाया जाता था । पीने का पानी कूए से लाते थे।
हमारे घर से करीब बीस मीनिट का रास्ता था ।
गाँव की महिलाए बड़े चाव से सिर पर कोई दो तो कोई तीन घड़े रख
कर पानी भरने चल देती थी। ( हर सुबह )
मै उस समय बहुत छोटी थी पर जानने का कौतुहल था कि ये लोग क्या
करते है ? कैसे पानी मिलता है।
हमारे घर राधाबाई पानी लाती थी हम उन्हें मौसी कहते थे।
वो विधवा थी किसी पर आश्रित रहना उन्हें नही भाता था।
एक दिन उन्हें मना कर उनकी उंगली पकड़ कर मै भी गिनानी गई
मुझे तो एक छोटा सा लोटा दिया गया था।
मैंने देखा कि सब पहले तो अपने अपने घड़े को इमली या तो फिर
नीम्बू के छिलके से मिट्टी लेकर खूब चमकाती
और फिर उसे धो कर कपडे से छान कर पानी भरती।
सब एक दूसरे का इंतजार करते और साथ साथ ही लौटते ।
और हाँ जो नए सुंदर कपडे पहिन कर (घाघरा ओड़नी )
आती थी , सब उसके साथ हंसी ठिठौली करते थे ।
सब को मालुम जो पड़ जाता था कि उसका सांवरिया परदेश से लौट आया है।
उन पीतल के चमचमाते घडों और हंसी ठिठौली ने मेरे जीवन में अमिट छाप छोडी है।

मैंने अनुभव किया है कि उत्साह ,उमंग के साथ किया हर काम एक आनंद
और संतुष्टी का भाव छोड़ जाता है.................

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