राजनीति का
लगता है
शराफत से नही
रहा अब
कोई भी मेल
नेताओं की
अजीब ही
फितरत है
देख रहे है
इनके नित नये
घिनौने खेल
कुर्सी के
चक्कर मे ये
सभ्यता कों भूले
लालच के चारे
के आगे
हवा मे ही
ये झूले
जिसकी थैली भारी
उसी ओर
ये लुडक जाए
बिना पेंदी के लोटे
तभी तो ये कहलाए
कंहा तक
किस किस कों
कैसे कैसे कोसे
आम आदमी
तो है अब
सच मानिये
राम भरोसे ।
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27 comments:
बिल्कुल सही कहा है आपने। अब तो रामभरोसे ही हैं हम लोग। सत्ता के लिए इतने पतित कर्म होते आएं हैं कि पूछिए नहीं, कभी कभी सोचता हूं कि नीचता की पराकाष्ठा क्या होती होगी।
आम आदमी राम भरोसे ही रह रहा है. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति. आभार
सरिता दी,
इसी बहाने कई नास्तिक लोगों को मानने पर विविश होना पड़ेगा कि यह देश उसी के भरोसे चल रहा है..
बहुत ही करारा व्यंग्य!! लेकिन मेरा अपना एक शेर याद आ रहा है
हमने जिसको बिठाया संसद में,
वो तो बहरा था, बेज़ुबान भी था!
सचमुच यही हाल है...जी
सच कहा आपने ! आम आदमी राम भरोसे ही है !
राम कसम मैं तो यही कहूगां कि जब तक पढे-लिखे, अच्छे लोग तटस्थ होने की आचार सहिंता होठों से चिपकाये रहेंगें,हालात बद से बदतर होते रहेंगें, वह दिन दूर नहीं जब रावण से प्रश्रय की गुहार लगायेंगे आज के राम भक्त!
सब कुछ है अब राम भरोसे।
सच ...रामभरोसे ही है ...
बहुत सही कहा आपने, सब कुछ सिर्फ राम भरोसे ही चल रहा है, सुन्दर रचना के लिये आभार ।
वाह! अद्भुत! सटीक व्यंग्य!!
सारा जीवन अस्त-व्यस्त है
जिसको देखो वही त्रस्त है ।
जलती लू सी फिर उम्मीदें
मगर सियासी हवा मस्त है ।
Badahee bhayanak saty hai ye! Ye sabhi neta 'aam' adamee me se hee bante hain, aur phir na jane is tarah kaise ye 'khaas' ho jate hain,ki jeena Rambharose kar dete hain!
एक तरफ तो सभी चाहते है की सब जगह राम राज्य हो, और जब नेता लोग देश राम भरोसे चलने लगे , तो भी आपको दिक्कत है .. ये तो बहुत गलत बात है .....
sarita di
pranaam
ye to kursi ka khel sadiyo se chale aa rahe ek ghinoune itihaas ka hi agla kadam hai,aur jaane kab tak yu hi chalta rahega.likin inke beech jab insaniyat bhi pisti hai to man dravit ho jaata hai aur aapki post isi se rubaru karvaati hai.bahut hi yatharth parak prastuti.
कंहा तक
किस किस कों
कैसे कैसे कोसे
आम आदमी
तो है अब
सच मानिये
राम भरोसे
poonam
true!!
... bahut sundar ... behatreen rachanaa !
सिर्फ नेता ही क्यों ? आजकल तो जिसे देखो नेताओं जैसा ही व्यवहार कर रहा है ।
आम आदमी ढूँढने मुश्किल हो गए है ।
बहुत अच्छा व्यंग है ।
आम आदमी
तो है अब
सच मानिये
राम भरोसे
जब अगुआ ही रावण हुए
कौन बचाए आम आदमी को
राम तो नजर नहीं आते
सो आम आदमी भ्रष्ट पुराण गाए
गुन-सुन भ्रष्ट पुराण
अगुआ जो हो प्रसन्न
तो चैन सुख पावै आम जन
हमारा देश तो राम भरोसे ही चल रहा है। राजनीतिज्ञ जो न गुल खिलायें, वही काफी है ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
सच कहा आपने. यही हाल है. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति. आभार
beautiful poem
educational also
सच कहा ... आम आदमी को कोई नही सोचता ... ख़ास कर ये नेता जो अपने आपको राजा समझते हैं .... बहुत अच्छा व्यंग है ....
आम आदमी इसीलिये तो आम है जो चाहे चूस ले ।
भगवान् भरोसे तो हैं जरूर लेकिन अब तो उनके पास भी समय नहीं है हमारे लिए...
मेरे ब्लॉग में इस बार...ऐसा क्यूँ मेरे मन में आता है....
bilkul sach kaha aapne.........
bilkul sach kaha aapne.........
पहले भी पढी थी ये पोस्ट और कमेन्ट भी दिया था क्यों पोस्ट नही हुया पता नही। आपके बाऊ जी को विनम्र श्रद्धाँजली।
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