Friday, March 26, 2010

उमंग

उमंग का हो साथ
तो लम्बा सफ़र भी
कैसे कटता है हमारा
पता ही नहीं चले ।

कोई भी मुश्किल
टिक नहीं पाती
जोश जो पलता है
इसकी छाँव तले ।

Monday, March 22, 2010

माटी

सुनामी , भूकंप
दुर्घटना , हादसे
सूखा , महंगाई ।
आम आदमी पर
विपदा चारों ओर
से हे घिर आई ।
इन्हीसे तो जुड़ी है
दुःख और वेदनाए ।
कोई आखिर जाए तो
अब किधर जाए ।
व्यथित लोगो के
अविरल बहते आँसू
मेरे दिल को पूरा
भिगोए रखते है
रिश्तों की गर्माहट
और मेरे तपते जज्वात
भी दिल की माटी को
सूखा नहीं रख पाते है ।
शायद इसी लिये
मेरा दिल अपने लिये
और सबके लिये
मात्र धड़कता है ।
कभी टूटता नहीं
तडकता नहीं
गीली माटी का
जो बना है
गीली माटी से
ही ये सना है
ये तो बस जुड़ना
और जोड़ना
जानता है
हर एक दुःख को
अपना मानता है

Thursday, March 18, 2010

बुत

दलितों का हो उत्थान
उन्हें भी मिले पूरा सम्मान
ये ही थी संविधान की कोशिश
ये ही थी गांधीजी की ख्वाहिश ।

अब समय ने ली है करवट
परिस्थितियाँ भी बदली है
साफ़ सुथरी नीति की जगह अब
दल बदल ने जगह ले ली है ।

अब हर क्षेत्र मे मिलता है
आरक्षण का बोल बाला
और चारों ओर हम देखते है
बस घौटाला ही घौटाला ।

नैतिकता को रख
ताक़ , दलित नेता
दौलत प्रदर्शन से
क्यों कर घबराए ?

लक्ष्मी जी की तो
असीम कृपा है उन पर
असामाजिक तत्व भी
पूरा साथ निभाए ।

दलित भी बुत बने
सब कुछ है देख रहे
उनके दलित नेता के
बुत जो है बन रहे ।

Friday, March 12, 2010

जालसाज़

जालसाजी भी एक अच्छा
खासा धंधा बन गयी है
बीमारी की तरह अब ये
चारो और फ़ैल गयी है ।

झांसा देने वाले लोग तो
होते है बड़े ही शातिर
आम आदमी शिकार बनता
लालच , अज्ञान के खातिर ।

खुदा की नज़रे भी
क्यों नहीं पड़ती इन पर ?
कंहा पहुचेंगे ये ऐसी
भटकी राह पर चलकर ?

इंसान ना साथ कुछ लाया है
ना ही साथ ले जाता है ।
ये साधारण सी बात भी क्या
जालसाज़ समझ नहीं पाता है ?

Monday, March 8, 2010

कल्पना

कल्पना ने
यथार्थ की
ज़मी पर
पांव टिका
जब जन्म ले
आकार लिया ।
स्वतः ही तब
चंहु ओर से
मेरा मनोबल
जुट आया
और फिर उसे
साकार किया ।

Saturday, March 6, 2010

पथिक

चलते चलते एक
थका हारा पथिक
पसीना सुखाने
तनिक सुस्ताने
नीम के घने
पेड़ की छांव तले
था थम गया ।
अब आलस
और झपकी ने
आगे बढने का
मंसूबा था उससे
हर लिया ।
इतने मे हवा
का एक सुहावना
हल्का झौका
कंही से आया
झट से उसने
पथिक का बहता
पसीना सुखाया
लगा जैसे उसे
थोडा थपथपाया
कुछ फुसफुसाया
और फिर बिना
पीछे मुड़े
वेग के साथ
आगे बह गया ।
पथिक को मानो
गति ही जीवन है
ये सन्देश वो
अनजाने ही
था दे गया ।
अब आलस छोड़
नये होश और
जोश के साथ
पथिक तरो ताज़ा हो
अपनी मंजिल
की ओर रफ़्तार
के साथ आगे
बढ गया ।

Wednesday, March 3, 2010

चित - चोर

मेरे जीवन मे आया
है एक चित चोर
बिना देखे उसे अब
होती नहीं मेरी भोर ।

सात समुंदर पार है मुझसे
फिर भी हंसकर मुझे लुभाए
देखते ही दिल बल्लियों उछले
धड़कने भी बड़ ही जाए ।

इसके साथ मेरी हरकते भी
होती जारही है बचकाना
अच्छा लगता है आजकल
उससे बाते करते तुतलाना ।

इसने दुनियां मे आते ही
सभीको मोह मे है फसाया
मेरा दिल बंद इसकी मुट्ठी मे
नानी बनने का है सुख पाया ।

हम नाना - नानी की
आँखों का है ये तारा
सदा खुश रखे और रहे
ये ही आशीष हमारा ।