Tuesday, August 30, 2011

दाना

आइये हम सभी सोंचे कि क्या हम दाना बन सकते है जो माटी मे किसी अभिप्राय को ले मिलने को तैयार है ........ ?
देखिये अन्नाजी किस दाने की बात कर रहे है और किससे कर रहे है ?
ये बहुत साल पहिले का भाषण है ।
मै बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आत्मीय शैलेन्द्रजी की जिन्होंने ये लिंक मुझे भेजा । इनकी शख्सियत के बारे मे कुछ तारीफ करने बैठी तो शर्तिया शव्द कम पड़ेंगे । उनकी भेजी मेल आपके समक्ष है निवेदन है कि ये लिंक आप भी अपने आत्मजो को भेजिये जैसे कि मै कर रही हूँ ।
धन्यवाद

Saritaji,

Namashkar.

This is an awesome and amazing gem of a speech by Annaji at a Youth camp at Ralegoan Siddhi some years ago.

Pl click on this link:

http://www.youtube.com/watch?v=0vJD6TzsmA0&feature=related


Request you to please listen to it.This is a must watch video!!(25 mts)


I am sure, you will agree- these words spoken by Annaji... particularly the youth will have more than something to take home from it!!

Perhaps you could post it on your blog and also circulate it to other groups,friends and family.


Kindly let me have your views.

Regards
Shailendra


Friday, August 26, 2011

गिरगिट

गिरगिट है

या सरकार

बताने की

नहीं दरकार ।

Sunday, August 21, 2011

मेरी दादी

मेरी दादी का स्वर्गवास हुए तकरीबन पचास साल होने को है पर उनके व्यक्तित्व ने अमिट छाप छोडी है मुझ पर । मेरी दादी कितनी पढी लिखी थी पता नहीं हाँ जैनधर्म के कई पाठ जो संस्कृत मे थे वे उन्हें कंटस्थ थे और वो मंदिर मे अर्थ सहित उनकी व्याख्या कर अन्य साथी दर्शनाभिलाषी आई महिलाओं को सुनाती थी । और बात बात पर मुहावरे और कहावतों का उपयोग करना उनके बाँये हाथ का खेल था । :)
अरे वाह मैंने भी मुहावरा इस्तेमाल किया ...........हूँ भी तो उन्ही की पोती ।
आजकल जो वर्तमान स्थिती चल रही है उससे अवगत सभी है । पूरे देश मे हलचल मची है पर ऐसे मे भी सरकार का रूखा रवैया गैर जिम्मेदाराना लग रहा है ।
आज फिर दादी की याद आ गयी ।
मेरे दिमाग मे आ रहा था कि आज अगर दादी होती तो आज के हालात के सन्दर्भ मे वे क्या कहती कौनसा मुहावरा इस्तेमाल करती सरकार के लिये ?
घोड़े बेच कर सोना ( शायद नहीं )
या
कानो पर जूं तक नहीं रेंगना ( शायद उपयुक्त )
हम अब बस अनुमान ही लगा सकते है ...........

Friday, August 12, 2011

खिवैया

तुमसे बिछड़े

हिसाब नहीं

बीते कितने

माह और दिन

जिन्दगी जो थम

ही सी गयी थी

रेंगने लगी है

अब तुम बिन

जब भी अपने

सभी लोग

आपसमे मिलते है

बड़े ही स्नेह

और प्यार से

तुम्हे याद करते है

लाख मन को समझाए

खलती है तुम्हारी कमी

बहुत संभालती हूँ

पर उतर ही आती है

सूनी आँखों मे नमी

याद आता है

तुम्हारा सब को

साथ लेकर चलना

प्यार आत्मियता से

सभी से मिलना

तुम्हारा मुस्कुराता

स्नेही चेहरा

नयनो से कंहा

ओझल हो पाता है

जब भी होती हूँ

परेशान या उदास

तुम्हे महसूस करती हूँ

अपने ही आस पास

तुम्हारी सुलझी सोच

और सकारात्मक रवैया

मेरे जीवन मे उतर आते

है बन कर खिवैया ।







Friday, August 5, 2011

छुई मुई

नदी जब
पहाड़ी पथरीले
रास्ते से
गुजरती है
चट्टानों से
टकरा टकरा कर
कल कल नाद
करते हुए
बिना कोई
विराम किये
निरंतर बस
आगे बडती है
कितनी अल्हड
तब लगती है ।

पर मैंने
इसका वो
शांत सौम्य
और गंभीर
स्वरुप भी
देखा है
जब इसने
स्वयं के
अस्तित्व को
समतल को
किया है अर्पित
और यों
शांति कर ही
ली अर्जित ।

अब देखने
मे आता है
दूर से फेंका
एक छोटा
सा कंकर भी
अनगिनत
तरंगे पैदा
कर जाता है ।

ये कविता मैंने दो साल पहिले लिखी थी अब दो वर्ष बाद इसे दो पाठक मिले । सुषमाजी और संगीता जी . इन्होने कमेन्ट भी छोडे है मुझे लगा कि शायद पढने लायक रही होंगी इसीसे फिर से पोस्ट कर रही हूँ....कट पेस्ट नहीं किया है फिर से अपने भावो को शव्द दिए है.....तब इसका शीर्षक अनुभूति था अब मन कह रहा है इसका नाम छुई मुई रखू।