घने जंगल की
सूनसान पगडंडी पर
दो पथिक
थे जो अज़नबी
सहमे सहमे
डरे डरे से
गुमसुम हो
तेज़ तेज़
कदम उठा
आगे बड़ते रहे
अहम् था
या संकोच
मौन किसी ने
न किंचित तोड़ा
थिरकती चांदनी
विस्मित सी
पेड़ की डालियों
के बीच से
निरखती रही
उनकी बेरुखी
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
एक साथ
ज़मी पर
मिला कर
ही छोड़ा !
सूनसान पगडंडी पर
दो पथिक
थे जो अज़नबी
सहमे सहमे
डरे डरे से
गुमसुम हो
तेज़ तेज़
कदम उठा
आगे बड़ते रहे
अहम् था
या संकोच
मौन किसी ने
न किंचित तोड़ा
थिरकती चांदनी
विस्मित सी
पेड़ की डालियों
के बीच से
निरखती रही
उनकी बेरुखी
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
एक साथ
ज़मी पर
मिला कर
ही छोड़ा !
39 comments:
दीदी,
बहुत अच्छा लग रहा है आपका पुनरागमन.. चरण स्पर्श के साथ बस स्वागत ही कर रहा हूँ.. कविता अपने आप में गहरे अर्थ समेटे है.. उस पर सिर नवा सकता हूँ!!
पुनश्च: अब सोने जा रहा हूँ, नाराज मत होइएगा!!
सरिता जी ,
बहुत अरसे बाद आपको पढ्न बहुत अच्छा लग रहा है ... अंतिम पंक्तियाँ गहनता को समेटे हुये ...
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
एक साथ
मिला कर छोड़ा !
Where were you all this while? Loved reading you after such a long time, hope you will be regular now.
बहुत खूब
दीदी
मन को भा गई ये रचना
ले जाऊँगी इसे शनिवारीय हलचल में
सादर
काफी गहराई लिए आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी.
बड़ी ही गहरी अभिव्यक्ति..
आपकी कविता बहुत दिनों बाद पढने को मिली, दोबारा आपको यहाँ देखकर बहुत ख़ुशी हुई...गहन भाव लिए आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी....
Bahut dinon baad aapko apne blog pe paya...bada hee achha laga...kaisee hain aap? mera lekhan bhee band-sa ho gaya hai...sehat ke karan..
Bahut,bahut sundar rachana!
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
बहुत समय बाद दुबारा आपने कुछ लिखा ... हमेशा की तरह आशा लिए शब्द ... सहज ही कह देना का प्रयास ... आपका आभार ...
saral vidha..gehan chintan!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13 -12 -2012 को यहाँ भी है
....
अंकों की माया .....बहुतों को भाया ... वाह रे कंप्यूटर ... आज की हलचल में ---- संगीता स्वरूप
. .
गहरी अभिव्यक्ति.......बहुत अच्छी लगी..
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
काफी समय बाद आपको पढ़कर अच्छा लगा ...
सादर
बहुत दिनों बाद आपको पढ़कर अच्छा लगा |
कैसी है आप ?
आपने लिखा …
बहुत अच्छा लगा …
आदरणीया सरिता जी !
बहुत खूबसूरत ! वाऽह ! क्या बात है !
चलती रहे लेखनी …
:)
शुभकामनाओं सहित…
वाह ...
bahut dinon baad aapko dekhkar khushi hui.....kavita bhi pasand aayee.
bahut behtrin umda abhivykti
बहुत सुन्दर एवं गहन रचना...
सादर
अनु
गहन भाव लिए अति सुन्दर रचना...
पहली बार आप को सहज साहित्य के कारण आप को पढ़ा कुछ अपनत्व-सा लगा।
गहन रचना।
गहन भाव लिए आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी.
आप पुन सक्रिय हो गईं ये कितनी बड़ी बात है...चंद पंक्तियां अक्सर कह दिया कीजिए..इतना अंतराल अच्छा नहीं लगता.....इधर का भी एक परिवार है...मानता हूं कि जीवन काफी व्यस्त हो जाता है .मगर फिर भी कुछ तो अक्सर कह सकी हैं आप ..या छोटो को आशिर्वाद तो देती रहा करें। पंक्तियां सीधी, सरल और अच्छी लिखी आपने..चांदनी औऱ दो राही...की छोटी सी कहानी...
सुखद कविता ।मै बेंगलोर में ही हूँ पिछले दो साल से ।
हम लोग मिलने की कोशिश करेंगे ।
आपकी अपनत्व भरी सुंदर टिप्पणी से मुझे अपने लेखन पर थोड़ा सा भरोसा औऱ बढ़ा है इसके लिए आपका हृदय से शुक्रिया। यह कविता प्रेमी-प्रेमिका के सजीव बिंब तैयार करती है और प्रकृति उनके साथ ही उपस्थित है बिल्कुल करीब, मुझे जगजीत की एक गजल याद आ रही है, एक शाम की दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक आँखों से की बातें बहुत दिल से कहा कुछ भी नहीं।
आपकी पारखी नज़र को प्रणाम।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं। धन्यवाद।
ओह कितना रोचक!
नव वर्ष की शुभकानाएं...
सुंदर प्रस्तुति
नववर्ष की हार्दिक बधाई।।।
पेड़ की डालियों
के बीच से
निरखती रही
उनकी बेरुखी
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
बेहद सुन्दर, भाव दिल को छु गए !
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,,
excellent poetry..
hii i am auther of blog http://differentstroks.blogspot.in/
hereby nominate you to LIEBSTER BLOGERS AWARD.
further details can be seen on blog posthttp://differentstroks.blogspot.in/2013/01/normal-0-false-false-false-en-us-x-none.html#links
await your comment thanks
bahut sunder.
कविता बहुत अच्छी लगी
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