ऐसा नहीं कि
हमने दुःख कभी
भी नही झेले
मुसीबत जब
भी आन पड़ी
हमने भी तो
बहुत पापड़
जीवन मे है बेले ।
नहीं आया तो
बस हां
अपने दुखो की
नुमाईश करना
बिलकुल नही आया ।
दुःख दूसरो कों बता
हमारे अपनों का
मन भारी करने से
कम कैसे होता है ?
ये आज तक मुझे
समझ नहीं आया ।
सच तो ये है कि
विपदा की घड़ी
बहुत कुछ हमे
सिखा जाती है
अपने परायो मे
फर्क बता जाती है ।
आत्मबल ही
हमे निराशा से
उबारता है
विषम परिस्थिती
से जूझना भी
ये ही तो सदैव
हमे सिखाता है ।
दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।
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25 comments:
... bahut sundar ... behatreen !!!
bilkul yahi saar hai jeevan-yudh ka!
एकमात्र नुख्स यह की कविताई को भी हम नुमाइश ही मानते है, बाकी हम आपसे अक्षरतः सहमत है ...
पर लिखते रहिये तो हम कहेंगे ही .. ;)
Didi, aap dil se likhte ho!! hai na!!
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।
bahut khub!!
It was sad to know about your friend . The kavita relates to that i can understand....i have a friend who is a cancer survivor too and she is so full of life that i need to learn a few things from her. But yes it takes a lot to be strong and keep smiling through it all....
Take care and try to be happy....
कविता वही होती है जो पीड़ा पर मरहम लगाए और अबल को सबल बनाए. आपकी कविता दोनों कार्य करती है. सुंदर रचना.
बहुत गहरा सन्देश देती एक प्यारी सी कविता
प्रेरक रचना। आभार।
BAHUT HI PRERAK .. SACH KAHA .. DUKHON KO BHOOL KAR OOPAR UTHNA HI JEEVAN HAI ...
sahi kaha......zindagi sab sikha jati hai
अनित जी,
कलम का सिपाही पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया...पर ऐसे क्षमा मांग कर मामला रफा-दफा ही होता है...दिलों से ख़त्म नहीं होता.....
आपकी रचना बहुत सुन्दर है और वास्तविक भी...सच है अनुभव में पक कर ही इंसान वास्तव में इंसान बन पता है....शुभकामनाये|
"दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है"
वाह,उक्त पंक्तियों में दुखों से लड़ने का मंत्र छुपा है
तप कर ही सोना निखरता है।
सरिता दी! आपकी कविताओं की औसत लम्बाई से ज़्यादा लम्बी कविता.. अनुभव की लम्बाई बताता है. रीडर्स डाइजेस्ट में पढा था कि अपने दुःखों की नुमाइश मत करो, इनके लिए कोई बाज़ार नहीं होता और न ख़रीदार!
रहीम ने भी कहा है किः
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय,
सुन इठलैहें लोग सब, बाँट न लैहें कोय.
और विजयी मनुष्य का प्रगति मार्ग जो आपने दिखलाया, वो आपका अनुभव है जो हम जैसे अनुज के लिए मशाल है, ज्योति पुंज!
ekdam sahi aur behah sunder kavita.
दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ।
Jeevan kaa saransh bata diya aapne! Wah!
अच्छा विश्लेषण है ।
दुखो के ताप
मे तपकर जब
हम उभर आते है
अनुभवों की चमक
चेहरे पर पा
मन कों हल्का
और स्वयं कों
विजयी तब पाते है ..
Very inspiring lines .
.
बहुत सुन्दर, प्रेरक और लाजवाब रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती !
How are you Sarita Ji...
Please keep writing such lovely poems as these are so motivating and uplifting ...both for the reader and for you .. you understand what i mean!!
Take care.
Very inspiring lines .
regards
manjula
कविता में जीवन के अनुभव की गंध समाहित है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
दुर्दम्य आशावाद है ।
माँ की पुण्यतिथि पर माँ के दुआरा दीया गया आशीर्वाद है कविता
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