घने जंगल की
सूनसान पगडंडी पर
दो पथिक
थे जो अज़नबी
सहमे सहमे
डरे डरे से
गुमसुम हो
तेज़ तेज़
कदम उठा
आगे बड़ते रहे
अहम् था
या संकोच
मौन किसी ने
न किंचित तोड़ा
थिरकती चांदनी
विस्मित सी
पेड़ की डालियों
के बीच से
निरखती रही
उनकी बेरुखी
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
एक साथ
ज़मी पर
मिला कर
ही छोड़ा !
सूनसान पगडंडी पर
दो पथिक
थे जो अज़नबी
सहमे सहमे
डरे डरे से
गुमसुम हो
तेज़ तेज़
कदम उठा
आगे बड़ते रहे
अहम् था
या संकोच
मौन किसी ने
न किंचित तोड़ा
थिरकती चांदनी
विस्मित सी
पेड़ की डालियों
के बीच से
निरखती रही
उनकी बेरुखी
फिर उनके
मासूम बेज़ुबा
सायों को
एक साथ
ज़मी पर
मिला कर
ही छोड़ा !