yahi to vidambna hai ... loktantra hote hue bhisahi chunav nahi kar paate hum..infact loktantra aisi vyavstha hai jisme hum khud apne lie ek taanashah chunte hain..
यह विषय आपका न होते हुए भी (मैंने नहीं देखा) सीधा चोट करता है..किसी ने सच कहा है कि लोकतंत्र राजनीति की वह विधा है जिसमें सरकार उस जनता के द्वारा चुनी जाती है, जो वोट नहीं देती...जम्हूरियत वह तर्ज़े हुकूमत जहाँ इंसान तोले नहीं जाते,ह गिने जाते हैं...आज तो हर बाघ हाथ में सोने का कंगन लिए त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति बना बैठा है...हमारे लिए बचा ही नहीं कुछ (नाकारा नेताओं को नकारने का विकल्प भी तो नहीं)... बकौल दुष्यंत कुमारः दोस्तो! अब मंच पर सुविधा नहीं है आजकल नेपथ्य में सम्भावना है.
बिल्कुल सही लिखा है। दरअसल हम करें भी तो क्या। बुरे लोगों में हमें कम बुरे को चुनना है। आप्शन भी तो नहीं होता। एक तरफ कहा जाता है कि अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें और दूसरी तरफ बुरे में कम बुरा चुनना है तो क्या करें। बड़ी मुश्किल है।
सच कहा आपने । शायद गलती हम लोगो की ही है, जो सही इन्सान को चुन नही पाते, पर क्या करे, राजनीती के उतरे लोगो का चेहरा, एक समान मुखौटे के पीछे छुपा होता है । और हाँ, देर से आने के लिये माफ़ी चाहूँगा । अभी ठीक हूँ।
22 comments:
यही विडंबना है
जो आदर्श होना चाहिए
वह पथभ्रष्ट है
जो चुना जाना चाहिए
वह नेपथ्य में है
अच्छा विचार !!
yahi to vidambana ki parakashtha hai.......:(
very true..........
सटीक अभिव्यक्ति आभार्
Kabhi sach ke dereme jhooth chhup jata hai to kabhi jhooth ke dere sach...mukhaute to saree duniya odh leti hai!
बहुत ही सही ।
sundar vichar ,kahte to hai magar mante nahi ,grahan kar paate nahi ,unhe aadarsh ko sunna to achchha lagta hai magar pahnna nahi .uttam .
सटीक वर्णन....स्वयं की विडम्बना को दर्शाती अच्छी अभिव्यक्ति
satya evam sateek
kadwa sach!
सही है सही है ... इन्हे हम ही चुनते हैं .. अपने को काटने के लिए ...
yahi to vidambna hai ... loktantra hote hue bhisahi chunav nahi kar paate hum..infact loktantra aisi vyavstha hai jisme hum khud apne lie ek taanashah chunte hain..
yahi to har baar hota hai aur phir hum apna sar pitte hain
यह विषय आपका न होते हुए भी (मैंने नहीं देखा) सीधा चोट करता है..किसी ने सच कहा है कि लोकतंत्र राजनीति की वह विधा है जिसमें सरकार उस जनता के द्वारा चुनी जाती है, जो वोट नहीं देती...जम्हूरियत वह तर्ज़े हुकूमत जहाँ इंसान तोले नहीं जाते,ह गिने जाते हैं...आज तो हर बाघ हाथ में सोने का कंगन लिए त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति बना बैठा है...हमारे लिए बचा ही नहीं कुछ (नाकारा नेताओं को नकारने का विकल्प भी तो नहीं)...
बकौल दुष्यंत कुमारः
दोस्तो! अब मंच पर सुविधा नहीं है
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है.
आप ने त जॉर्ज ऑर्वेल का “Animal Farm” याद दिला दिया...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
sach, dukhad aur kadva par bhagidaar to ham bhi hain...ya kahein to ham HI hain
बिल्कुल सही लिखा है। दरअसल हम करें भी तो क्या। बुरे लोगों में हमें कम बुरे को चुनना है। आप्शन भी तो नहीं होता। एक तरफ कहा जाता है कि अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें और दूसरी तरफ बुरे में कम बुरा चुनना है तो क्या करें। बड़ी मुश्किल है।
the real truth.....
यही विडंबना है
aabhar.
Irony !
सच कहा आपने ।
शायद गलती हम लोगो की ही है, जो सही इन्सान को चुन नही पाते, पर क्या करे, राजनीती के उतरे लोगो का चेहरा, एक समान मुखौटे के पीछे छुपा होता है ।
और हाँ, देर से आने के लिये माफ़ी चाहूँगा । अभी ठीक हूँ।
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