Saturday, June 19, 2010

सर्वोपरि

जिनके लिये
स्वार्थ है
सर्वोपरि
उन्हें त्याग व
परोपकार पर
दूसरों को
भाषण देते
सुना है ।

क्या करे
शिकायत
हम सभी ने
तो इन
नेताओं को
अपना अमूल्य
वोट देकर
सहर्ष चुना है ।

22 comments:

मनोज भारती said...

यही विडंबना है
जो आदर्श होना चाहिए
वह पथभ्रष्ट है
जो चुना जाना चाहिए
वह नेपथ्य में है

अच्छा विचार !!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

yahi to vidambana ki parakashtha hai.......:(

soni garg goyal said...

very true..........

निर्मला कपिला said...

सटीक अभिव्यक्ति आभार्

kshama said...

Kabhi sach ke dereme jhooth chhup jata hai to kabhi jhooth ke dere sach...mukhaute to saree duniya odh leti hai!

सदा said...

बहुत ही सही ।

ज्योति सिंह said...

sundar vichar ,kahte to hai magar mante nahi ,grahan kar paate nahi ,unhe aadarsh ko sunna to achchha lagta hai magar pahnna nahi .uttam .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक वर्णन....स्वयं की विडम्बना को दर्शाती अच्छी अभिव्यक्ति

दिलीप said...

satya evam sateek

Saumya said...

kadwa sach!

दिगम्बर नासवा said...

सही है सही है ... इन्हे हम ही चुनते हैं .. अपने को काटने के लिए ...

स्वप्निल तिवारी said...

yahi to vidambna hai ... loktantra hote hue bhisahi chunav nahi kar paate hum..infact loktantra aisi vyavstha hai jisme hum khud apne lie ek taanashah chunte hain..

रश्मि प्रभा... said...

yahi to har baar hota hai aur phir hum apna sar pitte hain

सम्वेदना के स्वर said...

यह विषय आपका न होते हुए भी (मैंने नहीं देखा) सीधा चोट करता है..किसी ने सच कहा है कि लोकतंत्र राजनीति की वह विधा है जिसमें सरकार उस जनता के द्वारा चुनी जाती है, जो वोट नहीं देती...जम्हूरियत वह तर्ज़े हुकूमत जहाँ इंसान तोले नहीं जाते,ह गिने जाते हैं...आज तो हर बाघ हाथ में सोने का कंगन लिए त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति बना बैठा है...हमारे लिए बचा ही नहीं कुछ (नाकारा नेताओं को नकारने का विकल्प भी तो नहीं)...
बकौल दुष्यंत कुमारः
दोस्तो! अब मंच पर सुविधा नहीं है
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आप ने त जॉर्ज ऑर्वेल का “Animal Farm” याद दिला दिया...

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/

Avinash Chandra said...

sach, dukhad aur kadva par bhagidaar to ham bhi hain...ya kahein to ham HI hain

पंकज मिश्रा said...

बिल्कुल सही लिखा है। दरअसल हम करें भी तो क्या। बुरे लोगों में हमें कम बुरे को चुनना है। आप्शन भी तो नहीं होता। एक तरफ कहा जाता है कि अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें और दूसरी तरफ बुरे में कम बुरा चुनना है तो क्या करें। बड़ी मुश्किल है।

VIVEK VK JAIN said...

the real truth.....

Apanatva said...

यही विडंबना है
aabhar.

ZEAL said...

Irony !

dipayan said...

सच कहा आपने ।
शायद गलती हम लोगो की ही है, जो सही इन्सान को चुन नही पाते, पर क्या करे, राजनीती के उतरे लोगो का चेहरा, एक समान मुखौटे के पीछे छुपा होता है ।
और हाँ, देर से आने के लिये माफ़ी चाहूँगा । अभी ठीक हूँ।